उत्तराखंड के दो प्रमुख टाइगर रिजर्व—राजाजी और कॉर्बेट—में सात साल के लंबे अंतराल के बाद हाथी सफारी की वापसी हो गई है. वन विभाग, राज्य प्रशासन और संबंधित परिषदों की स्वीकृति के बाद यह निर्णय लागू हुआ है, जो दर्शाता है कि राज्य अब नियंत्रित, सुरक्षित और संतुलित तरीके से हाथी सफारी को फिर से पर्यटन का हिस्सा बना रहा है. 

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बता दें कि 2018 में उत्तराखंड हाई कोर्ट ने निजी हाथियों की दयनीय स्थिति, अवैध उपयोग और व्यावसायिक शोषण को देखते हुए हाथी सफारी पर रोक लगा दी थी. बाद में 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने शर्तों सहित इसे पुनः शुरू करने की अनुमति दी, जिसके बाद नियमों, प्रशिक्षण और निगरानी की नई व्यवस्था तैयार की गई.

पर्यटकों को जंगल की गहराइयों तक ले जाएंगी हथिनियां

राजाजी टाइगर रिजर्व में सफारी फिलहाल चिल्ला जोन में संचालित होगी. यहाँ दो प्रशिक्षित और अनुभवी हथिनियां—राधा और रंगीली—सफारी में पर्यटकों को जंगल की गहराइयों तक ले जाएंगी. दोनों हाथियों को प्रतिदिन अधिकतम दो सफारियों की अनुमति दी गई है, ताकि उनकी सेहत, आराम और व्यवहारिक संतुलन पर कोई असर न पड़े. 

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अधिकारी ने बताया हाथी सफारी का उद्देश्य

अधिकारी बताते हैं कि हाथी सफारी का मुख्य उद्देश्य केवल पर्यटन नहीं है, बल्कि लोगों—विशेषकर युवाओं—को जंगल की वास्तविक पारिस्थितिकी, वन्यजीवों के नैसर्गिक आवास और संरक्षण की आवश्यकता को समझाना भी है. हाथियों की पीठ से जंगल का अनुभव करना उन क्षेत्रों तक पहुंच प्रदान करता है, जहाँ पैदल या वाहन से जाना मुश्किल होता है.

कॉर्बेट टाइगर में हाथी सफारी की तैयारी अंतिम चरण

कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में भी हाथी सफारी की तैयारियां अंतिम चरण में हैं. अनुमान है कि दिसंबर से बिजरानी और ढिकाला जैसे लोकप्रिय जोनों में सफारी शुरू हो जाएगी. इससे घाटी के पर्यटन को नई ऊर्जा मिलेगी, जो बिग बॉर्डर समुदायों और स्थानीय रोजगार पर सकारात्मक प्रभाव डालेगी.

हाथी सफारी की वापसी के साथ कड़े मानदंड लागू किए गए हैं. पिछले वर्षों में यह देखा गया कि कई निजी हाथियों की सेहत खराब थी, उन्हें पर्याप्त भोजन–पानी, आराम या चिकित्सकीय सुविधाएं नहीं मिल पाती थीं. यही वजह थी कि 2018 में इसे प्रतिबंधित किया गया था. इस बार, केवल सरकारी हाथियों को ही सफारी में शामिल किया गया है, जिन्हें वर्षों से संरक्षित माहौल में प्रशिक्षित किया गया है. इनके महावत भी विशेष प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं, ताकि किसी भी परिस्थिति में हाथियों और पर्यटकों दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.

पशु कल्याण को दी गई सर्वोच्च प्राथमिकता

वन विभाग का कहना है कि हाथी सफारी शुरू करते समय पशु कल्याण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है. हाथियों की नियमित स्वास्थ्य जांच, उचित आहार, विश्राम समय और पर्यटकों की संख्या पर सीमाएँ तय की गई हैं. साथ ही पर्यावरण प्रभावित न हो, इसके लिए सफारी मार्ग भी सावधानीपूर्वक निर्धारित किए गए हैं.

पर्यटन विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम केवल आकर्षण बढ़ाने तक सीमित नहीं है, बल्कि राज्य के वन्य संरक्षण प्रयासों को मजबूत करेगा. जब पर्यटक जंगल और वन्यजीवों को करीब से समझते हैं, तो वे संरक्षण के प्रति अधिक संवेदनशील बनते हैं. भविष्य में यह मॉडल अन्य राज्यों के लिए भी एक उदाहरण बन सकता है, जहाँ पर्यटन और संरक्षण एक साथ आगे बढ़ सकें. राजाजी और कॉर्बेट रिजर्व में हाथी सफारी की वापसी उत्तराखंड के पर्यटन के लिए नई शुरुआत है जहाँ रोमांच, प्रकृति और संरक्षण एक साथ आगे बढ़ते दिखाई देते हैं.

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