Title Suit Rules: आजकल प्रॉपर्टी को लेकर विवाद लगभग हर दूसरे परिवार में देखने को मिलते हैं. कई बार बंटवारे के समय किसी एक बेटे को ज्यादा जमीन दे दी जाती है और दूसरे को कम. शुरुआत में लोग चुप रह जाते हैं लेकिन आगे चलकर यही फर्क बड़ा मुद्दा बन जाता है और जिसे कम हिस्सा मिलता है वह अपने अधिकार के लिए कोर्ट तक पहुंच जाता है. अक्सर लोगों को लगता है कि एक बार प्रॉपर्टी का बंटवारा हो गया तो अब चाहे जो हो जाए फिर बदला नहीं जा सकता. 

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लेकिन ऐसा हमेशा सही नहीं है. अगर परदादा या दादा ने किसी एक वारिस को ज्यादा हिस्सा दे दिया था और बाकी बच्चों को कम, और आपको लगता है कि यह बंटवारा सही तरीके से नहीं हुआ तो आप इस फैसले को चुनौती देकर टाइटल सूट दाखिल कर सकते हैं. इससे कोर्ट यह तय करता है कि असली मालिकाना हक किसका है और किसे बराबर हिस्सा मिलना चाहिए. जान लें प्रोसेस.

टाइटल सूट कैसे दायर किया जाता है?

टाइटल सूट एक ऐसा केस है जिसे कोई भी व्यक्ति तब दायर करता है जब उसे लगता है कि उसके प्रॉपर्टी अधिकार पर किसी तरह का गलत दावा किया गया है या बंटवारा सही तरीके से नहीं हुआ. मान लीजिए परदादा ने एक बेटे को ज्यादा जमीन दे दी और बाकी बच्चों को बहुत कम. अगर वारिसों में से किसी को इस फैसले पर शक हो या उसे लगे कि उसके हिस्से में न्याय नहीं हुआ.तो वह कोर्ट में टाइटल सूट फाइल कर सकता है. 

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इस केस में आपको यह साबित करना होता है कि जमीन पर आपका लीगल राइट बनता है और पुराना बंटवारा गलत या संदिग्ध था. टाइटल सूट दायर करते समय जमीन के कागज, खसरा नंबर, पुरानी रजिस्ट्री, वसीयत की कॉपी और परिवार का जीनियोलॉजी रिकॉर्ड बहुत काम आता है. कोर्ट इन सभी दस्तावेजों की जांच करके तय करता है कि किसका हक कितना बनता है.

कोर्ट कैसे तय करता है बराबर हिस्सा?

जब केस कोर्ट तक जाता है तो जज यह देखते हैं कि बंटवारा किस आधार पर हुआ था. वसीयत सही थी या नहीं उस समय के कानून लागू थे या नहीं और वारिसों के लीगल राइट्स क्या कहते हैं. अगर कोर्ट को लगता है कि बंटवारा पक्षपातपूर्ण था या बिना सबकी सहमति के कराया गया था. तो वह पुराने फैसले को रद्द कर सकता है. कई मामलों में कोर्ट परिवार के हर सदस्य की लीगल स्थिति देख कर नया हिसाब बनाता है.

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और जमीन को बराबर या कानूनी नियमों के अनुसार फिर से बांटने का आदेश देता है. अगर वसीयत ही गलत पाई जाती है या उसके आधार पर एक पक्ष को ज्यादा फायदा हुआ है. तो उस हिस्से को भी फिर से बैलेंस किया जाता है. इस पूरी प्रोसेस का मकसद यही होता है कि जिस वारिस को जो हिस्सा मिलना चाहिए. वह उसे मिले और प्रॉपर्टी विवाद हमेशा के लिए खत्म हो सके.

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