क्या आपको अपने आसपास होने वाली चीजें सही नहीं लगतीं? क्या आपको लगता है कि आम लोगों को वो अधिकार नहीं मिल पा रहे, जो संविधान ने उन्हें दिए हैं? या ऐसा लगता है कि सरकार की नीतियों की वजह से किसी की ज़िंदगी पर बुरा असर पड़ रहा है जैसे किसी गरीब का हक छीना जा रहा हो, या समाज में भेदभाव और भ्रष्टाचार बढ़ रहा हो? अगर हां, तो आपको जनहित याचिका यानी PIL (Public Interest Litigation) के बारे में जरूर जानना चाहिए.

क्या है PIL? जान लीजिए जवाब

जनहित याचिका एक ऐसा कानूनी हथियार है जो उन लोगों के काम आता है जो खुद के लिए नहीं, बल्कि समाज की भलाई के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाते हैं. इसमें आप किसी वकील के बिना भी सीधे हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर सकते हैं. बस आपकी मंशा साफ होनी चाहिए और मामला ऐसा होना चाहिए जो पूरे समाज या किसी वर्ग को प्रभावित करता हो. ये उन लोगों के लिए सबसे बढ़िया तरीका है जो समाज में बदलाव लाना चाहते हैं, लेकिन उनके पास न ताकत है, न पैसा, न कोई बड़ा पद. PIL उन्हें आवाज देता है वो भी देश की सबसे बड़ी अदालतों में. याद रखें कि जनहित याचिका केवल भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट में एवं अनुच्छेद 226 के अंतर्गत हाई कोर्ट में दायर की जाती हैं.

जनहित याचिका से जुड़े कुछ अहम नियम

1- कोई भी जागरूक नागरिक या सामाजिक संगठन जनहित में याचिका दायर कर सकता है, भले ही उसे खुद उस मामले से सीधा नुकसान न हुआ हो.

2- अगर कोई व्यक्ति अदालत तक नहीं पहुंच सकता, तो वो सिर्फ एक साधारण पोस्टकार्ड भेजकर भी अपनी बात सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट तक पहुंचा सकता है.

3- कोर्ट के पास ये ताकत होती है कि वो चाहे तो जनहित याचिका पर लगने वाली फीस या कोर्ट फीस माफ कर सकता है, ताकि गरीब व्यक्ति भी न्याय मांग सके.

4- जनहित याचिका सिर्फ सरकार या सरकारी विभागों के खिलाफ ही नहीं, बल्कि किसी प्राइवेट संस्था या कंपनी के खिलाफ भी दाखिल की जा सकती है, अगर मामला जनता से जुड़ा हो.

सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट खुद नियुक्त कर सकते हैं वकील

सुप्रीम कोर्ट रूल्स, 2013 और भारत का संविधान ये दोनों ही सार्वजनिक हित याचिका (PIL) की अनुमति आम नागरिकों को देते हैं. कई बार सार्वजनिक स्तर पर जिम्मेदारों ने स्पष्ट किया है कि अगर किसी व्यक्ति को लगता है कि कोई मामला जनहित से जुड़ा है चाहे वो पर्यावरण, शिक्षा, स्वास्थ्य, मानवाधिकार, भ्रष्टाचार या कमजोर वर्गों के शोषण से जुड़ा हो तो वो बिना किसी वकील की मदद के सीधे सुप्रीम कोर्ट को याचिका भेज सकता है. न्यायालय स्वंय ऐसे मामले को स्वीकार कर वकील की नियुक्ति कर सकता हैं.

यह भी पढ़ें: क्या है उबर का 'एडवांस टिप' फीचर, जिसको लेकर हो रही कंपनी की आलोचना, सरकार ने दिए जांच के आदेश