उत्तराखंड में अब ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व की धरोहरों को संरक्षण देने की दिशा में एक नई पहल शुरू की जा रही है. राज्य सरकार ने फैसला लिया है कि निजी पुरानी मूर्तियां, पांडुलिपियां, ताम्रपत्र, शिलालेख और कलाकृतियों को अब लाइसेंस दिया जाएगा. अब लोगो को उनका मालिकाना हक भी दिया जाएगा. बता दें कि सरकार का मकसद है कि इन धरोहरों को लोग छुपा कर रखने के बजाय, उनको म्यूजियम में रखा जाए ताकि लोग उनको देख सके और समझ सके. इन सभी घरों में रखी गई कला कृतियों वैज्ञानिक तरीके से अध्ययन किया जाएगा और उसका डिजिटल डेटाबेस भी तैयार किया जाएगा. राज्य सरकार की इस योजना को धरातल पर संस्कृति विभाग उतारेगा.
हमारे सूत्रों के अनुसार, राज्य सरकार केंद्र सरकार से अनुरोध करने जा रही है कि भारतीय पुरातत्व अधिनियम में आवश्यक संशोधन किए जाएं, ताकि राज्यों को अपने स्तर पर लाइसेंस जारी करने और धरोहरों के मालिकाना हक की देने में आसानी हो. मौजूदा वक्त में भारतीय पुरातत्व अधिनियम 1958 के अंतर्गत यदि कोई व्यक्ति किसी 100 साल से पुरानी धरोहर को अपने पास रखता है तो उसे वो धरोहर कानूनन तरीके से रखने का अधिकारी नहीं है. इसकी वजह से कई धरोहरों को लोग छिपाकर रखते हैं या चोरी छिपे बेच देते हैं.
तैयार किया जाएगा डिजिटल डेटाबेसप्रदेश के हर जिले में एक विशेष अभियान चलाकर यह जानकारी जमा की जाएगी की किसके पास कौन कौन सी प्राचीन वस्तुएं हैं. इन वस्तुओं की पहचान, उनका विवरण, उनका समय निर्धारण और उनका ऐतिहासिक महत्व दर्ज कर डिजिटल डेटाबेस तैयार किया जाएगा. इसके लिए पुरातत्व विशेषज्ञों और इतिहासकारों की एक टीम बनाई जाएगी, जो यह तय करेगी कि कौन सी वस्तु का वास्तव में पुरातात्विक महत्व है.
राज्य के प्रमुख पर्यटन स्थलों पर 'विरासत घर' बनाए जाएंगे, ये छोटे म्यूजियम की तरह होंगे. यहां स्थानीय लोगों द्वारा उपलब्ध कराई गई धरोहरों को रखा जाएगा. इससे न केवल इन वस्तुओं का संरक्षण हो सकेगा, बल्कि यह स्थानीय पर्यटन को भी बढ़ावा देगी. साथ ही, स्कूली और विश्वविद्यालयी छात्र यहां आकर ऐतिहासिक ज्ञान ले सकेंगे.
ऐतिहासिक सामग्रियों को कानूनी धरोहर के रूप में किया जाएगा संरक्षितराज्य के पुरातत्वविदों का कहना है कि आज भी पहाड़ों के घरों में ऐसी मूर्तियां, ताम्रपत्र, पांडुलिपियां और ऐतिहासिक सामग्रियां पड़ी हैं जिन्हें कभी न तो किसी ने देखा और न ही उनका अध्ययन किया गया. अब इन सामग्रियों को लाइसेंस प्राप्त कर ‘कानूनी धरोहर’ के रूप में संरक्षित किया जा सकेगा.
उत्तराखंड के क्षेत्रीय संरक्षण अधिकारी नैनिताल,डॉ.दिनेश चंद्र जोशी ने बताया कि यह योजना राज्य के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के लिए क्रांतिकारी सिद्ध होगी. उन्होंने कहा, वर्तमान में जिनके पास धरोहरें हैं, वे उन्हें छिपाकर रखते हैं या डर के कारण सार्वजनिक नहीं करते. लाइसेंस मिलने से उन्हें सुरक्षा और वैधानिक मान्यता मिलेगी. साथ ही, पुरातत्व विभाग को भी शोध और अध्ययन में नई जानकारी प्राप्त होगी.
अपनी धरोहर सौंपने वाले को क्या मिलेगा- कांग्रेसकांग्रेस प्रवक्ता गरिमा माहरा दसौनी ने कहा है कि सरकार का फैसला अच्छा है लेकिन ये भी बताया जाए कि सरकार उन लोगों को क्या देगी जो अपनी धरोहर सरकार को सौंपेगी. लाइसेंस से पेट नहीं भरता, कोई प्रोत्साहन राशि अगर मिलेगी तो कोई अपना कुछ देगा वरना कोई क्यों अपना कीमती सामान जिसे उसने सालों से सम्हाल कर रखा है सरकार को देगा. इसके लिए कोई प्रोत्साहन राशि भी सरकार को देनी चाहिए.