हमारे फ़ोन पर रोज़ सैकड़ों मैसेज आते हैं. कभी बैंक का, कभी किसी ऐप का, कभी ऑफ़र का, लेकिन इन्हीं मैसेजों में कई बार फर्जी लिंक या धोखाधड़ी वाले नंबर भी घुस जाते हैं, जिनसे लोग ठगी के शिकार बनते हैं, लेकिन अब से कंपनियों को अपने हर SMS टेम्पलेट में मौजूद वैरिएबल फील्ड जैसे लिंक, ऐप डाउनलोड URL, या कॉल बैक नंबर को पहले से रजिस्टर कराना होगा.

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आसान भाषा में यह है मतलब

आसान भाषा में समझें तो SMS भेजने से पहले कंपनियों को यह बताना होगा कि उस मैसेज में कौन-सा लिंक या नंबर आएगा और क्यों आएगा. अक्सर देखा गया है कि मोबाइल पर आने वाले कई मैसेजों में फर्जी लिंक डालकर लोगों को ठगा जाता है. ये लिंक दिखने में असली लगते हैं, लेकिन क्लिक करते ही बैंक डिटेल चोरी होने, डेटा हैक होने या साइबर फ्रॉड जैसी गंभीर समस्याएं सामने आती हैं. TRAI की जांच में बार-बार पाया गया कि ठग इसी लचीलेपन का फायदा उठाकर असली कंपनी के नाम से फर्जी लिंक डाल देते थे, जिससे आम लोग आसानी से जाल में फंस जाते थे.

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नए नियमों से ये होगा बदलाव

नए नियम के तहत कंपनियां अब SMS टेम्पलेट बनाते समय यह बताएंगी कि मैसेज में कौन-सा लिंक आएगा और उसका उद्देश्य क्या है. पुराने सभी टेम्पलेट 60 दिनों के भीतर अपडेट करने होंगे, नहीं तो ऐसे मैसेज भेजे ही नहीं जाएंगे. इससे मोबाइल नेटवर्क तुरंत पहचान पाएंगे कि मैसेज में डाला गया लिंक असली है या नहीं और जरूरत पड़ने पर उसे रोक भी सकेंगे.

आम लोगों को होगा फायदा

फ्रॉड वाले मैसेज बड़े स्तर पर कम होंगे, बैंक या सरकारी सेवाओं के मैसेज पर भरोसा बढ़ेगा और मोबाइल पर आने वाली फिशिंग गतिविधियां काफी हद तक नियंत्रित होंगी. यह नियम डिजिटल मैसेजिंग को सुरक्षित बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है. मोबाइल पर लगातार बढ़ते साइबर धोखाधड़ी के मामलों को देखते हुए यह व्यवस्था लोगों की सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी थी. अब हर लिंक और नंबर पहले से क्रॉस वेरिफाई होगा, जिससे मैसेज अधिक भरोसेमंद और सुरक्षित बनेंगे. सरकार का मानना है कि यह फैसला मोबाइल यूजर्स के लिए राहत लेकर आएगा और डिजिटल कम्युनिकेशन को ज्यादा सुरक्षित और पारदर्शी बनाएगा.

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