लोकसभा में आज हवा में प्रदूषण को चर्चा की जाएगी. जिसमें पर समाजवादी पार्टी के सांसद रामगोपाल यादव की प्रतिक्रिया सामने आई हैं. उन्होंने कहा कि दिल्ली राजधानी है, इसकी जिम्मेदारी प्रधानमंत्री की भी बनती है. यहां की सीएम तो प्रदूषण को टेंप्रेचर बताती हैं, उन्हें तो पता ही नहीं कि प्रदूषण क्या है? 

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सपा के राज्यसभा सांसद रामगोपाल यादव ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि ये लोग प्रदूषण पर चर्चा कराएंगे. क्योंकि, दिल्ली की मुख्यमंत्री की निगाह में तो प्रदूषण है नहीं. वो तो एक्यूआई को टेंप्रेचर बता रही हैं. वो तो प्रदूषण समझती ही नहीं हैं. 

प्रदूषण हटाने की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री की भी

अब कोई पराली तो जल नहीं रही..अब सबसे ज्यादा प्रदूषण गाड़ियों और सड़कों पर जो धूल के कण है उसकी वजह से हैं इसलिए सफ़ाई रखिए.. विदेशों में जाएं तो कहीं भी सड़क पर मिट्टी नहीं दिखाई देगी. सरकार को ये देखना चाहिए, उसमें केवल दिल्ली सरकार नहीं बल्कि केंद्र सरकार की जिम्मेदारी बनती है. हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री पर भी बनती है क्योंकि दिल्ली देश की राजधानी है. आप इसकी हवा साफ करिए.

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पेट्रोल-डीजल की राशनिंग का सुझाव

सपा सांसद ने कहा कि दिल्ली में प्रतिदिन इतनी ज्यादा मोटर कारों का रजिस्ट्रेशन होता है जो दुनिया के किसी शहर में नहीं होता, हर घर में एक-एक आदमी के पास चार-चार गाड़िया है. अगर प्रदूषण कम करना है, तो मुझे लगता है कि एक व्यक्ति के पास एक ही कार होनी चाहिए और पेट्रोल व डीजल का इस्तेमाल लिमिटेड होना चाहिए और जरूरत पड़े तो सरकार को इसकी राशनिंग करनी चाहिए. 

अवधेश प्रसाद ने प्रदूषण पर कही ये बात

सरकार विपक्ष के का सुझाव ले और सुझाव के आधार पर इस बहुत ही ज्वलंत समस्या जो स्वास्थ्य के लिए और लोगों की जिंदगी से संबंधित है. सरकारी की जिम्मेदारी है लोगों के जीवन की रक्षा करना, मैं समझता हूं संसद में बात होने से रचनात्मक सुझाव लेने से समस्या का समाधान हो सकता है. 

मनरेगा से गांधी का नाम उठाने पर साधा निशाना

रामगोपाल यादव ने मनरेगा योजना से महात्मा गांधी का नाम हटाने पर सवाल उठाए और कहा कि मैं पहले ही कह चुका हूं कि इन्हें गांधी के नाम से ही नफरत हैं. इन्होंने ये नहीं देखा कि जब मनरेगा को लागू किया गया था तब न्यूनतम मजदूरी के बराबर की व्यवस्था थी. अब न्यूनतम मजदूरी 652 हैं लेकिन मनरेगा में अब भी 252 है तो ये क्या तीर मार रहे हैं. 

सरकार को इसके तहत न्यूनतम मजदूरी देनी चाहिए और राज्य सरकारों से पूछना चाहिए कि वो दे पाएंगे या नहीं. मुझे लगता है कि ये योजना को बंद करने की साजिश है. 

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