Uttar Pradesh News Today: इस्लाम धर्म में रमजान का महीना बहुत ही पाक महीना माना जाता है. इस दौरान पूरे महीने रोजे रखे जाते हैं और खुदा की इबादत की जाती है. चांद दिखने के साथ ही रमजान का महीना शुरू हो जाता है. रमजान में हर दिन सेहरी और इफ्तार का विशेष महत्व होता है.
भारत में रविवार (2 मार्च) से रमजान का पवित्र महीना आरंभ हो रहा है. इस्लाम धर्म में रमजान के महीने को बहुत ही पवित्र और खास माना जाता है. रमजान के पूरे महीने में मुस्लिम धर्म के लोग खुदा की इबादत करते हैं और रोजा रखते हैं. इस्लाम धर्म में हर वयस्क मुसलमान पर रमजान के महीने में सभी रोजे रखना अनिवार्य है.
9वें महीने में शुरू होता है रमजानइस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, रमजान साल का नौवां महीना होता है. रमजान में सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक रोजेदार रोजे रखते हैं. इस्लामी कैलेंडर के दसवें महीने यानी शव्वाल का चांद दिखाई देने पर, शव्वाल की पहली तारीख को खुदा का शुक्र अदा करते हुए ईद-उल-फितर का त्योहार बड़े ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है.
ईद-उल-फितर के दिन लोग सुबह- सुबह नए कपड़े पहन कर और खुश्बू लगाकर ईदगाह में ईद की नमाज पढ़ने जाते हैं. ईद की नमाज के बाद एक दूसरे को गले लगा कर मुबारकबाद देते हैं. इस साल देश में 28 फरवरी को चांद नजर नहीं आया था. ऐसे में इस्लाम के जानकारों और धर्मगुरुओं के मुताबिक, 28 फरवरी शाबान 1446 हिजरी को चांद दिखाई न देने की वजह से रमजान का पहला दिन 2 मार्च 2025 को होगा और पहला रोजा इसी दिन रखा जाएगा.
कब शुरू होता है रमजानइस्लाम धर्म के अनुसार, रमजान का महीना किस दिन से शुरू होगा? यह चांद दिखाई देने के बाद ही तय होता है. आम तौर पर जिस दिन सऊदी अरब के मक्का मदीना में चांद दिखाई देता है, उसके अगले दिन भारत में चांद दिखाई देता है. भारत और सऊदी अरब में चांद की तारीखों में एक दिन का अंतर आम तौर पर रहता है, लेकिन कभी- कभी दोनों जगह एक साथ भी चांद दिखाई देता है.
इस्लाम धर्म की मान्यताओं के अनुसार, दुनिया के जिस हिस्से में जिस दिन चांद दिखाई देता है, वहां रमजान का पवित्र महीना उसी दिन से शुरू हो जाता है. रमजान के महीने में इबादत का विशेष महत्व है. रमजान के दौरान रोजे रखने के साथ पांचों वक्त की नमाज और तरावीह की विशेष नमाज का आयोजन किया जाता है.
रमजान में रोजा रखने के साथ- साथ आत्मसंयम, इबादत और जरूरतमंदों की मदद और सेवा करने का बेहतरीन मौका देता है. रमजान के पवित्र महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग रोजा जरूर रखते हैं, रोजा रखने के लिए मुस्लिम धर्म के अनुयायी हर दिन सुबह सूर्योदय से पहले सेहरी करते हैं यानी सूर्योदय से पहले कुछ खाते हैं. इसके बाद पूरे दिन अन्न जल त्याग देते हैं. शाम को सूर्यास्त के तुरंत बाद इफ्तारी यानी रोजा खोलते हैं. इस तरह से पूरे दिन रोजेदार बिना कुछ खाए-पिए रहते हैं.
रमजान के तीन हिस्सों का खास महत्वरमजान के पूरे एक माह में 30 रोजे होतें है और इसको तीन प्रमुख हिस्सों में बांट दिया जाता है. पहले अशरा 10 दिन, दूसरा अशरा 10 दिन और तीसरा अशरा 10 दिन का होता है. पहले अशरे यानी 10 दिन में 'रहमत' का, दूसरे अशरे में 10 दिन 'बरकत' का और तीसरे अशरे 10 दिन में 'मगफिरत' का होता है.
रमजान के आखिरी अशरे में कुछ लोग मस्जिदों में ठहर कर दिन रात खुदा की इबादत करते हैं और कोई दूसरी बात नहीं करते. वे दिन रात मस्जिद में ही रह कर इबादत करते हैं, जिसे 'ऐतिकाफ' कहते हैं. इस महीने में मुसलमान बड़े स्तर पर दान करते है, जिसे 'जकात' कहा जाता है. कुरआन में सलात के बाद जकात ही का मकाम है.
क्या है जकात और फितराशरीयत में 'जकात' उस माल को कहते हैं, जिसे इंसान अल्लाह के दिए हुए माल में से उसके हकदारों के लिए निकालता है. जकात का शाब्दिक अर्थ 'शुद्धिकरण' होता है. इस्लाम धर्म को मानने वाला हर मुसलमान गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करने के लिए भुगतान करता है. इस्लाम धर्म में सबसे ज्यादा जकात रमजान के पाक महीने में अदा की जाती है. इस्लाम में जकात एक प्रकार का दान होता है.
हर मुसलमान अपने माल का 40वां हिस्सा दान में देता है. इसके लिए इस्लाम में कुछ नियम और शर्तों हैं. इसके अलावा हर मुसलमान को ईद- उल- फितर की नमाज से पहले 'फितरा' भी देना होता है. 'फितरा' भी एक प्रकार का दान होता है. जिस तरह जकात की रकम दी जाती है, उसी तरह फितरे की रकम भी गरीबों, विधवाओं और अनाथ बच्चों और जरूरतमंदों को दी जाती है.
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