लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए अखिलेश यादव को जिस एक समीकरण पर सबसे ज्यादा भरोसा है, वो है पीडीए. लेकिन राज्यसभा चुनाव के लिए हुई वोटिंग में इसी पीडीए ने अखिलेश यादव को इतना बड़ा धोखा दे दिया कि उनके तीसरे उम्मीदवार आलोक रंजन राज्यसभा का ख्वाब संजोते ही रह गए और बीजेपी के संजय सेठ ने बाजी मार ली. तो आखिर अखिलेश यादव के पीडीए के साथ कैसे इतना बड़ा खेल हो गया, क्या इसके लिए जिम्मेदार सिर्फ बीजेपी है या फिर अखिलेश यादव का पीडीए फॉर्मूला इतना मज़बूत है ही नहीं, जितना होने का दावा अखिलेश यादव करते आए हैं 


अखिलेश यादव के पीडीए फॉर्मूले में पी का मतलब है पिछड़ा. डी का मतलब है दलित और ए का मलतब है अल्पसंख्यक. यानी कि जाहिर सी बात है कि अखिलेश यादव के फॉर्मूले में अगड़े हैं ही नहीं. तो चाहे मनोज पांडेय हों या फिर राकेश पांडेय और विनोद चतुर्वेदी, ये सब के सब ब्राह्मण चेहरे हैं और ये पीडीए का हिस्सा नहीं हैं. तो इनकी बगावत को समझा जा सकता है. अभय सिंह हों या राकेश सिंह भी ठाकुर बिरादरी से आते हैं और ये भी पीडीए का हिस्सा नहीं हैं तो इनकी बगावत भी एक बार अखिलेश यादव को मंजूर हो सकती है.


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लेकिन पूजा पाल का क्या. वो तो सपा की विधायक हैं. अखिलेश यादव के फॉर्मूले पीडीए में पी यानी कि पिछड़ा का प्रतिनिधित्व करती हैं. लेकिन वो भी राज्यसभा चुनाव में सपा का साथ छोड़ गईं और बीजेपी के पक्ष में वोट किया. गायत्री प्रजापति तो मुलायम सिंह यादव के बेहद खास हुआ करते थे. उनकी पत्नी महाराजी देवी भी सपा से ही विधायक हैं. पीडीए फॉर्मूले में वो भी पी यानी कि पिछड़ा हैं. लेकिन राज्यसभा चुनाव की वोटिंग के दिन वो सदन ही नहीं पहुंचीं. वोट ही नहीं दिया तो इसका फायदा बीजेपी को हो गया. अखिलेश के तीसरे कैंडिडेट आलोक रंजन के पक्ष में ये वोट भी कम ही हो गया.


पीडीए का एक और टेस्ट बाकी
रही बात पीडीए के डी की, तो गच्चा तो डी यानी कि दलित ने भी दिया ही है. और वो नाम है बिसौली के सपा विधायक आशुतोष मौर्य का, जो दलित समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. राज्यसभा चुनाव में इन्होंने भी सपा प्रत्याशी आलोक रंजन को वोट न देकर बीजेपी के प्रत्याशी संजय सेठ के पक्ष में वोटिंग की थी. तो अखिलेश से डी भी छिटका है. और अब रही बात पीडीए के आखिरी हिस्सेदार ए यानी कि अल्पसंख्यक की, तो चाहे जानबूझकर किया हो या फिर अनजाने में किया हो, अल्पसंख्यक ने भी अखिलेश यादव का नुकसान कर ही दिया है.


और ये नुकसान करने वाले हैं बरेली के विधायक शहजिल इस्लाम. इन्होंने वोट तो किया, लेकिन बैलेट पेपर पर लिख दिया पीपी. और इसकी वजह से शहजिल इस्लाम का वोट ही खारिज हो गया, जिसका सीधा फायदा बीजेपी को हुआ. बाकी दो अल्पसंख्यक विधायक तो आरएलडी के भी पास थे, जिन्होंने वोटिंग बीजेपी के ही पक्ष में की. और अखिलेश यादव को हार के साथ संतोष करना पड़ा. तो इस तरह से अखिलेश यादव के फॉर्मूले पीडीए में ही सेंध लगाकर बीजेपी ने राज्यसभा की अपनी तीसरी सीट कंफर्म कर ली.


बाकी अभी तो राज्यसभा में पीडीए का टेस्ट हुआ है. अभी लोकसभा चुनाव से पहले पीडीए का एक और टेस्ट बाकी है. और ये टेस्ट है विधानपरिषद का, जहां 21 मार्च को चुनाव होना है. और इस चुनाव में भी सपा को उम्मीद है कि वो कम से कम तीन सीटें तो जीत ही सकती है. और इसके लिए अखिलेश यादव पीडीए के उम्मीदवारों पर ही दांव भी लगा सकते हैं. लेकिन क्या वोटिंग में भी पीडीए साथ देगा, इसका जवाब शायद अखिलेश यादव को राज्यसभा में हुई वोटिंग से मिल ही गया होगा. तभी तो अनुप्रिया पटेल ने दावा कर दिया है कि असली पीडीए एनडीए के साथ है.