लखनऊः बढ़ती आबादी, शहरीकरण और पेड़ों की अंधाधुंध कटान से आज पर्यावरण संकट में हैं. ज्यादातर लोग इस समस्या से वाकिफ हैं लेकिन चंद ही हैं जो इससे निपटने के लिए कदम बढ़ाते हैं. लेकिन बस्ती जिले के कप्तानगंज क्षेत्र के परिवारपुर गांव के सुधाकर सिंह को पर्यावरण से ऐसा प्रेम हुआ कि उन्होंने इसके लिए अपनी सरकारी नौकरी तक छोड़ दी. कुछ वर्षो के बाद एक अन्य नौकरी का अवसर मिला लेकिन उसे भी ठुकरा दिया.

सरकारी नौकरी छोड़, पर्यावरण की सेवा पर जोर

जयप्रभा पूर्व माध्यमिक विद्यालय भिउरा, दुबौलिया में लिपिक का पद छोड़ पूरी लगन और मेहनत के साथ पर्यावरण की सेवा में जुट गए. इनके पिता सियाराम सिंह चीनी मिल में केन मैनेजर थे. 1994 में उनकी आकस्मिक मौत के बाद चीनी मिल में भी मृतक आश्रित के रूप में नौकरी मिल रही थी, लेकिन नहीं की.

पांच एकड़ जमीन में लगाए दो हजार फलदार पौधे

समय के साथ कामयाबी भी खूब मिली. खेती किसानी में अपनी पहचान बनाने के बाद खुद की पांच एकड़ जमीन में लगभग दो हजार फलदार पौधे रोपे. यहां आम, कटहल, आंवला, यूकेलिप्टस, पापुलर, सागौन के पेड़ों के साथ फूल, पत्तियों का आकर्षक उपवन भी हैं. बच्चे की तरह एक-एक पेड़ का ख्याल भी रखते हैं. अब इनकी बगिया गांव में हरियाली बिखेरने के साथ आमदनी का जरिया भी बन गई है. सीजन में आम और कटहल के फल लाख रुपये में बिकते हैं.

हो रही फलों की बिक्री

उन्होंने इसी के जरिए कुछ लोगों को रोजगार भी दिया है. उनके अलावा लगभग 10 से 12 लोग बगिया की देखभाल में वर्ष भर जुटे रहते हैं. फलों की बिक्री से उन्हें बाकायदा पारिश्रमिक भी मिल रहा है.

सुधाकर सिंह का कहना है कि 'शुरू में पौधों की सिचाई के लिए पंपिंगसेट ही साधन था. अब सोलर पंप के सहारे बगिया और खेत की सिचाई के साथ घर की बिजली भी जल रही है. अपने गांव में बगिया लगाने का सपना शुरू से ही था. इसीलिए नौकरी छोड़ दी. अपनी मेहनत से विकसित बगिया को देखकर मन निहाल हो जाता है.'

इसे भी पढ़ेंः राम मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष ने नारियल फोड़कर किया खुदाई का शुभारंभ

CM नीतीश ने राजगीर में बन रहे गुरुद्वारे का किया निरीक्षण, जल्द काम पूरा करने का दिया निर्देश