जालौन. कोई भी शख्स भूखे पेट नहीं सोए इसको लेकर बुंदेलखंड के उरई में विशाल भारत संगठन द्वारा संचालित अनोखा अनाज बैंक खोला गया. यह एक ऐसा बैंक है जहां लेन-देन जमा निकासी सब कुछ अनाज के रूप में होता है और ब्याज के रूप में उसे आत्म संतुष्टि मिलती है. बनारस में चल रही इस मुहिम से प्रेरित होकर जिले में इस बैंक का तीन साल पहले शुभारम्भ किया गया. यह प्रयास आज विश्व में अपनी अलग पहचान बना चुका है.
किसी वरदान से कम नहीं है अनाज बैंक
कोरोना काल में मजलूमों को वास्तविक मदद यहां से मिली. जब जमीनी हकीकत जानने हम अनाज बैंक पहुंचे और उस मध्यमवर्गीय तबके से नीचे जीवनयापन कर रहे लोगों से मिले, तो लगा कि मजबूर लोगों के लिए यह किसी वरदान से कम नहीं है. वैसे इस अनाज बैंक की स्थापना विश्व के पहले अनाज बैंक के संस्थापक डा. राजीव श्रीवास्तव की प्रेरणा से बुंदेलखंड के शहर उरई में डा. अमिता सिंह के नेतृत्व खोला गया. यह अनाज बैंक अस्थाई तौर पर नवंबर 2017 से कार्य कर रहा है. इस बैंक का संचालन एक कॉमर्शियल बैंक की तरह ही किया जाता है. जिस में समाजसेवी और इच्क्षुक लोग अपना इस बैंक में अपना जमा खाता खुलवाते हैं और उस खाते में सहायता के तौर पर खाद्य सामग्री जमा करते हैं. जिसकी प्रॉपर एंट्री की जाती है और बैंक के तरीके ही एक लेज़र मेंटन किया जाता है. इसी तरह लाभार्थियों का भी निकासीखाता खोला जाता है, जिसमें लाभ पाने वाले व्यक्ति का प्रॉपर बैंक खाते के तरीके से उनका जमीनी निरीक्षण कर खाता खोलकर उनको अनाज बैंक के माध्यम से लाभ पहुंचाया जाता है. और बैंक की तरफ से उनकी पास बुक भी बनाई जाती है जिसमे हर महीने की राशन की एंट्री की जाती है
कोरोना काल में बढ़ चढ़कर की मदद
लाभार्थियों ने बताया कि यहां आलू, तेल, आटा समेत रसोई की सारी चीजें नि:शुल्क दी जाती हैं और समय-समय पर कपड़े भी दिए जाते हैं. कोरोनाकाल में इस बैंक से जरूरत की सभी सामग्री मिली है. बहुत अच्छा लगता है जब कोई मदद करता है. बैंक के खाताधारक ने बताया कि इस अनोखे बैंक के माध्यम से उन जरूरतमंद और गरीब लोगों को लाभ पहुंचाया जाता है जिनका कोई सहारा नहीं है. बैंक का मुख्य उद्देश्य है कि कोई भी भूखा न रहे, इसी तर्ज पर बैंक काम कर रहा है. कोरोनो काल में बैंक ने बढ़ चढ़कर गरीबो की मदद की है. निश्चित तौर पर इस बैंक ने जनपद ही नहीं पूरे बुंदेलखंड में एक अलग ही पहचान बनाई है.
कॉमर्शियल बैंक के सिस्टम को करता है फॉलो
बैंक की महाप्रबंधक डॉ अमृता सिंह ने बताया कि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ राजीव श्रीवास्तव ने इस संस्था को संचालित करते हैं, हम लोगों को मीडिया के माध्यम से इस संस्था के बारे में जानकारी हुई थी. बैंक बिल्कुल कॉमर्शियल बैंक की तरह फॉलो करते हैं. हम पैसा लेने में विश्वास नहीं रखते. आप हमें जो गेंहू, तेल, आटा, चावल देते हैं, उसका विवरण आपको जमा खाते में मिलता है. आप आज या 10 साल बाद भी उस खाते को देख सकते हैं. जरूरत मंदों के स्वाभिमान को ध्यान में रखते हुए निकासी खाता भी बनाया जाता है. जिसकी पासबुक बनती है, पूरा विवरण लेन देन उसमे अंकित होता है. हमारे चयन में निराश्रित, विधवा, बेहद गरीब और किसी घटना दुर्घटना में किसी महिला के साथ हुई अनहोनी से जुड़ी हुई महिलाओं का भी पूरा ध्यान रखा जाता है.
खातों का रख जाता है ध्यान
क्रॉस चेक भी कराया जाता है. बुजुर्ग महिलाओं को जीवन भर मदद यहां से की जाती है लेकिन कोई महिला अगर कुछ समय बाद सक्षम हो जाती है तो उसका खाता बंद कर दूसरी महिला का खाता खोल दिया जाता है. कोरोना काल में हमारा अनाज बैंक अपनी गति से चलता रहा लेकिन सम्पूर्ण लॉक डाउन के दौरान जब बहुत ही विषम परिस्थितियां थी, तब जिलाधिकारी जालौन डॉ मन्नान अख्तर ने अपनी ओर से दो बार खाद्यान उपलब्ध कराया. उनकी ओर से हमे मदद मिली बाकी हम लोग अपने ही श्रोतों से इस अनाज बैंक को संचालित करते हैं, सरकार की मदद की आशा में हमने ये बैंक नहीं खोला था. लेकिन सरकार अगर मदद करेगी तो इस बैंक को हम और अच्छी तरह से चला सकेंगे.
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