2024 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) से पहले यूपी में नए राजनीतिक समीकरण के संकेत लगातार मिल रहे हैं. लेकिन गुरुवार को बसपा सुप्रीमो मायावती (BSP supremo Mayawati) ने एक ट्वीट किया जिसके बाद से इस चर्चा को और बल मिल गया कि उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में जल्द ही एक नया राजनीतिक समीकरण देखने को मिल सकता है जिसके केंद्र बिंदु दो साल से अधिक समय से जेल में बंद आजम खान (SP leader Azam Khan) हो सकते हैं.


मायावती ने ट्वीट में क्या कहा
सुबह आजम खान एक तरफ जहां सीतापुर जेल से सीबीआई कोर्ट में पेश होने के लिए लखनऊ आ रहे थे ठीक उसी वक्त बीएसपी सुप्रीमो मायावती की ओर से एक ट्वीट किया गया. हालांकि बीएसपी सुप्रीमो ट्वीट तो रोज करती हैं लेकिन उनका यह ट्वीट कुछ खास था. खास इसलिए था क्योंकि उसमें कुछ संकेत थे. बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने जो ट्वीट किया उसमें आजम खान का नाम लिखकर बीजेपी सरकार पर निशाना साधा गया था. अपने ट्वीट में मायावती ने साफ तौर पर लिखा कि वरिष्ठ विधायक आजम खान 2 वर्षों से भी अधिक समय से जेल में बंद हैं, ऐसा प्रतीत होता है कि न्याय का गला घोंटा जा रहा है.






क्या है ट्वीट का महत्व
प्रदेश में नए सियासी गठजोड़ की चर्चा तो सियासी गलियारों में कई दिनों से है लेकिन एक धुंधली सी तस्वीर सामने आती दिखी है. मायावती ने भले ही आजम खान को लेकर सुप्रीम कोर्ट की सरकार पर की गई टिप्पणी के बाद अपनी हमदर्दी जताई हो लेकिन राजनीति में टाइमिंग बहुत महत्व रखती है और इस वक्त आजम खान अखिलेश यादव से कितने नाराज हैं यह बात सभी को पता है. चुनाव परिणाम आने के बाद से ही बीएसपी ने अपनी रणनीति में बड़े बदलाव किए हैं. पार्टी पुराने नेताओं के संपर्क में है, जबकि कुछ पुराने लोग बसपा में वापस भी आये हैं. गुड्डू जमाली उनमें से एक हैं. 


समय की नजाकत को समझा
चुनाव परिणाम सामने आने के बाद शायद मायावती को भी यह महसूस हो रहा है कि मुस्लिम वोटर को अपने पाले में लाने के लिए यह जरूरी है कि किसी बड़े मुस्लिम सियासी चेहरे पर दांव आजमाया जाए और इसीलिए मायावती के इस ट्वीट को उससे जोड़ कर देखा जा रहा है. आजम खान समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव से नाराज तो हैं ही शिवपाल यादव भी लगातार आजम खान के संपर्क में हैं. मायावती समय की नजाकत को शायद समझ रही हैं तभी तो आजम खान के प्रति उनके मन में इतनी हमदर्दी दिख रही है. वरना कभी मायावती के निशाने पर आजम खान भी हुआ करते थे. 


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क्यों है आजम से वफादारी
वहीं बीएसपी का अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन इसी विधानसभा चुनाव में रहा जब पार्टी महज एक सीट पर सिमट गई. ऐसे में मायावती को यह लग रहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में ज्यादा सीटें जीतनी हैं तो दलित मुस्लिम समाज को एकसाथ एक मंच पर लाना होगा और शायद इसीलिए वह आजम खां के प्रति इतनी हमदर्दी दिखा रही हैं. 


सरकार का क्या कहना है
आमज खान के मामले पर सरकार के मंत्री साफ तौर पर कह रहे हैं कि यह न्यायपालिका का काम है, सरकार का अपना अलग काम है. किसने क्या कुछ किया है जनता ने इसका जवाब दिया है. अगर कोई इस तरह का आरोप लगा रहा है तो वह गलत है क्योंकि आज उत्तर प्रदेश में भयमुक्त वातावरण है. वहीं नए सियासी समीकरण पर सरकार के कैबिनेट मंत्री कहते हैं कि यह उनकी राजनीति है उनके मन में क्या कुछ चल रहा है इसका जवाब तो वही दे सकती हैं.


क्यों लाना चाहती हैं साथ
2022 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी ने ब्राह्मण और दलितों का अपना पुराना सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला आजमाया जो बुरी तरह फ्लॉप हुआ और बीएसपी को 403 में से केवल एक सीट पर जीत हासिल हुई. ऐसे में उन्हें अब यह लग रहा है कि आजम खान की नाराजगी का फायदा अगर उन्हें मिल जाए तो फिर क्यों ना आजम खान को अपने साथ लाया जाए.


आ सकते हैं नए सियासी समीकरण
हालांकि साथ लाने में दल बदल कानून के तहत सदस्यता भी रद्द हो सकती है इसीलिए फार्मूला यह हो सकता है कि उसी दल में रहते हुए आजम खान काम दूसरे दल के लिए करें और इसमें उनका साथ शिवपाल यादव भी दे सकते हैं. जिस तरीके से आजम खान से जेल में मुलाकात करने के बाद शिवपाल यादव ने अखिलेश यादव पर निशाना साधा था और यह साफ तौर पर कहा था कि वह आजम खान के साथ हमेशा हैं उससे इतना तो तय है कि आने वाले समय में जब कोई भी नए सियासी समीकरण सामने आएंगे तो उसमें दो नाम सबसे आगे होंगे एक आजम खान का दूसरा शिवपाल यादव का.


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