उत्तराखंड के मानसून सत्र इस बार ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में हुई. लेकिन विपक्ष के हंगामे और शोरगुल के बीच 5315 करोड़ का अनुपूरक बजट और 8 विधेयक पारित किए गए. इस दौरान डेढ़ दिन में मात्र 2 घंटे 40 मिनट ही सदन की कार्यवाही चल सकी. इसके साथ ही दूसरे दिन सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया. 

देश में सबसे अधिक ऊंचाई पर लगभग 5410 फीट की ऊंचाई पर बसी विधानसभा पहाड़ के सपनों की ग्रीष्मकालीन राजधानी तो बनी लेकिन 11 साल में यहां मात्र 10 बार सरकार पहुंच पाई. केवल 35 दिन ही 10 सालों में सत्र चल पाया. इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि लाखों का खर्च करके भी बिना किसी मुद्दे पर चर्चा के सदन की कार्यवाही स्थगित हो गई. 

गैरसैंण में कब कितने दिन चला सत्र

साल 2014 में पहली बार गैरसैंण में टेंट में विधानसभा सत्र चला था और उसके बाद यहां पर विधानसभा भवन का शिलान्यास हुआ. पशुपालन विभाग की लगभग 47 एकड़ भूमि पर विधानसभा को तैयार किया जाना था. लगभग 11 साल पहले जो शुरुआत की गई थी वह धरातल पर अब काम ही नजर आ रही है हालत यह है कि 11 साल में यहां 10 सत्र हुए जो लगभग 35 दिन चले. 

उत्तराखंड के राजनीतिक दल दावे तो कई करते रहे लेकिन पहाड़ चढ़ने के बावजूद सदन चलाने को लेकर उनमें उदासीनता ही दिखी. अब तो ये कहा जाने लगा है कि भराड़ीसैंण में सत्र की कहानी पहले ही लिख दी जाती है. यहां सरकार सत्र चलाने पहुंचती है विपक्ष हंगामा करता है और सदन स्थगित कर दिया जाता है.

ऐसा है सदन की कार्यवाही की इतिहास

बता दें कि उत्तराखंड राज्य बनने के बाद विधानसभा के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब बिना किसी चर्चा के सत्र पूरा हो गया. इस सत्र में दोनों ही दिन प्रश्न काल तक नहीं हो पाया. नियम 58 के तहत चर्चा नहीं हो पाई और नियम 300 व नियम 53 के तहत भी कोई कार्यवाही नहीं हो सकी. चार दिन में मात्र दो दिन भी सत्र नहीं चल पाया.  

भराड़ीसैंण में अब तक के हुए सत्र में कांग्रेस सरकार में तीन बार और भाजपा सरकार में 6 बार विधानसभा सत्र हुए हैं. भाजपा की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार में सर्वाधिक 19 दिन यहां सत्र चला. हरीश रावत सरकार में 4 दिन, बहुगुणा सरकार में तीन दिन और धामी सरकार में दो बार 7 दिन का सत्र चला.  

गैरसैंण में अब तक इतने कम दिन सत्र चलने की वजह से अब तो आम जन भी कहने लगे हैं कि इसे आखिर ग्रीष्मकालीन राजधानी का दर्जा किस लिए दिया गया है. जब सरकार को यहां पर आना ही नहीं है.

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