हेल्थ इंश्योरेंस लेने का मकसद यही होता है की जरूरत पड़ने पर इलाज का खर्च बीमा कंपनी उठाए और आपको आर्थिक राहत मिले. लेकिन क्या आप जानते हैं कि कई पॉलिसियों में एक ऐसा नियम शामिल होता है जो मुश्किल समय में आपके लिए परेशानी खड़ी कर सकता है. इस नियम को मैटेरियल चेंज क्लॉज कहा जाता है. दरअसल हाल ही में जनरल इंश्योरेंस एजेंट्स फेडरेशन इंटीग्रेटेड के अध्यक्ष प्रशांत म्हात्रे ने इस क्लोज को लेकर चिंता जताई है उन्होंने बताया कि कुछ बीमा कंपनी अपनी हेल्थ पॉलिसी में ऐसा प्रावधान जोड़ रही है जो ग्राहकों के अधिकारों को प्रभावित कर सकता है. ऐसे में चलिए आज हम आपको बताते हैं कि हेल्थ इंश्योरेंस लेने के बाद अगर आपको नई बीमारी हो जाती है तो क्या करना होगा और मैटेरियल चेंज क्लॉज क्या होता है.

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क्या होता है मैटेरियल चेंज क्लॉज?

इस क्लॉज के अनुसार अगर हेल्थ इंश्योरेंस लेने के बाद आपकी सेहत में कोई बदलाव होता है जैसे कोई नई बीमारी, बड़ी सर्जरी या कोई गंभीर सेहत से जुड़ी समस्या होती है तो आपको इसकी जानकारी अपनी बीमा कंपनी को देनी होगी. ऐसे में कंपनी को यह अधिकार मिल जाता है कि वह पॉलिसी रिन्यूअल के समय कुछ बदलाव कर सकती है. जैसे प्रीमियम बढ़ाना, कवरेज घटना या नई शर्तें जोड़ना. GIAFI के अध्यक्ष के अनुसार कुछ कंपनियां जैसे कोई Acko, ICICI Lombard, SBI General और Juno General Insurance की कुछ हेल्थ पॉलिसीयों में यह क्लॉज शामिल है. हालांकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर बीमा कंपनी इस नियम का इस्तेमाल बीमारी के बाद प्रीमियम बढ़ाने या कवर घटाने के लिए करती है तो यह IRDAI के नियमों का उल्लंघन माना जा सकता है.

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क्या कहते हैं IRDAI के नियम?

  • IRDAI के नियमों के अनुसार हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी लाइफटाइम रिन्यूएबल होती है.
  • वहीं बीमा कंपनी केवल धोखाधड़ी या जानकारी छिपाने की स्थिति में ही पॉलिसी को रिन्यू करने से मना कर सकती है.
  • सिर्फ क्लेम करने या बीमारी होने के कारण पॉलिसी की शर्तें बदलना या प्रीमियम बढ़ाना गलत माना जाता है.
  • वहीं कोई भी बदलाव तभी किया जा सकता है, जब वह सभी ग्राहकों पर समान रूप से लागू हो न की किसी एक व्यक्ति पर.

अगर नई बीमारी हो जाए तो क्या करें?

  • बीमा कंपनी को तुरंत जानकारी दें- अगर आपको कोई नई बीमारी का पता चलता है तो उसे छिपाएं नहीं बल्कि अपनी बीमा कंपनी को इसकी लिखित जानकारी दें. इससे आगे चलकर क्लेम रिजेक्शन की संभावना कम हो जाती है.
  • सभी मेडिकल रिपोर्ट्स जमा करें- वहीं आपको जो बीमारी डिटेक्ट हुई है उसकी मेडिकल रिपोर्ट, डॉक्टर का प्रिस्क्रिप्शन और इलाज का रिकॉर्ड कंपनी के साथ शेयर करें.
  • कंपनी से लिखित में पूछताछ करें- अगर आपको नई बीमारी हो जाए तो इसके लिए आप बीमा कंपनी से लिखित में पूछताछ करें कि इसका आपकी पॉलिसी पर क्या असर होगा. क्या प्रीमियम बढ़ेगा, कवरेज बदलेगा या कोई नई शर्त जोड़ी जाएगी यह सब जानकारी लिखित में मांगे.
  • बदलाव में गड़बड़ी लगे तो शिकायत करें- अगर कंपनी आपकी पॉलिसी में कुछ बदलाव करती हैं जो आपको सही नहीं लगते हैं तो आप IRDAI या बीमा लोकपाल के पास शिकायत दर्ज कर सकते हैं.

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