इलाहाबाद हाई कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लाभ केवल उन लोगों को मिल सकते हैं जो हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म का पालन करते हैं. अदालत के अनुसार यदि कोई हिंदू अपना धर्म बदल लेता है, तो वह स्वतः ही इन विशेषाधिकारों का हकदार नहीं रहता. जस्टिस प्रवीण कुमार गिरि की एकल पीठ ने टिप्पणी की कि धर्म परिवर्तन के बाद भी SC/ST सुविधाओं को जारी रखना संविधान के साथ छल है.

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हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के सभी डीएम को निर्देश दिया कि अपने जिलों में ऐसे लोगों की पहचान करें, जिन्होंने धर्म बदलने के बावजूद SC/ST का फायदा उठाया है. इसके लिए चार महीने की समयसीमा तय की गई है. जिन्हें दोषी पाया जाएगा, उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई होगी. साथ ही महाराजगंज के जिलाधिकारी को विशेष रूप से आदेश दिया गया कि ईसाई धर्म ग्रहण कर चुके उन लोगों की तीन महीने में जांच करें जो खुद को अभी भी हिंदू बताकर SC/ST लाभ ले रहे हैं.

ईसाई धर्म अपनाने के बाद भी SC/ST एक्ट में आवेदन

यह पूरा विवाद महाराजगंज के निवासी जितेंद्र साहनी से जुड़ा है. साहनी पर आरोप है कि उन्होंने ईसाई बन जाने के बाद भी SC/ST एक्ट के तहत आवेदन किया. इसके साथ ही उन पर हिंदू देवी-देवताओं का मजाक उड़ाने, और धार्मिक वैमनस्य फैलाने के आरोप के आधार पर IPC की धारा 153-A और 295-A में कार्रवाई शुरू की गई.

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साहनी की दलील- 'मुझे फंसाया जा रहा है'

साहनी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि उन्होंने केवल अपनी जमीन पर ‘ईसा मसीह की शिक्षाओं’ का प्रचार करने की अनुमति मांगी थी. उनके वकील का कहना था कि साहनी पर लगे आरोप बेबुनियाद हैं और उन्हें जानबूझकर मामले में उलझाने की कोशिश की गई है.

हलफनामे में हिंदू, जांच में ईसाई कोर्ट की टिप्पणी

हाईकोर्ट ने कहा कि साहनी ने अपने आवेदन के समर्थन में जो हलफनामा दिया था उसमें खुद को हिंदू बताया, लेकिन पुलिस जांच के दौरान यह सामने आया कि वह काफी पहले ईसाई धर्म अपना चुके हैं. अदालत ने इस विरोधाभास पर गंभीर सवाल उठाए.

'गवाह का बयान पादरी बनकर प्रचार कर रहे थे'

एक गवाह ने कोर्ट में बताया कि साहनी, जो पहले केवट समुदाय से थे, धर्म परिवर्तन के बाद पादरी के रूप में काम कर रहे थे. गवाह ने यह भी आरोप लगाया कि वह गरीब लोगों को लालच देकर ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रेरित करते थे और हिंदू आस्थाओं का मजाक उड़ा रहे थे. यह भी कहा गया कि साहनी लोगों को यह कहकर भ्रमित करते थे कि जाति भेद खत्म नहीं होगा, लेकिन धर्म बदलने से नौकरी, व्यापार और मिशनरी की तरफ से आर्थिक सहायता मिलेगी.

'धर्म परिवर्तन के बाद नहीं जारी रह सकता एससी लाभ'

हाईकोर्ट ने संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 का उल्लेख करते हुए कहा कि कोई भी व्यक्ति जो हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म छोड़कर किसी अन्य धर्म में चला जाता है, उसे SC श्रेणी का सदस्य नहीं माना जा सकता. अदालत के अनुसार SC पहचान पूरी तरह धर्म आधारित है, इसलिए परिवर्तन के बाद इसका लाभ जारी नहीं रह सकता.

'लाभ के लिए धर्म बदलना संविधान के विरुद्ध'

अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों को उद्धृत करते हुए कहा कि यदि धार्मिक रूपांतरण केवल आरक्षण या अन्य लाभ पाने के उद्देश्य से किया जाए, तो यह संविधान की भावना के साथ धोखा है. यह SC समुदाय के लिए बनाए गए विशेष प्रावधानों को कमजोर करता है.