AIMIM Security Forfeited In UP Nagar Nikay: यूपी नगर निगम चुनावों में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए- इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने एक बार फिर अपनी किस्मत आजमाने की कोशिश की है. हालांकि एक बार फिर उन्हें खास उपलब्धि हासिल नहीं हुई. बीजेपी के खिले कमल के आगे जहां सपा की साइकिल पंचर हो गई तो वहीं AIMIM की पतंग भी कट गई. शनिवार को सामने आए नगर निगम महापौर के नतीजे में ओवैसी की पार्टी को जनता ने बुरी तरह नकार दिया. स्थिति यह रही कि एक सीट को छोड़कर बाकी सभी सीटों पर पार्टी की जमानत जब्त हो गई.


उत्तर प्रदेश के 17 नगर निगम की सीटों में से असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी पार्टी से कुल 9 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारें. इन तमाम सीटों पर पार्टी का प्रदर्शन इतना खराब रहा कि चुनाव हारने के साथ-साथ इनमें से 8 सीटों पर पार्टी की जमानत भी जब्त हो गई. सिर्फ मेरठ वह इकलौती सीट रही जहां AIMIM जीत के काफी करीब रही और जमानत जब्त नहीं हो सकी. पार्टी ने यहां से अनस को अपना प्रत्याशी बनाया था जिन्होंने 128547 वोट हासिल किए. यहां कुल 45.7 फीसदी मतदान हुआ जिसमें से पार्टी ने 22.37 प्रतिशत वोट अपने नाम कर लिए और यहां अपनी जमानत वापस लेने में कामयाब हो गई. बाकी किसी भी सीट पर एआईएमआईएम लाख का आंकड़ा नहीं छू पाई.


AIMIM नहीं छू सकी 25 हजार वोटों का भी आंकड़ा
एआईएमआईएम ने गाजियाबाद सीट से शहनाज दिलशाद को चुनावी मैदान में उतारा था. शहनाज को केवल 26 हजार 45 वोट ही मिले और पार्टी की जमानत जब्त हो गई. इस सीट पर 39.15 प्रतिशत मतदान हुए जिनमें से पार्टी को 4.31 प्रतिशत वोट ही मिले. हालांकि वोट हासिल करने के मामले में एआईएमआईएम प्रत्याशी के रूप में शहनाज दूसरे नंबर पर रहीं. प्रयागराज से प्रत्याशी मोहम्मद नकी खान तीसरे नंबर पर रहे. इन्हें सिर्फ 24023 वोट मिले. यहां कुल 31.36 प्रतिशत मतदान हुआ और पार्टी का केवल 4.86 फीसदी मत ही हासिल हुए.इसी के साथ इस सीट से भी पार्टी की जमानत जब्त हो गई. अगले स्थान पर कानपुर नगर से AIMIM की उम्मीदवार शहाना परवीन रहीं जिनको 16 हजार 3 सौ 32 मत प्राप्त हुए. इस सीट पर मतदान प्रतिशत 41.34 रहा और 1.79 फीसदी के साथ AIMIM की जमानत जब्त हो गई.


इन सीटों पर जब्त हुई AIMIM की जमानत
उत्तर प्रदेश की राम नगरी अयोध्या में भी AIMIM का प्रदर्शन काफी खराब रहा. यहां एआईएमआईएम के कैंडिडेट रेहान को 15107 वोटों में ही संतोष करना पड़ा. इस सीट पर कुल 47.92 फीसदी मतदान हुए और  9.49 हासिल वोटों के साथ यहां भी पार्टी की जमानत जब्त कर ली गई. बरेली जनपद में AIMIM प्रत्याशी मो. सरताज को सिर्फ 10 हजार 3 सौ 56 वोट मिले. कुल 41.54 फीसदी मतदान में से पार्टी की हिस्सेदारी केवल 2.94 रहा और यहां भी पार्टी अपनी जमानत वापस नहीं ले सकी. 9234 वोटों के साथ पार्टी ने गोरखपुर सीट पर भी अपनी जमानत गवां दी. यहां कुल 34.6 प्रतिशत मतदान हुए जिसमें से पार्टी को सिर्फ 2.55 फीसदी वोट मिले. 


