Mark Zuckerberg: आज के डिजिटल दौर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) सबसे बड़ी दौड़ बन चुकी है और Meta अब इस गेम को और बड़ा बनाने जा रही है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, मार्क जुकरबर्ग की कंपनी अमेरिका में कॉन्ट्रैक्टर्स को 55 डॉलर (करीब 5,000 रुपये) प्रति घंटे तक का भुगतान कर रही है ताकि वे भारत जैसे देशों के लिए लोकल कल्चर और भाषा से जुड़े चैटबॉट बना सकें.

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क्यों चाहिए Meta को हिंदी क्रिएटर्स?

Meta सिर्फ कोडर्स को नहीं ढूंढ रही है. कंपनी ऐसे लोगों को चाहती है जिनके पास स्टोरीटेलिंग, कैरेक्टर क्रिएशन और प्रॉम्प्ट इंजीनियरिंग का कम से कम छह साल का अनुभव हो और जो हिंदी, इंडोनेशियन, स्पैनिश या पुर्तगाली जैसी भाषाओं में फ्लुएंट हों. इन चैटबॉट्स का मकसद यह है कि लोग इंस्टाग्राम, मैसेंजर और व्हाट्सएप पर ऐसे AI पर्सनालिटीज़ से जुड़ें जो बिल्कुल स्थानीय और असली लगें.

जुकरबर्ग की बड़ी योजना

जुकरबर्ग का विज़न है कि AI चैटबॉट्स सिर्फ टेक टूल्स न होकर लोगों की जिंदगी का हिस्सा बन जाएं. उनका मानना है कि एक समय आएगा जब ऐसे चैटबॉट्स असली दोस्तों की तरह काम करेंगे और हमारी रोज़मर्रा की ज़रूरतों को आसान बनाएंगे.

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यह पहला प्रयोग नहीं है. 2023 में Meta ने सेलेब्रिटी-आधारित AI बॉट्स जैसे Kendall Jenner और Snoop Dogg वाले वर्ज़न लॉन्च किए थे, लेकिन वे ज्यादा समय तक टिक नहीं पाए. 2024 में कंपनी ने AI Studio पेश किया जिसके जरिए आम यूज़र्स भी अपने चैटबॉट बना सकते हैं.

भारत के लिए क्यों खास है यह प्रोजेक्ट?

भारत में इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप के करोड़ों यूज़र्स हैं. ऐसे में हिंदी चैटबॉट्स लॉन्च करना Meta के लिए बेहद फायदेमंद साबित हो सकता है. अगर ये बॉट्स भारतीय यूज़र्स की भाषा और संस्कृति से जुड़ते हैं, तो कंपनी का एंगेजमेंट और रेवेन्यू दोनों तेजी से बढ़ेंगे.

चुनौतियां और विवाद

हालाँकि चैटबॉट्स बनाना आसान नहीं है. पहले भी Meta पर आरोप लगे हैं कि उसके AI बॉट्स ने संवेदनशील डेटा लीक किया और कई बार अनुचित कंटेंट जेनरेट किया. अमेरिकी सीनेटरों ने कंपनी से जवाब भी मांगा था. इंडोनेशिया और अमेरिका में कुछ चैटबॉट्स के विवादास्पद कैरेक्टर (जैसे "Russian Girl" और "Lonely Woman") ने कंपनी की छवि को नुकसान पहुंचाया. यही वजह है कि इस बार Meta स्थानीय क्रिएटर्स और एक्सपर्ट्स को शामिल कर असली और सुरक्षित कैरेक्टर्स बनाने पर जोर दे रही है.

नतीजा क्या होगा?

Meta इस समय किसी भी जोखिम को हाथ से जाने नहीं देना चाहती. इसलिए वह ऐसे लेखक और सांस्कृतिक विशेषज्ञों पर पैसा खर्च कर रही है जो डिजिटल दुनिया के लिए रियलिस्टिक और रिलेटेबल AI पर्सनालिटीज़ तैयार कर सकें. यह देखना दिलचस्प होगा कि हिंदी चैटबॉट्स भारत में कितना असर डालते हैं क्या यह कदम जुकरबर्ग का मास्टरस्ट्रोक साबित होगा या फिर किसी नए विवाद की वजह?

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