उत्तर प्रदेश के संभल जिले में स्थित शाही जामा मस्जिद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की टीम के साथ दुर्व्यवहार के मामले में पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की है. यह मामला मस्जिद की इंतजामिया कमेटी के दो सदस्यों द्वारा एएसआई अधिकारियों को मुख्य गुंबद में प्रवेश करने से रोकने और आपत्तिजनक व्यवहार करने से जुड़ा है.

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पुलिस सूत्रों के अनुसार, एएसआई के अधीक्षण पुरातत्वविद विनोद सिंह रावत ने बताया कि उनकी टीम मेरठ सर्कल के तहत आठ अक्टूबर को मस्जिद में संरक्षण कार्य से जुड़े निरीक्षण के लिए गई थी. निरीक्षण के दौरान मस्जिद के कर्मचारियों हाफिज और मोहम्मद काशिफ खान ने एएसआई टीम को गुंबद के अंदर जाने से रोक दिया.

विरोध के बाद मजबूरन वापस लौटी एएसआई टीम

मुकदमे में आरोप है कि मौके पर एक अज्ञात व्यक्ति ने भी विवाद खड़ा करने का प्रयास किया और आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया. इस वजह से एएसआई टीम अपना निरीक्षण पूरा नहीं कर पाई और मजबूरन वापस मेरठ लौट गई. आरोप है कि इस दौरान सरकारी काम में बाधा डाली गई और माहौल बिगाड़ने की कोशिश की गई.

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हाफिज और मोहम्मद काशिफ के खिलाफ दर्ज हुई FIR

संभल थाने के प्रभारी गजेंद्र सिंह ने बताया कि शिकायत के आधार पर हाफिज और मोहम्मद काशिफ खान के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 132 (सरकारी कर्मचारी को कर्तव्य पालन से रोकने के लिए बल प्रयोग), 352 (जानबूझकर अपमान) और 351(2) (आपराधिक धमकी) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है. पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है और आरोपियों की गिरफ्तारी के प्रयास किए जा रहे हैं.

संरक्षण और निरीक्षण का काम बिना बाधा होना चाहिए पूरा- एएसआई 

स्थानीय लोगों ने कहा कि शाही जामा मस्जिद संभल का ऐतिहासिक स्थल है और यहां संरक्षण कार्य समय पर होना आवश्यक है. वहीं, मस्जिद के कर्मचारियों ने आरोपों से इंकार किया है और कहा है कि उनका उद्देश्य किसी का अपमान करना नहीं था. एएसआई अधिकारियों ने भी कहा कि संरक्षण और निरीक्षण का काम बिना बाधा पूरा होना चाहिए.

विशेषज्ञों के अनुसार, ऐतिहासिक धरोहरों का संरक्षण न केवल स्थानीय प्रशासन बल्कि केंद्र सरकार के लिए भी महत्वपूर्ण है. ऐसे मामलों में सरकारी टीमों को बिना किसी अवरोध के काम करने की अनुमति देना जरूरी है, ताकि ऐतिहासिक संरचनाओं को संरक्षित किया जा सके और भविष्य में नुकसान से बचाया जा सके.

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