आपने गौर किया होगा कि स्मार्टफोन से लेकर लैपटॉप तक के चार्जर ब्लैक या व्हाइट कलर के ही होते हैं. भले ही डिवाइस किसी भी कलर का क्यों न हो, लेकिन उसके चार्जर का कलर ब्लैक या व्हाइट ही होगा. क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है? कंपनियां बाकी एक्सेसरीज की तरह चार्जर भी कलरफुल बना सकती हैं, लेकिन वो ऐसा करतीं क्यों नहीं? आज हम इन्हीं कुछ सवालों के जवाब लेकर आए हैं. 

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इन कारणों से कलरफुल नहीं होते चार्जर

सेफ्टी- कंपनियों को अपने चार्जर बाजार में उतारने से पहले फायर सेफ्टी और शॉर्ट-सर्किट टेस्ट कई प्रकार के सेफ्टी टेस्ट पास करने होते हैं. न्यूट्रल कलर के साथ प्लास्टिक फॉर्मूला आमतौर पर भरोसेमंद माना जाता है और ये पहले से सर्टिफाइड होते हैं. इससे सेफ्टी अप्रूवल जल्दी मिल जाता है.

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सहूलियत- कंपनियों के लिए ब्लैक और व्हाइट चार्जर बनाने आसान है और सस्ता भी पड़ता है. अगर वो डिवाइसेस के कलर के हिसाब से चार्जर बनाने लगे तो उन्हें अलग-अलग कलर की जरूरत पड़ेगी, जिससे लागत बढ़ जाएगी. ऐसे में ब्लैक और व्हाइट चार्जर बनाना कंपनियों के लिए आसान और सस्ता है. दूसरा यूजर्स को भी इसका फायदा होता है. अगर उसका चार्जर खराब हो जाता है कि डिवाइस से मिलते कलर वाले चार्जर को ढूंढना उसके लिए मुश्किल हो सकता है. किसी जगह पर किसी कलर की शॉर्टेज होने के कारण उसे चार्जर मिलने में देरी भी हो सकती है. इसलिए कंपनियों के साथ-साथ ग्राहकों के लिए भी यह सुविधाजनक है.

साइंस- सेफ्टी और सहूलियत के अलावा चार्जर के ब्लैक या व्हाइट होने के पीछे साइंस भी जिम्मेदार है. दरअसल, ब्लैक या व्हाइट कलर के कारण चार्जर से निकलने वाली हीट को आसानी से डिसिपेट किया जा सकता है. इस कारण चार्जिंग के दौरान जनरेट होने वाली हीट ट्रैप नहीं होती और चार्जर को ओवरहीट होने से बचाया जा सकता है. इस तरह कलर चॉइस के पीछे साइंस भी एक बड़ा फैक्टर है.

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