Uttar Pradesh News: उत्तर प्रदेश की राजनीति, जो कभी बाहुबल और पुरुष वर्चस्व के लिए जानी जाती थी, अब एक बड़े बदलाव की गवाह बन रही है. प्रदेश के शासन और प्रशासन में महिलाओं की भागीदारी (Women in Governance) में पिछले कुछ सालों में अभूतपूर्व वृद्धि देखने को मिली है. यह बदलाव केवल मतदान केंद्रों तक सीमित नहीं है, बल्कि अब विधानसभा की कुर्सियों और नीति-निर्माण में भी 'आधी आबादी' का पूरा दखल दिखाई दे रहा है.
विधानसभा में रिकॉर्ड तोड़ उपस्थिति
आंकड़े इस बदलाव की तस्दीक करते हैं. 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों ने इतिहास रच दिया. इस चुनाव में कुल 47 महिला विधायक चुनकर सदन में पहुंचीं. यह आजादी के बाद से अब तक यूपी विधानसभा में महिलाओं की सबसे बड़ी संख्या है. 2017 में यह संख्या 42 थी, और उससे पहले के दशकों में यह और भी कम थी. यह आंकड़ा दर्शाता है कि राजनीतिक दल अब महिलाओं को केवल 'वोट बैंक' नहीं, बल्कि 'विनेबल कैंडिडेट' (जीतने योग्य उम्मीदवार) मान रहे हैं.
साइलेंट वोटर से 'निर्णायक शक्ति' तक
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यूपी में महिलाएं अब 'साइलेंट वोटर' बनकर चुनाव के नतीजों को पलट रही हैं. पिछले कुछ चुनावों में महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों के बराबर या कई सीटों पर उनसे ज्यादा रहा है. कानून-व्यवस्था, सुरक्षा और राशन वितरण जैसी सरकारी योजनाओं ने महिलाओं को घर की दहलीज से बाहर निकलकर अपने अधिकार का प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया है. जब महिलाएं अपनी पसंद की सरकार चुनती हैं, तो वे अपनी पसंद के प्रतिनिधि की मांग भी करती हैं.
जमीनी स्तर पर नेतृत्व
शासन में महिलाओं की धमक केवल लखनऊ तक सीमित नहीं है, बल्कि गांवों की पंचायतों में भी दिख रही है. त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण अनिवार्य है, लेकिन यूपी के कई जिलों में महिलाओं ने सामान्य सीटों पर भी जीत हासिल की है. अब 'प्रधान पति' (जहां महिला प्रधान हो लेकिन काम पति करे) की संस्कृति धीरे-धीरे कम हो रही है. पढ़ी-लिखी युवा महिलाएं अब खुद प्रधानी संभाल रही हैं और गांवों के विकास का रोडमैप तैयार कर रही हैं.
मिशन शक्ति और प्रशासनिक भूमिका
योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा चलाया गया 'मिशन शक्ति' अभियान केवल सुरक्षा तक सीमित नहीं रहा, इसने महिलाओं को प्रशासनिक रूप से भी सशक्त किया है. 'बीसी सखी' (Banking Correspondent Sakhi) योजना के तहत हजारों ग्रामीण महिलाएं बैंकिंग सेवाओं को घर-घर पहुंचा रही हैं. यह आर्थिक सशक्तिकरण उन्हें सामाजिक और राजनीतिक रूप से मुखर बना रहा है. इसके अलावा, पुलिस भर्ती में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से थानों में भी महिला नेतृत्व दिखाई देने लगा है.
हालांकि, 403 सदस्यों वाली विधानसभा में 47 की संख्या अभी भी कुल हिस्सेदारी का लगभग 12% ही है, जो 33% के लक्ष्य से दूर है. लेकिन जिस गति से ग्राफ ऊपर जा रहा है, वह एक शुभ संकेत है. उत्तर प्रदेश में महिलाएं अब केवल मूक दर्शक नहीं हैं, वे शासन की धुरी बन रही हैं. यह उदय न केवल लैंगिक समानता के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि एक विकसित उत्तर प्रदेश के निर्माण के लिए भी अनिवार्य है.