शशिशेखर त्रिपाठी। धार्मिक कार्यों में पूजन या जप के दौरान आसन का प्रयोग सदियों से चला आ रहा है। पूजा-पाठ घर में हो या किसी देव मंदिर में, बैठकर पूजन करने के लिए हम आसन का उपयोग करते हैं। शास्त्रों में हर प्रकार की मनोकामना के लिए अलग-अलग आसन बताए गए हैं। लेकिन नित्य पूजा करते समय कैसा आसन होना चाहिए, यह बात आज भी शायद बहुत कम लोग ही जानते हैं।

शास्त्रों के अनुसार मंत्र जाप करते समय हमेशा आसन बिछाना चाहिए। बिना आसन भूमि पर बैठकर मंत्र जाप करने से दुख की प्राप्ति होती है। वहीं, बांस के आसन पर बैठकर मंत्र जाप या देव-पूजा नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने से दरिद्रता आती है। पत्थर के आसन पर बैठकर पूजा या मंत्र जाप से रोग होते हैं। साथ ही लकड़ी के आसन पर बैठकर पूजा करने से दुर्भाग्य की प्राप्ति होती है। घास के आसन पर बैठकर पूजा करने से यश और कीर्ति नष्ट हो जाती है।

तिनकों के आसन पर बैठकर पूजा करने से कारोबार में अथवा नौकरी में स्थायित्व नहीं आता है और आर्थिक उन्नति भी नहीं होती है, और साथ ही धन हानि होने लगती है। पत्तों से निर्मित आसन पर भी बैठकर पूजा नहीं करनी चाहिए। कई बार ऐसा देखा गया है, कि व्यक्ति को कुछ भी मिल जाता है। वह बैठ जाता है, ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए। लकड़ी के आसन पर बैठने से दुख और आशान्ति प्राप्त होती है।

कपड़े के आसन या किसी कपड़े को आसन बनाकर बैठने से चिंता और बाधाएं आती हैं। बिना आसन पर बैठकर पूजा करना यानी खाली भूमि पर बैठकर पूजा-पाठ जप करने से दरिद्रता आती है। एक खास बात यह है कि जब भी पूजा करते हैं या कोई जाप करते हैं तो भीतर आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रवाह होता है और इस सकारात्मक ऊर्जा का संचय करना बहुत ही आवश्यक होता है। इसलिए आसन का महत्व बहुत अधिक होता है।

आसान शुद्ध और सकारात्मक होते हुए, सकारात्मक ऊर्जा के लॉस होने से बचाता है। वहीं शास्त्रों में भी यह बताया गया है कि पूजन के दौरान किस प्रकार के आसन का प्रयोग करना चाहिए।

शास्त्रों में कहा गया है कि पूजन के लिए रेशम, कंबल, काष्ठ और तालपत्र के आसन का प्रयोग शुभ कार्यों के लिए करना चाहिए। आसन के लिए शास्त्रों में कई प्रकार के आसन बताए गये हैं। जिसमें से कई प्रकार के आसन तो वर्तमान परिपेक्ष में हम लोग नहीं उपयोग कर सकते हैं। पशुओं की चर्म के आसनों का प्रयोग करना अब संभव नहीं है।

ब्रह्मांड पुराण में आसनों का विशेष उल्लेख विस्तारपूर्वक मिलता है। जिस आसन पर कोई साधक साधना कर चुका है साधना के लिए पुनः उसी आसन का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इसलिए दर्शकों ध्यान रखिए घर में सभी के आसन अलग होने चाहिए। दूसरे के आसन का प्रयोग करने में दोष होता है। जो नए साधक हैं उनके लिए शुभ और मंगल नहीं होता है। इसलिए साधना के लिए साधक को सदैव नवीन आसन पर ही बैठ कर पूजा पाठ करनी चाहिए।

वैसे प्रावधान तो यह है कि मंत्रों द्वारा आसन को पवित्र एवं शुद्ध किया जाता है। जब भी पूजा करने जाएं तो जब अपना आसन उठाकर उसको अपने शीश पर लगाएं,, प्रणाम करें, और यथास्थान पर रख दें।

कौन सा आसन प्रयोग करें - - कुशा का आसन - जो व्यक्ति कुशा के आसन पर बैठकर मंत्र, जप पूजा करते हैं उन्हें शुचिता, स्वास्थ्य, तन्मयता और स्वास्थ्य मैं सदैव वृद्धि होती है, उसे अंनत फल की प्राप्ति होती है। - यह ऊर्जा के लॉस को बचाता है। कुशा का संबंध केतु से हैं और केतु दो चीजों के बीच में विरक्ति पैदा करता है। केतु देव तुल है मोक्षकारक है। -कार्य सिद्ध की पूर्ण लालसा के लिए किए जाने वाले जप कंबल के आसन में बैठकर करना, सर्वोच्च लाभदायक होता है।