Uttarakhand Avalanche: उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित बद्रीनाथ धाम से आगे माणा गांव में ग्लेशियर टूटने से भारी तबाही हुई है. इस एवलांच में 8 मज़दूर काल के गाल समा गए. उत्तराखंड में फरवरी महीना एवलांच के लिए पहले से ही बदनाम रहा है. साल 2021 में भी रेणी आपदा भी इसी महीने आई थी. जिसमें सैकड़ो लोग मारे गए थे और करोड़ों रुपए की धनहानि हुई थी. इस एवलांच के बाद उत्तराखंड में आ रहे ग्लेशियर की घटना को लेकर लोगों में काफी जिज्ञासा है.
उत्तराखंड में नवंबर और दिसंबर के साथ-साथ जनवरी और फरवरी महीने में उत्तराखंड सहित पूरे हिमालय में अत्यधिक बर्फबारी होती है तो एवलांच की घटना बढ़ जाती है. सवाल उठता है कि आखिर इसी महीने क्यों होती है एवलांच? वाडिया इंस्टीट्यूट के ग्लेशियर वैज्ञानिक अजित चौहान कहते हैं ऐसा नहीं है कि एवलांच की घटना सिर्फ फरवरी महीने में ही होती है. कुछ घटनाओं को हम इसलिए याद करते हैं क्योंकि उनमें जनहानि होती है. टेंपरेचर डाउन होने की वजह से बर्फ पीछे खिसकने लगती है या गर्मी बढ़ने से ग्लेशियर पिघलने लगती है जिसकी वजह से बर्फ के हिस्से टूटने लगते हैं. एवलांच इसलिए भी खतरनाक है क्योंकि इसमें सिर्फ बर्फ नहीं बल्कि मालवा और पत्थर के टुकड़े भी साथ में टूट कर तेजी से नीचे की तरफ आते हैं. इसके सामने जो भी आता है बहा ले जाता है.
इस वजह से फरवरी ज्यादा होता है एवलांचग्लेशियर वैज्ञानिक पंकज चौहान ने कहा कि कुमाऊं हिमालय की ढाल काफी तीक्ष्ण और तीव्र है जिसकी चोटी बड़े ग्लेशियर की वहऩ क्षमता को जब सहन नहीं कर पाती है या पुराने बर्फ पर जब नए वर्ष की परत पड़ती है तो इस तरह से कई लेयर बन जाते हैं तो इसके टूटने से एवलांच का रूप ले लेता है और बर्फ का एक बड़ा भाग सैलाब के रूप में नीचे गिरता है जो सामने आने वाली सभी चीजों को बहा ले जाती है. हिमालय में बर्फबारी दिसंबर से शुरु हो जाती है और फरवरी माह तक चलती है. जनवरी-फरवरी में चोटी पर बड़ी संख्या में मौजूद होता है इसलिए एवलांच की संभावना फरवरी में बढ़ जाती है.
ग्लेशियर वैज्ञानिक के अनुसार एवलांच की एक वजह ग्लोबल वार्मिंग भी है. जिसकी वह से ग्लेशियर तेजी से पिघलने लगी है और कई अप्रत्याशित घटना भी हो रही है. इनके अनुसार एवलांच की एक वजह भूगर्भीय हलचल जैसे भूकंप भी है जिसकी वजह से ग्लेशियर टूटने का खतरा हमेशा बना रहता है. माणा एवलांच की मामले में वैज्ञानिक पंकज चौहान ने कहा अभी इस पर स्टडी की जरूरत है कि किस ग्लेशियर की टूटने की वजह क्या है?
बर्फबारी की संभावना को गंभीरता से लेने की जरूरतग्लेशियर वैज्ञानिक के अनुसार हिमस्खलन को लेकर हमें अलर्ट रहने की जरुरत है. क्योंकि पुराने ग्लेशियर पर जब नए वर्ष की परत जमती है तो उसके फिसलने या टूटने की घटनाएं होने की संभावना काफी बढ़ जाती है. इसलिए जब भी वेदर फोरकास्ट में बर्फबारी की संभावना जताई जाती है तो उसे गंभीरता से लेना चाहिए. उत्तराखंड में माणा हिमस्खलन की घटना को लेकर सरकार ने वाडिया इंस्टीट्यूट को पत्र लिखकर रिसर्च का अनुरोध किया है, देखो सरकार माणा की घटना से कितना सबक लेती है.
(अतुल चौहान की रिपोर्ट)
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