रायबरेली, एबीपी गंगा: वीआइपी जिले का तमगा। सुविधाओं की लंबी फेहरिस्त का दावा। इसके बावजूद रायबरेली के लोगों को पेयजल जैसी समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। हाल यह है कि 651 बस्तियों में स्वच्छ पानी की दरकार है। यहां पानी में फ्लोराइड की मात्रा अधिक है। इसके कारण हैंडपंप तक गल गए हैं। इन बस्तियों में रहने वाले लोगों के अंग टेढ़े-मेढ़े होते जा रहे हैं।
पानी की कमी है परेशानी
पानी के मुद्दे को लेकर राजनीति भी खूब हुई है, लेकिन मुद्दा सत्ता के गलियारों से होते हुए विधानसभा और विधान परिषद में भी गूंजा। प्रस्ताव पास हुआ। राहत मिले इसके लिए योजनाओं को मंजूरी भी दे दी गई, लेकिन बीच राह में यह भी राजनीति की भेंट चढ़ गई। 102 परियोजनाओं में 21 अभी भी अधूरी हैं। इसको लेकर बजट की डिमांड भी की गई, लेकिन कुछ नहीं मिला। स्वच्छ पानी को कौन कहे, जिदगानी को महफूज रखने वाला जल भी लाखों लोगों से अबतक दूर है।
नहीं मिला बजट
वर्तमान सरकार में जिले के विकास को गति देने के लिए नोडल अधिकारी बनाए गए। समीक्षा बैठक में नोडल अधिकारी नवनीत सहगल ने जल निगम को एस्टीमेट बनाकर देने को कहा। एस्टीमेट तैयार भी हुआ, लेकिन बजट नहीं मिला। पिछले कई महीनों से सभी योजनाएं ठंडे बस्ते में है। जिले की पेयजल परियोजनाओं पर एक नजर
जिले में कुल एकल और बहुपेयजल परियोजनाएं 102
पूरी हो चुकी परियोजनाएं 81
अधूरी पड़ी एकल पेयजल इकाई 21
बजट की जरूरत 86.90 करोड़
अब तक मिला 23.84 करोड़
विवश हैं लोग
जिले में पांच साल पहले 1344 बस्तियों को चिह्नित किया गया था। लालगंज, डलमऊ, सतांव, हरचंदपुर, डीह क्षेत्र ऐसे हैं, जहां पर फ्लोराइड की काफी मात्रा है। लालगंज क्षेत्र के डकौली, पूरे नोखेराय मजरे बेहटाकला, झबरा, मधुरी, गहिरी आदि गांवों में हैंडपंप तक गल गए। नई परियोजना के तहत कार्य पूरा कर दिया गया, तो इनकी संख्या आधी रह गई। लेकिन कई ऐसे गांव आज भी ऐसे हैं, जहां पर लोग फ्लोराइड युक्त पानी पीने को विवश हो रहे हैं।
अभी भी हैं समस्याएं
पेयजल की समस्या पर प्रशासन का कहना है कि बजट की डिमांड की गई थी। बजट नहीं मिल पाने की वजह योजनाएं पूरी नहीं हो सकीं। अब तक जो भी परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं, उन्हें ग्राम पंचायतों को सौंप दिया गया है।