UCC News: उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code - UCC) के लागू होने के बाद, राज्य के नागरिकों को अब विवाह का पंजीकरण अनिवार्य रूप से कराना पड़ रहा है. इस नियम के चलते ऐसे हजारों दंपतियों को वर्षों पुरानी अपनी शादी का प्रमाण जुटाना पड़ रहा है, जिन्होंने अब तक अपनी शादी को कानूनी रूप से पंजीकृत नहीं कराया था. विवाह को प्रमाणित करने के लिए लोग शादी के कार्ड, पुरानी तस्वीरें, वीडियो और शपथपत्र तक का सहारा ले रहे हैं.
दीपिका और प्रदीप तिवारी की शादी को 14 वर्ष बीत चुके हैं. उनके दो बच्चे भी हैं और वे सुखी वैवाहिक जीवन बिता रहे हैं. लेकिन अब उन्हें विवाह प्रमाण पत्र बनवाने के लिए अपने विवाह के साक्ष्य जुटाने पड़ रहे हैं. क्योंकि 2010 के पहले जिन लोगों की शादी हुई थी, उनमें से अधिकांश ने विवाह का पंजीकरण नहीं कराया था. अब नए कानून के तहत सभी दंपतियों को विवाह का प्रमाण देना अनिवार्य है, ताकि विवाह कार्ड छपवाकर पंजीकरण किया जा सके.
गवाहों का लेना पड़ रहा सहारा
चूंकि पुरानी शादियों के कई मामलों में लोगों के पास ना तो विवाह कार्ड हैं और ना ही विवाह की तस्वीरें या वीडियो, ऐसे में उन्हें अपने विवाह को प्रमाणित करने के लिए गवाहों का सहारा लेना पड़ रहा है. यहां तक कि कई लोग उन पंडितों से भी संपर्क कर रहे हैं, जिन्होंने उनका विवाह सम्पन्न कराया था. पंडित या अन्य गवाहों के शपथ पत्र से शादी को प्रमाणित किया जा रहा है.
शपथ पत्र देना होगा
विवाह प्रमाण पत्र के लिए आवेदन करने से पहले लोगों को संबंधित राजस्व अधिकारी (पटवारी, नायब तहसीलदार या तहसीलदार) के समक्ष शपथ पत्र प्रस्तुत करना होता है. इस शपथ पत्र में यह प्रमाणित किया जाता है कि संबंधित पति-पत्नी वास्तव में पति-पत्नी हैं और इतने वर्षों से साथ रह रहे हैं. यह दस्तावेज विवाह पंजीकरण प्रक्रिया का हिस्सा बनता है. पिथौरागढ़ जिले में प्रतिदिन 10 से 12 लोग विवाह पंजीकरण के लिए आवेदन कर रहे हैं. प्रत्येक कार्ड के लिए लगभग 80 से 120 रुपये तक का प्रिंटिंग खर्च आ रहा है. जिले में अब तक लगभग 1100 लोग विवाह प्रमाण पत्र प्राप्त कर चुके हैं. कई मामलों में यह प्रक्रिया दिन भर का काम साबित हो रही है.
बिना प्रमाण वालों को हो रही दिक्कत
विवाह पंजीकरण कार्य में जुटे सहायक नगर आयुक्त राजेंद्र प्रसाद ने बताया कि विवाह की पुष्टि के लिए किसी न किसी दस्तावेज का होना आवश्यक है. अधिकतर लोग शादी के कार्ड या तस्वीरें पेश कर रहे हैं, लेकिन जिनके पास ये भी नहीं है, उन्हें शपथपत्र दाखिल करना पड़ रहा है. कई बार विवाह स्थल के स्थानीय लोगों को भी बतौर गवाह शामिल किया जा रहा है.
पारदर्शिता और कानूनी अधिकार मिलेंगे
राज्य सरकार के इस नियम को लागू करने के पीछे उद्देश्य समाज में पारदर्शिता और विवाह संबंधों को कानूनी रूप देने का है, जिससे विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों को कानूनी सुरक्षा मिल सके. लेकिन इसके साथ ही लोगों के सामने नई चुनौतियां भी खड़ी हो गई हैं. जिन लोगों की शादियां दशकों पहले हो चुकी हैं, वे अब पुराने दस्तावेज खोजने में लगे हैं. कहीं कार्ड मिल नहीं रहे, तो कहीं गवाह ढूंढना मुश्किल हो रहा है.
अलग से बनाया गया केंद्र
लोगों की सुविधा के लिए प्रशासन की ओर से तहसील, नगर पालिका कार्यालय और ब्लॉक स्तर पर विवाह पंजीकरण सहायता केंद्र बनाए गए हैं. इन केंद्रों पर आवेदन की प्रक्रिया, दस्तावेजों की जांच और प्रमाण पत्र जारी करने का कार्य किया जा रहा है. प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि आने वाले समय में विवाह पंजीकरण प्रक्रिया को और आसान बनाया जाएगा.
शादी के बाद 60 दिनों में कराना होगा पंजीकरण
नवविवाहित जोड़ों के लिए अब विवाह पंजीकरण करवाना अनिवार्य कर दिया गया है. अगर कोई विवाह पंजीकृत नहीं कराया जाता है तो संबंधित दंपति को कानूनी रूप से पति-पत्नी नहीं माना जाएगा. इस व्यवस्था के तहत सभी धर्मों, जातियों और वर्गों के लिए एक समान नियम लागू होंगे. विवाह की तारीख के 60 दिनों के भीतर पंजीकरण अनिवार्य होगा.
महिला अधिकारों की रक्षा को मिलेगा बल
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद विवाह पंजीकरण की यह अनिवार्यता समाज में पारदर्शिता, जवाबदेही और महिला अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक ठोस कदम है. हालांकि पुराने विवाहों के मामलों में लोगों को कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन दीर्घकालिक दृष्टिकोण से यह निर्णय समाज को अधिक संगठित और कानूनी रूप से संरक्षित बनाएगा. अब राज्य के नागरिकों को चाहिए कि वे समय रहते अपने विवाह का पंजीकरण करवाएं ताकि भविष्य में किसी प्रकार की कानूनी या सामाजिक जटिलताओं से बचा जा सके.