केंद्र सरकार ने देश की ट्रेड पॉलिसी में कुछ दिनों पहले कुछ तब्दीली की. इसी के तहत बीते 3 अगस्त को सरकार ने अचानक से लैपटॉप्स, पर्सनल कंप्यूटर्स, टैबलेट्स के इंपोर्ट पर पाबंदी (laptop PC import ban in india) लगाने की घोषणा कर दी. जारी हुए नोटिफिकेशन में कहा गया कि ऐसे डिवाइस के जो भी इम्पोर्टर हैं, उनके लिए अब लाइसेंस जरूरी होगा. फैसला तुरंत लागू भी हो गया. फैसले के बाद जब सरकार को लगा कि इससे इंडस्ट्री में अच्छी खासी नाराजगी है तो सरकार ने इस फैसले को वापस ले लिया. यहां गौर करने वाली बात यह है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ. क्यों सरकार ने अपने फैसले को वापस ले लिया? आइए यहां समझते हैं. 


कीमतों में तेज उछाल आने की होने लगी आशंका


यह फैसला तत्काल प्रभाव से लागू होना था. ऐसे में पूरी सप्लाई चेन पर असर पड़ने का अंदेशा हो गया. लगने लगा कि अगर सप्लाई चेन अटका तो गया तो देश में इन गैजेट्स की भारी कमी हो सकती है. त्योहार भी शुरू होने वाले हैं. ऐसी चिंता होने लगी कि फेस्टिव सीज़न में कमी की वजह से डिमांड हाई होगी और कीमतों में तेज उछाल आ सकती है. सरकार की ऐसी चिंता भी थी कि इस तरह के इपोंर्ट से सिक्योरिटी रिस्क है. ऐसे इंपोर्टेड डिवाइस का इस्तेमाल सर्विलांस के लिए किया जा सकता है. इनमें स्पाइवेयर्स डले हो सकते हैं.


IT hardware के प्रोडक्शन को बढ़ाने की है कोशिश


जब ये फैसला लिया गया तब इससे सरकार की एक और स्ट्रैटेजी को जोड़ा गया. सरकार पहले से ही देश में IT hardware के प्रोडक्शन को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है. इसके लिए स्कीम्स भी शुरू की गईं. हालांकि, इससे जुड़ी इंसेंटिव स्कीम्स में मुश्किल से ही किसी ने भरोसा जताया. ऐसे में सरकार की ये पहल आगे नहीं बढ़ पाई. हालांकि, लैपटॉप्स के इंपोर्ट पर लगे बैन (laptop PC Tablet import ban in india) को इस तरह से भी देखा गया कि सरकार इस बिज़नेस से जुड़े लोगों को ये इशारा कर रही है कि उन्हें IT hardware प्रोडक्शन की तरह कदम बढ़ाना चाहिए.


इस वजह से कदम वापस खींचने पड़े


कहा जा रहा है कि सरकार के इस कदम ने चिंता बढ़ा दी. चिंता इस बात की भी थी कि सरकार के इस कदम का इंडिया के सॉफ्टवेयर और आईटी से जुड़े सेक्टर पर कैसा असर पड़ सकता है. कहा जा रहा है कि सरकार को इसी वजह से अपने कदम वापस खींचने पड़े. सरकार को फैसला वापस लेना पड़ा और इसे 1 नवंबर तक के लिए टाल दिया गया है. सरकार ने वादा भी किया है कि ऐसे इंपोर्ट (laptop PC Tablet import ban in india) के लिए जिस लाइसेंस की ज़रूरत होगी उसे बहुत तेज़ी से जारी किया जाएगा. सरकार को ये भरोसा भी दिलाना पड़ा कि ये भारत कि उस लाइसेंस-कोट राज के दौर की तरफ वापसी है जिसे ख़ूब कोसा जाता है. 


फैसले का ऑब्जेक्टिव


चर्चा अब यह हो रही है कि आखिर आगे क्या होगा. किस तरह के इम्पोर्ट को जरूरी बताना पड़ेगा और कैसे प्रूफ सब्मिट करने होंगे. यह सच्चाई है कि डिवाइसेज़ का बल्क इंपोर्ट चाइना से होता है. ऐसे में क्या वहां से आने वाले शिपमेंट की टेस्टिंग को लेकर कोई नियम बनाया जाएगा. फैसले का ऑब्जेक्टिव है कि दुनिया की बड़ी कंपनियां भारत में ये डिवाइसेज़ बनाएं तो चिंता इस बात की जताई गई है कि वो ऐसा नहीं करेंगी. इसके पीछे एक वजह है कि ऐसी कंपनियों के पास दुनिया में ऐसे कई ऑल्टरनेटिव हैं जो यहां से ज़्यादा बिज़नेस फ्रेंडली हैं. ऐसी रोक से डिवाइसेज़ की कीमतें बढ़ती हैं तो ये भारतीय कंज्यूमर के लिए सही नहीं होगा.


बढ़ी कीमतें देश के लोगों के लिए ठीक नहीं 


बीते कुछ सालों पर नजर डालें तो केंद्र से लेकर राज्य सरकारों तक जो सुविधाएं देती हैं वो सब ऑनलाइन होती चली जा रही हैं. ऐसे में लैपटॉप्स और टैब्स की बढ़ी कीमतें देश के लोगों के लिए ठीक नहीं होंगी. अचानक लिए फैसले को लेकर कहा जा रहा है कि इन्वेस्टर्स के लिए ये सही मैसेज नहीं होगा. उन्हें लगेगा कि पॉलिसी के मामले में बहुत अनिश्चितता है और उन्हें बिज़नेस में सरकार का बहुत दख़ल भी नज़र आएगा. इससे जुड़े विश्लेषण में ये भी कहा गया है कि अचानक से लिए गए इस तरह के फैसले (laptop import ban) इंडिया की इकॉनमी के लिए ठीक नहीं होंगे.


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