उत्तराखंड में 48 नई जातियों को अनुसूचित जाति (SC) की सूची में शामिल करने का विवाद एक बार फिर चर्चा में है. इस मुद्दे पर दायर जनहित याचिका पर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए राज्य और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. कोर्ट ने सभी संबंधित विभागों को चार हफ्ते के भीतर विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है. अगली सुनवाई 6 जनवरी को तय की गई है.
यह मामला हरिद्वार निवासी एक महिला द्वारा दायर जनहित याचिका से जुड़ा है. महिला ने 2013 और 2014 में जारी किए गए उन शासनादेशों (जीओ) को चुनौती दी है जिनमें राज्य सरकार ने 48 गैर-अनुसूचित जातियों को SC सूची में शामिल करने का निर्णय लिया था. याचिकाकर्ता का कहना है कि यह निर्णय संविधान के खिलाफ है.
याचिका में मुख्य तर्क यह दिया गया है कि संविधान के अनुच्छेद 341 के अनुसार किसी भी जाति को अनुसूचित जाति की सूची में शामिल करने अथवा हटाने का अधिकार सिर्फ भारत के राष्ट्रपति और संसद को है. राज्य सरकार को ऐसा कोई अधिकार नहीं है कि वह अपने स्तर पर किसी जाति को SC में शामिल कर दे. इसलिए 2013-14 में जारी किए गए शासनादेश असंवैधानिक हैं और इन्हें रद्द किया जाना चाहिए.
याचिकाकर्ता ने एक और गंभीर मुद्दा उठाया है. उनका कहना है कि उत्तराखंड सरकार ने 26 जनवरी 2016 को जारी राजाज्ञा के मुताबिक अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति मामलों के लिए विशेष न्यायालय (Special Courts) स्थापित नहीं किए हैं. SC/ST अत्याचार निवारण कानून के प्रभावी पालन के लिए इन न्यायालयों की स्थापना अनिवार्य है. लेकिन न्यायालय न होने की वजह से पीड़ितों को न्याय पाने में कठिनाइयाँ आ रही हैं.
गृह मंत्रालय और कानून मंत्रालय को भी कोर्ट ने भेजा नोटिस
इस मामले की गंभीरता को देखते हुए हाईकोर्ट की खंडपीठ मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंदर और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय ने केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय, कानून मंत्रालय, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के सचिवों के साथ-साथ उत्तराखंड सरकार के समाज कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव को नोटिस भेजे हैं. कोर्ट ने सभी अधिकारियों से चार हफ्ते में स्पष्ट और तथ्यपूर्ण जवाब देने को कहा है.
6 जनवरी को होने वाली अगली सुनवाई पर सभी की नजर
इस मामले के फैसले का असर पूरे राज्य की सामाजिक संरचना और नीति पर पड़ सकता है, क्योंकि यदि कोर्ट राज्य सरकार के निर्णय को अवैध मानता है, तो 48 जातियों को SC सूची से बाहर होना पड़ सकता है. अब सभी की नजर 6 जनवरी को होने वाली अगली सुनवाई पर टिकी है.