देश में बाघों की संख्या में लगातार हो रही बढ़ोतरी जहां वन्यजीव संरक्षण की दिशा में बड़ी सफलता मानी जा रही है, वहीं इसके साथ मानव-वन्यजीव संघर्ष की चुनौती भी तेजी से बढ़ रही है. इस स्थिति से निपटने के लिए अब भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) ने एक नई पहल शुरू की है. टाइगर रिजर्व से बाहर के जिन वन प्रभागों में बाघों की उपस्थिति दर्ज की गई है, वहां अब विशेष अध्ययन और प्रबंधन रणनीति तैयार की जाएगी.
इस परियोजना का नाम ‘मैनेजमेंट ऑफ टाइगर्स आउटसाइड टाइगर रिजर्व्स प्रोजेक्ट’ रखा गया है. इसके तहत उत्तराखंड के 13 वन प्रभागों में बाघों की गणना के साथ-साथ मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएंगे. इस पहल का उद्देश्य बाघों के सुरक्षित आवागमन और मानव बस्तियों में टकराव की घटनाओं को कम करना है.
'30 से 35 प्रतिशत बाघ टाइगर रिजर्व के बाहर के वनों में रहते हैं'
भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. बिलाल हबीब ने बताया कि देश के लगभग 30 से 35 प्रतिशत बाघ टाइगर रिजर्व के बाहर के वनों में रहते हैं. ऐसे में इन इलाकों में वैज्ञानिक अध्ययन और आधुनिक तकनीकी हस्तक्षेप जरूरी है. इस परियोजना के तहत वन कर्मियों की क्षमता वृद्धि, एआई और ड्रोन जैसी तकनीकों का उपयोग, जन भागीदारी बढ़ाने, और संवेदनशील क्षेत्रों में निगरानी तंत्र को मजबूत करने पर विशेष ध्यान दिया जाएगा.
देश में हर साल 6.1 प्रतिशत हर वर्ष हो रही बाघों में वृद्धि
देश में बाघों की संख्या वर्ष 2006 में 1411 से बढ़कर 2022 में 3682 हो गई है. इस दौरान बाघों की वृद्धि दर 6.1 प्रतिशत प्रतिवर्ष रही है. फिलहाल देश के 1,03,408 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में बाघों की उपस्थिति दर्ज की गई है. परियोजना के पहले चरण की अवधि 10 साल की होगी, जिसके अंतर्गत देशभर के 220 वन प्रभागों में कार्य किया जाएगा.
हालांकि, बाघों की संख्या बढ़ने के साथ संघर्ष की घटनाएं भी बढ़ी हैं. आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2014 से 2024 के बीच बाघों के हमलों में 68 लोगों की मौत हुई, जबकि 83 लोग घायल हुए. केवल जनवरी से जून 2025 के बीच ही 25 लोगों की मौत हुई है, जिनमें 10 लोग बाघों के हमलों में मारे गए.
परियोजना के लागू होने से उम्मीद है कि बाघों और इंसानों के बीच संतुलन बनाए रखते हुए संघर्ष की घटनाओं में कमी आएगी, और राज्य में वन्यजीव संरक्षण को नई दिशा मिलेगी.