उत्तराखंड के बिजली उपभोक्ताओं पर एक बार फिर भारी आर्थिक बोझ पड़ने की आशंका गहराने लगी है. ऊर्जा निगम ने राज्य सरकार के सामने 5900 करोड़ रुपये की बड़ी मांग रखी है. निगम का कहना है कि उत्तर प्रदेश से ट्रांसफर होकर आई कई पुरानी योजनाओं का भुगतान अब तक नहीं हुआ है. इस राशि को न मिलने से निगम की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई है और इसका असर उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ सकता है.
ऊर्जा निगम के अनुसार विभाजन के समय यूपी सरकार को पावर टैक्स, वाटर टैक्स और विद्युत उपकर का बड़ा भुगतान करना था जो अब तक नहीं मिला. निगम का कहना है कि उसकी देनदारी 6000 करोड़ रुपये से अधिक हो चुकी है. ऐसे में यदि राज्य सरकार 5900 करोड़ की मांग को पूरा नहीं करती तो उसे यह राशि वसूली के रूप में उपभोक्ताओं पर डालनी पड़ सकती है.
वित्त विभाग ने इस भुगतान पर आपत्ति जताई है. शासन ने ऊर्जा निगम से स्पष्ट आधार और दस्तावेज मांगे हैं, जिनके आधार पर यह राशि मांगने का दावा किया गया है. सचिव ऊर्जा दिलीप जावलकर ने बताया कि यूपी-उत्तराखंड विभाजन के समय तैयार हुई रिपोर्ट, फाइलों और वित्तीय दायित्वों की जांच के बाद ही कोई निर्णय लिया जाएगा.
ऊर्जा निगम का कहना है कि बिजली खरीद, इंटरस्ट कॉस्ट लाइन मेंटेनेंस और अन्य खर्चों का दबाव लगातार बढ़ रहा है. यदि मांग की गई राशि नहीं मिली तो उपभोक्ताओं पर भारी बिजली दर वृद्धि लागू करनी पड़ेगी. पूर्व एमडी आर. मीणा ने भी चेतावनी दी कि इस मामले का समाधान जल्द नहीं निकला तो आम जनता को बड़ा झटका लग सकता है. सूत्रों के अनुसार हाल ही में हुई कैबिनेट बैठक में भी इस मुद्दे पर कोई फैसला नहीं हो पाया. इस बैठक में बताया गया कि यह मामला वर्षों से लंबित है और केंद्र से भी अभी तक कोई स्पष्ट निर्देश नहीं मिले हैं.
बिजली उपभोक्ताओं में बेचैनी बढ़ी
इस पूरे विवाद के कारण अब बिजली उपभोक्ताओं में बेचैनी बढ़ गई है. यदि राज्य सरकार और ऊर्जा निगम के बीच समाधान जल्द नहीं निकलता तो आने वाले समय में बिजली दरों में भारी बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है. सरकार पर अब दबाव है कि वह त्वरित निर्णय लेकर जनता को राहत दे, ताकि 5900 करोड़ रुपये का यह संभावित बोझ उपभोक्ताओं पर न पड़े.
राज्य कैबिनेट ने इस प्रस्ताव को मंजूरी नहीं दी
मूल रूप से यह पूरा मामला उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दोनों राज्यों के बीच लंबे विवाद के बाद की गई परिसंपत्तियों (Assets) के पुनर्वितरण से जुड़ा है. इसी को आधार बनाकर अब UPCL रिटर्न ऑन एसेट्स की मांग कर रहा है. शुरुआत में UPCL ने राज्य सरकार से कहा था कि वह इस राशि का भुगतान करें और इसे उन देयों से समायोजित कर दें जो राज्य सरकार को मिलने हैं लेकिन राज्य कैबिनेट ने इस प्रस्ताव को मंजूरी नहीं दी.
यूईआरसी सबसे पहले इस दावे की स्वीकार्यता की जांच करेगा
इसके बाद UPCL ने अपने बोर्ड से अनुरोध किया कि इस दावे को यूईआरसी (UERC) यानी बिजली नियामक आयोग के पास भेजने की अनुमति दी जाए. बोर्ड ने सिर्फ इतना ही मंजूर किया कि यह मामला नियामक के समक्ष रखा जा सकता है. अब यूईआरसी सबसे पहले इस दावे की स्वीकार्यता की जांच करेगा. अगर यह दावा मान्य पाया भी गया, तो भी कोई भी बिजली नियामक आयोग 20 साल पुराने देयों को एक ही साल के बिजली बिल में उपभोक्ताओं पर लादने का फैसला नहीं लेता. इसलिए यह कहना कि तुरंत 5900 करोड़ रुपये उपभोक्ताओं से वसूले जाएंगे सिर्फ अटकलें हैं.
अंतिम निर्णय आयोग (UERC) का ही होगा
अगर दावा स्वीकार किया भी जाता है और UPCL बिल प्रस्तुत करता है तब भी अंतिम निर्णय आयोग (UERC) का ही होगा. इस सुनवाई के दौरान आयोग सभी उपभोक्ता वर्गों घरेलू, व्यावसायिक, औद्योगिक को अपना पक्ष रखने का पूरा अवसर देता है. देश में अब तक एक भी उदाहरण ऐसा नहीं है जहाँ किसी बिजली नियामक आयोग ने 20 साल पुराने बकाये को एक ही वर्ष में उपभोक्ताओं पर थोप दिया हो. अर्थात, अभी इस पर कोई भी भय या भ्रम फैलाने की जरूरत नहीं है.