Dehradun: उत्तराखंड के जिन संरक्षित व आरक्षित वन क्षेत्रों में आमजन के आने-जाने पर पाबंदी है, वहां एकाएक मजार व समाधि स्थलों की बाढ़ सी आ गई है. जंगलों में कुछ मंदिर भी अस्थाई रूप से बनाए गए हैं.


वन विभाग मुख्यालय ने मांगी रिपोर्ट


विशेषकर तराई एवं भाबर क्षेत्र के जंगलों में पिछले 10-15 सालों में मजार व दरगाह की संख्या में तेजी आई है. हैरानी की बात ये है कि अब यहां धार्मिक आयोजन होने लगे हैं, जिससे जंगल की शांति व वन्यजीवों के अस्तित्व के लिए संकट पैदा हो गया है. इसके साथ-साथ वन व वन्यजीव प्रबंधन में भी दिक्कतें आने लगी हैं.प्रतिबंधित जंगलों में बढ़ते अतिक्रमण को देखते हुए वन विभाग मुख्यालय ने इसकी जांच करने का निर्णय लिया है. ये मजार, दरगाह व मंदिर कब स्थापित किए गए, क्या किसी को भूमि लीज पर दी गई या फिर इन्हें अवैध रूप से बनाया गया, ऐसे तमाम बिन्दुओं पर वन प्रभागों और संरक्षित क्षेत्रों के निदेशकों से रिपोर्ट मांगी जा रही है.


सबसे सुरक्षित क्षेत्र कार्बेट टाइगर रिजर्व तक हुआ निर्माण कार्य


खबरों की मानें तो जंगल के केवल आरक्षित वन क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि राजाजी से लेकर कार्बेट टाइगर रिजर्व तक के सबसे सुरक्षित कहे जाने वाले कोर जोन तक में ऐसे स्थल पनपे हैं. राजाजी टाइगर रिजर्व के मोतीचूर, श्यामपुर, धौलखंड, और कार्बेट टाइगर रिजर्व के कालागढ़, बिजरानी जैसे दूसरे क्षेत्र इसके उदाहरण हैं. ऐसी ही स्थिति तराई और भाबर के आरक्षित वन क्षेत्रों की भी है, जहां बड़ी संख्या में दरगाह, मजार, समाधियां व अस्थायी छोटे मंदिर बने हैं.


धार्मिक आयोजन से हो रहा वन्यजीवों को नुकसान


स्थानीय लोगों का कहना है कि यह सब वन विभाग की लापरवाही का नतीजा है और यह लापरवाही वन और वन्यजीवन के लिहाज से भारी पड़ने लगी है. धार्मिक आयोजनों ने वन्यजीवों की शांति को भंग करने का काम किया है. आयोजनों में तेज रोशनी और लाउडस्पीकर के इस्तेमाल से वन्यजीवों की शांति में खलल पड़ रहा है. उत्तराखंड के प्रमुख मुख्य वन संरक्षक विनोद कुमार सिंघल ने इसको लेकर कहा कि वन क्षेत्रों में स्थित धार्मिक स्थलों के संबंध में सभी वन प्रभागों और सरंक्षित क्षेत्रों के निदेशकों से रिपोर्ट मिलने पर इसका अध्ययन करने के बाद निर्णय लिया जाएगा. यदि कोई स्थल गैरकानूनी ढंग से स्थापित हुआ है तो उसे हटवाने के साथ ही अन्य कदम उठाए जाएंगे.  


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