इन सीटों पर बेहद खराब रहा प्रदर्शन
इस लिस्ट में अगला नाम अलीगढ़ सीट का रहा जहां से गुफरान नूर ने 7712 वोट हासिल किए. इस सीट पर 45.59 फीसदी वोटिंग हुई हालांकि AIMIM का मत प्रतिशत 1.88 प्रतिशत ही रहा और पार्टी को यहां से भी अपनी जमानत गवांनी पड़ी. ओवैसी की पार्टी को मुरादाबाद में सबसे कम वोट हासिल हुए. इस सीट पर पार्टी के उम्मीदवार मुस्तुजाब अहमद के खाते में सिर्फ 6 हजार 2 सौ 15 वोट आए.मुरादाबाद में कुल 43.22 फीसदी वोटिंग हुई जिसमें से एआईएमआईएम का प्रतिशत 2.13 रहा. इस तरह पार्टी के हाथ नगर निगम मेयर पद की एक भी कुर्सी नहीं आई और असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM बीजेपी के आगे चारों खाने चित्त हो गई.


क्या होता है जमानत जब्त होना?
लोकसभा चुनाव, विधानसभा चुनाव या फिर निकाय चुनाव हो इसमें टिकट मिलने वाले कैंडिडेट को नामांकन भरना पड़ता है. इस दौरान प्रत्याशी चुनाव आयोग को कुछ धनराशि जमा करवाता है. अलग-अलग चुनावों में यह रकम अलग-अलग होती है. यह रकम निर्वाचन क्षेत्र की कुल आबादी का 6वां हिस्सा होती है. अगर कोई भी प्रत्याशी अपने निर्वाचन क्षेत्र की कुल आबादी का 6वां हिस्सा हासिल नहीं कर पाता तो उसकी जमा की गई राशि चुनाव आयोग जब्त कर लेता है. अगर वह यह मत प्रतिशत हासिल करने में सफल हो जाता है तो चुनाव आयोग उसकी जमा की गई रकम उसे वापस कर देता है. 


क्यों यूपी की जनता नहीं करती AIMIM का समर्थन?
AIMIM की स्थापना 1927 में मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (MIM) के रूप में हैदराबाद राज्य के नवाब महमूद नवाज खान किलेदार ने निजाम समर्थक पार्टी के तौर पर की थी. वर्तमान में असदुद्दीन ओवैसी की इसके अध्यक्ष हैं जो कि अपनी ही पार्टी से हैदराबाद से लोकसभा सांसद भी हैं. मूल रूप से इस पार्टी का संबंध हैदराबाद से है और एक क्षेत्रीय दल होने के चलते ही उत्तर प्रदेश की जनता इसपर अपना विश्वास नहीं बना पाई है. यही वजह है कि पार्टी को यूपी निकाय चुनावों में भी करारी शिकस्त मिली है.


बार-बार हारने के बाद भी क्यों चुनाव लड़ती हैं पार्टियां?
एक सवाल जिसका उभरना लाजमी है कि आखिर बार-बार चुनाव हारने के बाद भी पार्टियां चुनाव क्यों लड़ती है? तो इसका जवाब यह है कि हर दल अपना प्रचार-प्रसार करना चाहता है और राष्ट्रीय दल का दर्जा हासिल करना चाहता है. ऐसे में राजनैतिक दल बार-बार चुनाव लड़कर अपनी किस्मत आजमाती हैं. उदाहरण के लिए असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को ही ले लें तो यूपी निकाय चुनावों से पहले पार्टी ने दिल्ली नगर निगम चुनावों में भी अपने प्रत्याशी खड़े किए थे लेकिन पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा था. उससे पहले पिछले साल 2022 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में भी ओवैसी ने राज्य की 403 सीटों में से 100 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए थे. लेकिन सभी सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था. इसके बावजूद पार्टी ने नगर निकाय चुनावों में एक बार फिर अपनी किस्मत आजमाई और परिणामस्वरूप हार गई.


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