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यूपी में बीजेपी को हराने के लिए अखिलेश यादव का मिशन 'MYD' क्या है? 

लोकसभा चुनाव से पहले अखिलेश अब मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक फॉर्मूले MY में अब D जोड़ने की कोशिश शुरू की है. उनकी नजर यूपी के 23 प्रतिशत उस वोट बैंक पर है जिस पर अभी तक मायावती का एकक्षत्र राज रहा है.

लोकसभा चुनाव को लेकर समाजवादी पार्टी मिशन-2024 के लिए खास रणनीति पर काम कर रही है. दरअसल अब तक MY यानी मुस्लिम-यादव फैक्टर पर काम करने वाली समाजवादी पार्टी अब MYD समीकरण बनाने में जुट गई है. इसमें मुस्लिम और यादव के साथ-साथ दलितों को भी शामिल किया जाएगा.

इस चुनावी रणनीति के तहत आगे बढ़ने की तैयारी समाजवादी पार्टी ने अंबेडकर वाहिनी बनाकर कर दी. दरअसल उत्तर प्रदेश में हमेशा से दलित वोट बैंक बड़ा फैक्टर रहा है. यूपी में दलित वोट बैंक लगभग 23 प्रतिशत है. लेकिन इसमें से चमार और जाटव जैसी जातियां अभी भी बीएसपी सुप्रीमो मायावती के साथ मजबूती से खड़ी हैं. इसलिए लगभग 20 फीसदी वोट बीएसपी को मिलते हैं.

वहीं दूसरी दलित जातियों ने बीएसपी से दूरी भी बनाई है. साल 2017 के विधानसभा चुनावों से गैर जाटव दलित जातियों का एक बड़ा हिस्सा बीजेपी की ओर झुका है. अब सपा की कोशिश है कि कम से कम इस पर सेंध लगाकर बीजेपी को नुकसान पहुंचाया जा सकता है. 'बाबा साहेब आंबेडकर वाहिनी' से सपा इन्हीं वोटों को हासिल करने की कोशिश में बड़े पैमाने पर दलित नेताओं को अपने पाले में कर रही है.

'बाबा साहेब अंबेडकर वाहिनी' क्या है

अखिलेश यादव ने आने वाले लोकसभा चुनाव में मुस्लिम(M), यादव (Y) और दलित (D) वोटरों को एक साथ साधने की रणनीति तैयार की है. इसी  'MYD' फैक्टर के तहत समाजवादी पार्टी ने बाबा साहेब अंबेडकर वाहिनी बनाया है, जिसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर बीएसपी छोड़कर सपा में आए बलिया के मिठाई लाल भारती काम कर रहे हैं. मिठाई लाल भारती दलितों से जुड़े सभी मांगों और मुद्दों को समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव तक पहुंचाते हैं. इसके अलावा पार्टी हर बूथ पर एक यूथ और दलितों की भागीदारी कर रहे हैं.

कौन हैं मिठाई लाल भारती

मिठाई लाल भारती का नाम उत्तर प्रदेश में दलितों के बड़े नेताओं में शुमार है. वह बहुजन समाजवादी पार्टी के लिए काफी लंबे समय से काम करते रहे हैं. एक साल पहले उन्होंने बीएसपी से नाराजगी जताते हुए सपा का दामन थाम लिया था. मिठाई लाल भारती बीएसपी में रहने के दौरान कई प्रदेशों के प्रभारी भी रहे थे. 

दलित-ओबीसी पर खास फोकस

समाजवादी पार्टी ने पिछले कुछ सालों राज्य के दलित वोट बैंक को लुभाने के लिए कई प्रयास किए हैं. साल 2022 दिसंबर के महीने में खतौली और रामपुर में उपचुनाव से पहले पार्टी ने दलित नेता चंद्रशेखर आजाद की आज़ाद समाज पार्टी (एएसपी) ने सपा-राष्ट्रीय लोकदल गठबंधन को अपना समर्थन दिया था.

