Uttar Pradesh News: उत्तर प्रदेश के ग्रामीण अंचलों में एक शांत लेकिन सशक्त क्रांति हो रही है. यह क्रांति किसी बड़ी फैक्ट्री या कॉर्पोरेट ऑफिस से नहीं, बल्कि गांव की पगडंडियों और चौपालों से निकल रही है. इस बदलाव की नायिकाएं हैं—सेल्फ-हेल्प ग्रुप्स (SHGs) यानी स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाएं. कभी घर की चारदीवारी तक सीमित रहने वाली ये महिलाएं आज न केवल अपना घर चला रही हैं, बल्कि उत्तर प्रदेश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था (Rural Economy) की रीढ़ बन चुकी हैं.

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18.56 लाख से ज्यादा महिलाएं 'लखपति दीदी' बनी

आंकड़े बोलते हैं सफलता की कहानी ताज़ा आंकड़ों पर नज़र डालें तो उत्तर प्रदेश में अब तक 8.3 लाख से ज्यादा स्वयं सहायता समूहों का गठन किया जा चुका है, जिनसे करोड़ों महिलाएं जुड़ी हैं. इनमें से सबसे बड़ी उपलब्धि 'लखपति दीदी' पहल है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, राज्य में 18.56 लाख से ज्यादा महिलाएं 'लखपति दीदी' बन चुकी हैं, यानी उनकी सालाना आय 1 लाख रुपये से ज्यादा हो गई है. सरकार का लक्ष्य वित्तीय साल 2026-27 तक इस संख्या को 28.92 लाख तक ले जाने का है.

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बैंकों को गांव तक ले आई 'बी.सी. सखी' गांवों में बैंकिंग सेवाओं को घर-घर पहुंचाने का जिम्मा भी अब महिलाओं ने उठा लिया है. 'बैंकिंग कॉरेस्पोंडेंट सखी' (BC Sakhi) योजना के तहत, प्रदेश में 50,000 से ज्यादा महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया है. ये 'सखियां' अब तक 31,626 करोड़ रुपये से ज्यादा का वित्तीय लेनदेन कर चुकी हैं. यह न केवल उनकी कमाई का जरिया बना है, बल्कि इससे ग्रामीण बुजुर्गों और दिव्यांगों को बैंक जाने की परेशानी से भी मुक्ति मिली है.

दुकानों का प्रबंधन SHG महिलाओं को सौंपा गया

राशन दुकान से लेकर बिजली बिल तक SHG महिलाओं की भूमिका अब सिर्फ अचार-पापड़ तक सीमित नहीं है. वे अब कोटेदार बन गई हैं और बिजली विभाग की सहयोगी भी. रिपोर्ट्स के मुताबिक, प्रदेश में लगभग 80,000 राशन की दुकानों का प्रबंधन SHG महिलाओं को सौंपा गया है. इसके अलावा, 30,100 'विद्युत सखियां' गांवों में बिजली का बिल जमा कर रही हैं, जिससे विभाग का राजस्व तो बढ़ा ही है, साथ ही इन महिलाओं को कमीशन के रूप में अच्छी आमदनी भी हो रही है.

'टेक होम राशन' और 'प्रेरणा कैंटीन' कुपोषण से लड़ने के लिए आंगनबाड़ी केंद्रों में बंटने वाला 'पोषाहार' (Take Home Ration) अब बड़ी फैक्ट्रियों में नहीं, बल्कि महिलाओं के संचालित प्लांट्स में बन रहा है. इससे लगभग 1.25 लाख महिलाओं को सीधा रोजगार मिला है. इसके साथ ही, सरकारी दफ्तरों और ब्लॉक मुख्यालयों में 'दीदी की रसोई' और 'प्रेरणा कैंटीन' के जरिए महिलाएं पौष्टिक भोजन उपलब्ध करा रही हैं और मुनाफा कमा रही हैं.

प्रदेश की तरक्की में भागीदार बन सकती हैं महिलाएं 

भविष्य की ओर उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (UPSRLM) के तहत मिल रही ट्रेनिंग और फंड ने इन महिलाओं को पंख दिए हैं. ये महिलाएं अब सिर्फ कर्ज लेने वाली (borrowers) नहीं, बल्कि उद्यमी (entrepreneurs) बनकर उभरी हैं. यह बदलाव साबित करता है कि अगर महिलाओं को सही अवसर मिले, तो वे न केवल अपना भविष्य संवार सकती हैं, बल्कि प्रदेश की तरक्की में बराबर की भागीदार बन सकती हैं.