Toll Plaza Business Model: कई लोगों को लगता है कि टोल प्लाजा जिन लोगों के पास होता है. वह लोग उससे बहुत कमाई करते हैं. अगर आप सोच रहे हैं कि टोल प्लाजा खोलकर आप भी कमाई कर सकते हैं. तो पहले जान लीजिए कि भारत में कोई भी व्यक्ति अपनी मर्जी से टोल प्लाजा नहीं खोल सकता. टोल वसूली का अधिकार सरकार के पास होता है. नेशनल हाईवे पर यह जिम्मेदारी NHAI निभाती है.

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जबकि स्टेट हाईवे पर राज्य सरकारें अपने नियमों के तहत टोल सिस्टम लागू करती हैं. टोल प्लाजा का मकसद सड़कों के निर्माण, रखरखाव और संचालन की लागत वसूलना होता है. FASTag जैसी व्यवस्था इसी सिस्टम का हिस्सा है. हालांकि सरकार टेंडर के जरिए प्राइवेट कंपनियों और व्यक्तियों को टोल वसूली का ठेका देती है. यानी सीधे टोल प्लाजा खोलना नहीं बल्कि ठेका लेना ही कमाई का तरीका है. जान लें कैये यह ठेका बड़ा रेवेन्यू सोर्स बन सकता है.

टोल प्लाजा का ठेका लेने के लिए क्या करना होता है?

टोल वसूली का ठेका लेने के लिए NHAI या राज्य सरकार की ओर से जारी टेंडर पर नजर रखनी होती है. टेंडर नोटिस में ठेके का टेन्योर, रिजर्व प्राइस और सिक्योरिटी डिपॉजिट की पूरी डिटेल दी जाती है. आवेदन से पहले टोल प्लाजा की लोकेशन और वहां से गुजरने वाले वाहनों का डेटा समझना बेहद जरूरी है.

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दिन और रात के ट्रैफिक में कितना फर्क है. भारी वाहनों की हिस्सेदारी कितनी है और FASTag से डिजिटल कलेक्शन कितना हो सकता है. इन सबका अनुमान लगाना पड़ता है. इसके साथ ही स्टाफ, मशीनें, बिजली, सिक्योरिटी और मेंटेनेंस खर्च को भी प्लान में शामिल करना होता है. बिना हिसाब लगाए ऊंची बोली लगाना सबसे बड़ी गलती मानी जाती है.

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टोल प्लाजा ठेके से कितनी हो सकती है कमाई?

टोल प्लाजा से कमाई सीधे ट्रैफिक वॉल्यूम पर निर्भर करती है. व्यस्त नेशनल हाईवे या एक्सप्रेसवे पर रोजाना लाखों रुपये का कलेक्शन होता है. अगर किसी टोल पर रोज औसतन 8 से 10 लाख रुपये की वसूली होती है, तो महीने में यह रकम करोड़ के करीब पहुंच सकती है. इसमें से तय सरकारी भुगतान और ऑपरेशन खर्च निकालने के बाद भी अच्छा मार्जिन बचता है.

सही ठेके में सालाना कमाई करोड़ों रुपये तक जा सकती है. हालांकि जोखिम भी बना रहता है. क्योंकि ट्रैफिक कम होने पर असर सीधा आमदनी पर पड़ता है. इसलिए सही लोकेशन, सही बोली और साॅलिड मैनेजमेंट बहुत जरूरी है.

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