वहीं साल 2022 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से ठीक पहले 15 फरवरी को रायबरेली एक संबोधन के दौरान सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा था, ‘अन्य दलों के जाल में मत फंसो. ऐसी पार्टियां हैं जो अपना खाता भी नहीं खोल पाएंगी. बीएसपी अंबेडकरवादियों के दिखाए रास्ते से भटक गई है. वे सरकार नहीं बना पाएंगे. कांग्रेस भी सरकार नहीं बना पाएगी. इसलिए कोई गलती न करें और साइकिल (सपा सिंबल) की मदद करें.’

हिंदुस्तान टाइम्स के एक रिपोर्ट के अनुसार अखिलेश यादव ने 2022 के सितंबर में आयोजित पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन में अपनी पार्टी की रणनीति का संकेत भी दिया था, जब उन्होंने कहा था, ‘डॉ. बी.आर. अम्बेडकर और राम मनोहर लोहिया’ को सेना में शामिल होना चाहिए और ‘बहुजन समाज (दलित) बड़ी संख्या में समाजवादी पार्टी में शामिल हो रहे हैं’. 

सपा का पूरा ध्यान दलित-ओबीसी वोटों पर केंद्रित

सपा ने आने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अपना पूरा ध्यान दलित-ओबीसी वोटों पर केंद्रित किया हुआ है. इस रणनीति के तहत सपा अपने कोर वोटबैंक यादव पर मजबूत पकड़ रखते हुए अन्य पिछड़े और अति पिछड़े लोगों तक अपनी पहुंच बनाने और उनके वोटो को साधने में लगे हैं. 

समाजवादी पार्टी ने 15 बनाम 85 का फॉर्मूला बनाने के चलते ही राष्ट्रीय कार्यकारिणी में 85 फीसदी के करीब दलित-ओबीसी नेताओं को पार्टी संगठन में जगह दी गई है. राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का पद ब्राह्मण समुदाय से आने वाले किरणमय नंदा को दिया गया है, लेकिन इस संगठन में ठाकुर समुदाय से किसी भी नेता को जगह नहीं मिली है. इससे सपा की भविष्य की सियासत को समझा जा सकता है.

सपा पहले भी कर चुकी है दलितों को लुभाने की कोशिश

बता दें कि ऐसा पहली बार नहीं है कि अखिलेश यादव राज्य के दलित वोटरों को लुभाने की कोशिश की है. साल 2022 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने घोषणा की थी कि 'समाजवादी' और 'अंबेडकरवादी' बीजेपी को खत्म करने के लिए एकजुट होंगे. हालांकि उस चुनाव में सपा बीजेपी को बाहर करने में सफल नहीं हो पाई थी लेकिन उनका वोट शेयर साल 2017 की तुलना में जरूर बढ़ा था. 

साल 2017 के विधानसभा चुनाव में जहां सपा को 22 प्रतिशत वोट मिले थे वही साल 2022 के चुनाव में बढ़कर 32 प्रतिशत हो गया. अब, पार्टी ने लोकसभा चुनावों में 40 फीसदी से ज्यादा के वोट शेयर का लक्ष्य रखा है. 

2024 लोकसभा चुनाव में सपा दे सकती है बीजेपी को टक्कर 

समाजवादी पार्टी के अधिकारियों का दावा है कि साल 2024 में अगर उन्हें दलितों का साथ मिलता है तो पार्टी बीजेपी को कड़ी टक्कर दे सकती है. हालांकि लोकसभा चुनाव में 40 फीसदी से ज्यादा वोट शेयर का लक्ष्य पाने के लिए अखिलेश को दलित तक पहुंचना होगा.

