Uttarakhand News: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बालिका से रेप के आरोपी उस्मान के खिलाफ जारी अतिक्रमण नोटिस को रद्द करते हुए प्रशासन को कड़ी फटकार लगाई है. कोर्ट ने इसे सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन माना और प्रशासन को आरोपी से बिना शर्त माफी मांगने का आदेश भी जारी किया है. कोर्ट ने इस पूरे प्रकरण को अनुचित और कानून विरोधी करार दिया.

यह मामला नैनीताल में उस समय तूल पकड़ गया था, जब 12 वर्षीय बालिका से रेप के आरोपी उस्मान के खिलाफ नगर पालिका द्वारा उसके मकान को अतिक्रमण करार देते हुए केवल तीन दिन के भीतर ढहाने का नोटिस जारी कर दिया गया. इस कार्रवाई को उस्मान के अधिवक्ता डॉ. कार्तिकेय हरि गुप्ता ने नैनीताल हाईकोर्ट में चुनौती दी थी.

अधिवक्ता ने नोटिस को बताया कानून प्रक्रिया के विरुद्ध अधिवक्ता गुप्ता ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देश हैं कि किसी भी अतिक्रमण हटाने से पहले संबंधित पक्ष को 15 दिन का समय दिया जाना आवश्यक है, लेकिन इस मामले में केवल तीन दिन का अल्प समय दिया गया, जबकि आरोपी इस समय न्यायिक हिरासत में जेल में बंद है. साथ ही, यह भी बताया गया कि उस्मान जैसे कई अन्य लोगों को भी इसी प्रकार के नोटिस जारी किए गए हैं, जो कानूनी प्रक्रिया के विरुद्ध है.

इस याचिका पर सुनवाई के लिए हाईकोर्ट की विशेष खंडपीठ गठित की गई, जिसमें मुख्य न्यायधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी शामिल थे. सुनवाई के दौरान नैनीताल के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रह्लाद नारायण मीणा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अदालत में उपस्थित रहे, जबकि नगर पालिका नैनीताल के अधिशासी अधिकारी प्रथम एवं द्वितीय व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश हुए.

तीन दिन की नोटिस अवधि को कोर्ट ने बताया गलतकोर्ट ने तीन दिन की नोटिस अवधि को सरासर गलत करार देते हुए नगर पालिका से जवाब मांगा. इस पर नगर पालिका के अधिकारियों ने गलती स्वीकार करते हुए नोटिस वापस लेने की जानकारी कोर्ट को दी. कोर्ट ने इस पूरे मामले को प्रशासनिक जल्दबाज़ी और कानून की अनदेखी का गंभीर उदाहरण बताते हुए सख्त टिप्पणी की और आरोपी से सार्वजनिक रूप से बिना शर्त माफी मांगने का निर्देश दिया.

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने रेप की घटना के बाद नैनीताल में भड़के साम्प्रदायिक तनाव और हिंसक प्रदर्शनों पर गहरी नाराजगी भी जताई. कोर्ट ने साफ शब्दों में कहा कि ऐसी स्थिति को रोकने की जिम्मेदारी प्रशासन और पुलिस की होती है, लेकिन इस मामले में वे पूरी तरह असफल रहे हैं. कोर्ट ने कहा कि किसी भी आपराधिक मामले की प्रतिक्रिया के रूप में कानून व्यवस्था का उल्लंघन और साम्प्रदायिक तनाव पैदा करना लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था के लिए खतरनाक है.

हाईकोर्ट ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सहित पूरी पुलिस व्यवस्था को फटकारते हुए भविष्य में ऐसे मामलों से सख्ती से निपटने के निर्देश दिए. कोर्ट ने यह भी कहा कि हिंसक प्रदर्शन, तोड़फोड़ और अवैध दंडात्मक कार्रवाइयों को किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.

इस मामले में 6 मई को होगी अगली सुनवाईइस मामले की अगली सुनवाई की तिथि मंगलवार, 6 मई तय की गई है. अदालत ने पुलिस और नगर पालिका दोनों को कोर्ट के आदेशों के अनुपालन की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है. कोर्ट की यह सख्ती एक बार फिर उत्तराखंड में प्रशासनिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और कानून के पालन की आवश्यकता को रेखांकित करती है.

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