AI By 2030: अमरता एक ऐसा सपना है जिसे इंसान सदियों से पूरा करना चाहता रहा है. लेकिन अब इस सपने को नया मोड़ दिया है एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक ने जिन्होंने दावा किया है कि 2030 तक इंसान मौत को मात दे सकेगा. यह दावा सिर्फ कल्पना नहीं, बल्कि तेजी से विकसित हो रही AI, बायोटेक्नोलॉजी और नैनो टेक्नोलॉजी पर आधारित है. वैज्ञानिक के अनुसार आने वाले कुछ सालों में तकनीक इतनी आगे बढ़ जाएगी कि शरीर की कमजोरियां, बीमारियां और उम्र का असर लगभग खत्म कर दिया जाएगा.

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AI कैसे रोकेगी मौत?

AI आज सिर्फ चैटबॉट या रोबोट बनाने तक सीमित नहीं है. यह अब शरीर के अंदर होने वाली प्रक्रियाओं को समझने, बीमारी को पहचानने और दवाई तय करने जैसे कामों में इंसान से भी तेज हो चुकी है. वैज्ञानिकों का मानना है कि आने वाले समय में AI हमारे शरीर का लाइव स्कैन करती रहेगी और किसी भी बीमारी, दिल की समस्या, अंग फेल होने या कैंसर जैसी स्थिति को समय रहते रोक देगी.

AI की मदद से ऐसे डिजिटल डॉक्टर तैयार किए जा रहे हैं जो शरीर के अंदर नैनोबॉट्स भेजकर खराब कोशिकाओं को ठीक कर सकेंगे DNA की मरम्मत कर सकेंगे और उम्र बढ़ने के कारण होने वाले नुकसान को पलट सकेंगे.

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नैनोबॉट्स- शरीर के अंदर चलेंगे माइक्रो रोबोट

अमरता की दौड़ में सबसे बड़ा हथियार होंगे नैनोबॉट्स. ये बेहद छोटे रोबोट होंगे जो खून के साथ शरीर में घूमते रहेंगे और बीमार कोशिकाओं, बैक्टीरिया, वायरस और उम्र के असर से लड़ेंगे.

इस तकनीक का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि इंसान बूढ़ा तो होगा लेकिन उसके शरीर पर उम्र का असर लगभग दिखाई नहीं देगा. वैज्ञानिकों का दावा है कि नैनोबॉट्स शरीर को ऑटो-रिपेयर मोड में बदल देंगे.

क्या इंसान की डिजिटल कॉपी भी बनेगी?

कुछ वैज्ञानिक एक और क्रांतिकारी संभावना पर भी काम कर रहे हैं मानव चेतना को डिजिटल रूप में सहेजना. इसका मतलब यह है कि भविष्य में इंसान का दिमाग, उसकी यादें, सोच और व्यक्तित्व कंप्यूटर या रोबोट में ट्रांसफर किया जा सकेगा. यदि यह सफल हो गया तो इंसान की डिजिटल जिंदगी कभी खत्म नहीं होगी यानी एक नए रूप में अमरता संभव हो जाएगी.

कितना सच, कितना भविष्य?

हालांकि यह विचार बेहद रोमांचक है लेकिन वैज्ञानिक समुदाय अभी भी बंटा हुआ है. कई विशेषज्ञ मानते हैं कि 2030 तक अमरता पूरी तरह संभव नहीं, लेकिन मानव जीवनकाल में भारी बढ़ोतरी जरूर हो सकती है. फिर भी, AI और बायोटेक की रफ्तार देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि आने वाले दशक में इंसान की जिंदगी का चेहरा पूरी तरह बदल सकता है.

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