अखिलेश यादव ने इसकी शुरुआत भी कर दी है. उन्होंने कई मौके पर भाषण के दौरान कांशीराम और उनके पिता मुलायम सिंह यादव के बीच के संबंधों का भी जिक्र किया है. 3 अप्रैल को दिए एक भाषण में अखिलेश कहते हैं, 'दोनों नेताओं (कांशीराम और मुलायम) ने देश में एक नई तरह की राजनीति की शुरुआत की थी. नेताजी (मुलायम) ने लोकसभा चुनाव में इटावा से समर्थन करके कांशी राम जी को संसद पहुंचने में मदद की. उसी तरह, हमारे समाज को आज एकजुट होने की जरूरत है. ”

2019 लोकसभा चुनाव में किसे कितनी मिली सीटें 

उत्तर प्रदेश की राजनीति के लिहाज से साल 2019 का लोकसभा चुनाव बेहद अहम रहा था, इस चुनाव में पहली बार भारतीय जनता पार्टी को कड़ी टक्कर देने के लिए प्रदेश की दो सबसे बड़ी सियासी अदावत वाली पार्टियों सपा-बसपा ने हाथ मिला लिया था. 

उस वक्त तक किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि मायावती और अखिलेश कभी एक साथ एक मंच पर आएंगे. 2019 लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 78 सीटों पर चुनाव लड़ा था. जिसमें से 62 सीटों पर जीत दर्ज करने में पार्टी कामयाब हो गई थी. वहीं बीजेपी की सहयोगी अपना दल एस को दो सीटों पर जीत हासिल हुई. 

उस चुनाव में सपा बसपा गठबंधन कोई खास करिश्मा नहीं दिखा पाया. बसपा के खाते में जहां 10 सीटें आई तो वहीं सपा को सिर्फ पांच सीटों पर जीत हासिल हुई थी. 

2014 लोकसभा चुनाव

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी वोट पाने के मामले में  दूसरे स्थान पर रही थी. पहले स्थान पर रही भारतीय जनता पार्टी को सूबे के 42.63 प्रतिशत मतदाताओं का वोट मिला था. जबकि समाजवादी पार्टी को 22.35 प्रतिशत वोटों के साथ पांच सीटें मिली थी.  

वहीं बसपा प्रमुख मायावती का वोट प्रतिशत 19.77 रहा. जबकि कांग्रेस को 7.53 प्रतिशत वोटों के साथ दो सीटों रायबरेली और अमेठी पर जीत मिली थी. 

2012 विधानसभा चुनाव

साल 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 29.13 प्रतिशत वोट हासिल करके राज्य में पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनाई थी. इस चुनाव की खास बात ये है कि जीत के बाद मुलायम सिंह खुद सीएम न बनते हुए अपने बेटे अखिलेश यादव को सत्ता सौंप दी. 

उस चुनाव में सपा ने 403 विधानसभा सीटों में से 224 पर जीत दर्ज की थी. वहीं  बसपा ने 80, भाजपा ने 47 और कांग्रेस ने 28 सीटें अपने नाम की थी. 

2009 लोक सभा चुनाव

साल 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में राज्य में बसपा को सबसे ज्यादा 27.20 प्रतिशत वोट मिला था. दूसरे नंबर पर सपा थी जिसे 23.26 प्रतिशत वोट मिले थे. बीजेपी को 17.50 प्रतिशत वोट और कांग्रेस को 11.65 प्रतिशत वोट मिले थे. 

साल 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस गठबंधन दोबारा केंद्र में सरकार बनाने में कामयाब हुई. इस चुनाव में 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश में सपा को 23 सीटें, कांग्रेस को 21, बसपा को 20, बीजेपी को 10 और रालोद को पांच सीटों पर जीत मिली थी. 

अखिलेश यादव ने कब कब साधा यूपी के सीएम पर निशाना 

यूपी के बजट सत्र के दौरान सपा ने योगी सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की थी. सपा अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने योगी आदित्यनाथ पर निशाना साधते हुए कहा था, ‘सबका साथ, सबका विकास’ तभी संभव है, जब उत्तर प्रदेश में जाति आधारित जनगणना कराई जाएगी.' इसके साथ ही उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बाहरी तक करार दे डाला था.  

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