उत्तराखंड में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया के तहत वर्ष 2003 की मतदाता सूची जारी कर दी गई है, लेकिन इसमें अपना नाम खोजना लाखों मतदाताओं के लिए बड़ी चुनौती बन गया है. वजह यह है कि वर्ष 2008 के राष्ट्रीय परिसीमन के बाद प्रदेश की 18 विधानसभा सीटें पूरी तरह बदल गई थीं, जिनके नाम और क्षेत्र वर्तमान सीटों से मेल नहीं खाते.
राज्य गठन के बाद 2002 में विधानसभा की 70 और लोकसभा की पांच सीटों का ढांचा तय हुआ था और 2003 की मतदाता सूची भी इसी आधार पर तैयार की गई थी. लेकिन 2008 के परिसीमन में सीटों की संख्या समान रखते हुए उनके भौगोलिक स्वरूप में बड़े बदलाव किए गए. परिणामस्वरूप कई पुरानी सीटें खत्म हो गईं और उनकी जगह नई सीटें अस्तित्व में आईं. ऐसे में आज का मतदाता जब अपनी वर्तमान सीट का नाम 2003 की सूची में खोजता है तो उसे वह मिलती ही नहीं.
उदाहरण के तौर पर आज देहरादून की धर्मपुर, रायपुर, चमोली की थराली, पौड़ी की चौबट्टाखाल, नैनीताल की लालकुआं व भीमताल या ऊधमसिंह नगर की कालाढूंगी सीटें 2003 में नहीं थीं. उस समय देहरादून में लक्ष्मणचौक और देहरादून, चमोली में नंद्रप्रयाग व पिंडर, पौड़ी में धूमाकोट व बीरोंखाल जैसी सीटें थीं, जो अब इतिहास हो चुकी हैं. इसी प्रकार, हरिद्वार जिले की इकबालपुर, लंढौरा, बहादराबाद और लालढांग सीटों की जगह अब रानीपुर, ज्वालापुर, झबरेड़ा, पिरान कलियर, खानपुर और हरिद्वार ग्रामीण सीटें मौजूद हैं.
पिथौरागढ़ की कनालीछीना, अल्मोड़ा की भिकियासैंण, नैनीताल की मुकतेश्वर व धारी और यूएसनगर की पंतनगर-गदरपुर व रुद्रपुर-किच्छा सीटें भी परिसीमन के साथ समाप्त हो गईं. उनकी जगह गदरपुर, रुद्रपुर, किच्छा, नानकमत्ता, लालकुआं और भीमताल जैसी नई सीटें बनाई गईं.
मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय ने मतदाताओं की सुविधा के लिए 2003 की वोटर लिस्ट वेबसाइट ceo.uk.gov.in पर उपलब्ध कर दी है. मतदाता अपने पुराने इपिक नंबर से नाम खोज सकते हैं. यदि इपिक नंबर उपलब्ध नहीं है, तो एडवांस सर्च में नाम, पिता का नाम, उम्र और पोलिंग स्टेशन की जानकारी दर्ज कर खोज की जा सकती है. यह प्रक्रिया अब एसआईआर में दस्तावेज मिलान के लिए आवश्यक है, लेकिन पुराने भौगोलिक ढांचे के कारण यह काम आम मतदाता के लिए आसान नहीं है.