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UP Election 2022: चुनाव में ध्रुवीकरण- वो दो फैसले जिनकी तपिश में आज भी झुलस रही है कांग्रेस

UP Election 2022: उत्तर प्रदेश के चुनावों में हर बार कुछ ऐसे मुद्दे रहते हैं, जो जनमत को प्रभावित करते हैं. आइए जानते हैं कि 1989 के चुनाव में किन मुद्दों पर ध्रुवीकरण हुआ था.

उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. वहां इस समय बीजेपी सत्ता में है. उसने 2017 के चुनाव में प्रचंड प्रदर्शन करते हुए 403 में से 312 सीटें जीत ली थीं. कहा जाता है कि मोदी लहर में बीजेपी ने इतनी सीटें जीत ली थीं. ऐसा ही प्रदर्शन बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में भी किया था. बीजेपी और उसके सहयोगियों ने 73 सीटों पर कब्जा जमाया था. इस जीत की वजह भी मोदी लहर ही बताई गई थी. आइए हम जानते हैं कि उत्तर प्रदेश के चुनावों में कब कौन सी लहर चली थी या वोटों का ध्रुवीकरण किन मुद्दों पर हुआ था. 

शाहबानो मामला

पहले बात करते हैं 1989 के विधानसभा चुनाव की. इस चुनाव के साथ लोकसभा के चुनाव भी कराए गए थे. इस चुनाव का मुख्य मुद्दा भ्रष्टाचार था. राजीव गांधी की सरकार के वित्त मंत्री वीपी सिंह ने बोफर्स के मुद्दे पर इस्तीफा दे दिया था. बाद में जो कुछ हुआ, वह इतिहास का हिस्सा है. लेकिन इस चुनाव में अदालत के एक फैसले ने ध्रुवीकरण का काम किया था. 

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इंदौर की रहने वाली शाहबानो को पति मोहम्मद खान ने 1978 में तलाक दे दिया था. पांच बच्चों की मां शाहबानो ने गुजारा भत्ता के अदालत का दरवाजा खटखटाया. सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानों मामले में 1985 में फैसला सुनाया. अदालत ने शाहबानो के पति को मोहम्मद खान को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया. उस समय देश में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार थी. इस फैसले को पलटने के लिए राजीव सरकार ने 1986 में मुस्लिम महिला विधेयक पेश किया. इससे तलाक के बाद मुस्लिम महिला को केवल तीन महीने तक गुजारा भत्ते का अधिकार मिला. कहा जाता है कि राजीव गांधी की सरकार ने मुस्लिम मर्दों को खुश करने के लिए यह फैसला लिया था. 

अयोध्या पर राजीव गांधी की सरकार में लिए गए फैसले

इस कानून के लिए राजीव गांधी की आलोचना हुई. इस पर राजीव गांधी ने हिंदुओं को भी खुश करने की कोशिश की. राजीव गांधी की ही सरकार में अदालत ने 1 फरवरी 1986 को अयोध्या में विवादित रामजन्म भूमि का ताला खुलवाने का आदेश दिया था. वहीं 1989 के चुनाव के दौरान ही राजीव गांधी सरकार ने बाबरी मस्जिद से करीब 200 फीट की दूर पर राम मंदिर का शिलान्यास करा दिया. राजीव ने कांग्रेस के चुनाव अभियान की शुरुआत भी अयोध्या से ही की थी. वहीं से उन्होंने राम राज्य लाने का वादा किया था. 

राजीव गांधी सरकार के इन फैसलों का उत्तर प्रदेश की जनता पर उलटा असर हुआ. कांग्रेस को विधानसभा में केवल 94 सीटें और 27.90 फीसदी वोट मिले. वहीं वीपी सिंह के नेतृत्व वाले जनता दल ने 208 सीटें जीत लीं. वहीं बीजेपी 57 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी. बसपा ने 13 सीटें जीती थीं. इसके पहले 1985 के चुनाव में कांग्रेस ने विधानसभा की 425 में से 269 सीटें जीती थीं. उस चुनाव में बीजेपी को केवल 16 सीटें ही मिली थीं. यूपी में 1989 के चुनाव के बाद मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और नारायण दत्त तिवारी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के अंतिम मुख्यमंत्री साबित हुए. 

राजीव गांधी का पीछा इन फैसलों ने कभी नहीं छोड़ा. हालांकि कांग्रेस ने केंद्र की सत्ता में 1991 में वापसी तो कर ली. लेकिन उत्तर प्रदेश से वह ऐसे उखड़ी की, आजतक उसके पैर वहां जम नहीं पाए हैं.   

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