Prayagraj News: साधु संतों की सबसे बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के पूर्व अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि की संदिग्ध मौत के मामले में एक और चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. महंत नरेंद्र गिरि की कथित खुदकुशी के मामले में यूपी पुलिस ने बिना किसी लिखित तहरीर के ही एफआईआर दर्ज कर ली थी. महंत नरेंद्र गिरि के करीबी शिष्य अमर गिरि और पवन महाराज ने जार्जटाउन थाने जाकर पुलिस को सिर्फ मौखिक सूचना ही दी थी. 

इस मौखिक सूचना में भी सिर्फ महंत नरेंद्र गिरि के निधन की जानकारी थी, किसी के खिलाफ कोई शिकायत नहीं की गई थी. इस बात के दावे करते हुए जब शिकायतकर्ता अमर गिरि और पवन महाराज ने हाईकोर्ट में हलफनामा दाखिल कर एफआईआर वापस लिए जाने और इस आधार पर किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं किए जाने की बात कही तो तमाम सवाल उठने लगे थे. कहा यह जा रहा था कि दोनों अब पलटी मार रहे हैं और पाला बदलने की तैयारी में हैं. इसी  के साथ वह डाक्यूमेंट्स मौजूद है, जो उनके इन दावों को और पुख्ता कर रहे हैं. 

क्या है पूरा मामला?इन डाक्यूमेंट्स में अमर गिरि और पवन महाराज के उस बयान की प्रमाणित कॉपी भी है, जिसे उन्होंने जांच एजेंसी सीबीआई को दिया था. सीबीआई से भी यही कहा था कि उन्होंने कोई लिखित शिकायत पुलिस में नहीं की थी, सिर्फ मौखिक रूप से सूचना दी थी. घटना के कुछ दिनों बाद ही सीबीआई को दिए गए बयान की कॉपी सामने आने से यह साफ़ हो गया है कि सूचनाकर्ता अमर गिरि और पवन महाराज अब कतई झूठ नहीं बोल रहे हैं. ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिरकार इतने हाईप्रोफाइल और चर्चित मामले में यूपी पुलिस ने बिना लिखित शिकायत के एफआईआर क्यों दर्ज की. आखिरकार इतनी जल्दबाजी क्यों दिखाई गई. 

अगर सूचनाकर्ता अमर गिरि और पवन महाराज यह दावा कर रहे हैं कि उन्होंने जार्ज टाउन थाने को सिर्फ महंत नरेंद्र गिरि का शरीर शांत होने भर की सूचना दी थी और किसी के खिलाफ कोई शिकायत नहीं की थी तो एफआईआर में आनंद गिरि को नामजद आरोपी क्यों बनाया गया. अगर महंत नरेंद्र गिरि के कथित सुसाइड नोट के आधार पर आनंद गिरि के खिलाफ केस दर्ज हुआ था तो उसी सुसाइड नोट में आद्या तिवारी और उनके बेटे संदीप तिवारी के नाम का भी जिक्र था, तो ऐसे में उनके नाम एफआईआर में क्यों नहीं डाले गए. एफआईआर में नाम न होने के बावजूद आद्या तिवारी को क्यों तुरंत घटनास्थल से ही गिरफ्तार कर लिया गया. क्यों कुछ घंटे बाद ही संदीप तिवारी की भी गिरफ्तारी कर ली गई. 

अगर कोई लिखित तहरीर तैयार भी की गई तो उसे सूचनाकर्ता अमर गिरि और पवन महाराज ने नहीं लिखी थी. यानी पंचनामें की कार्यवाही बताकर जब उनसे जिस सादे कागज़ पर दस्तखत कराए गए, उस पर बाद में किसी दूसरे से मनमाने तरीके से शिकायत लिखा ली गई और उसमे आनंद गिरि का नाम शामिल कर लिया गया.

प्रयागराज प्रशासन से की गई सुरक्षा की मांगअमर गिरि और पवन महाराज ने भी यही दावा करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में पांच पन्ने का हलफनामा दाखिल किया है और एफआईआर पर सवाल खड़े करते हुए इसे वापस लिए जाने और अपने नाम से दर्ज हुई एफआईआर के आधार पर किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं किये जाने की भी बात कही है. इतना ही नहीं अमर गिरि व पवन महाराज ने  सीबीआई को दिए गए अपने बयान में यह भी दावा किया कि महंत नरेंद्र गिरि की संदिग्ध मौत से करीब छह महीने पहले ही आरोपी बनाए गए आनंद गिरि ने प्रयागराज छोड़ दिया था. वह छह महीने से यहां आए ही नहीं थे. दोनों के यह बयान आनंद गिरि पर लगे आरोपों को कमज़ोर करने वाले हैं.

सूचनाकर्ता शिष्य अमर गिरि और पवन महाराज ने जब से हाईकोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है तब से उन पर दबाव भी बनाया जा रहा है. इस दबाव और कथित धमकियों से दोनों डरे हुए हैं और सार्वजनिक जगहों पर जाने से बच रहे हैं. दोनों सीमित लोगों के ही फोन रिसीव कर रहे हैं. अमर गिरि के वकील नीरज तिवारी और रोहित तिवारी का साफ़ कहना है कि हाईकोर्ट में हलफनामा दाखिल किये जाने के बाद से जो हालात पैदा हुए हैं, उससे दोनों खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. दोनों के जान माल को खतरा है और उनके साथ किसी तरह की अनहोनी की आशंका से कतई इंकार नहीं किया जा सकता. वकील नीरज तिवारी ने तो यूपी सरकार और प्रयागराज प्रशासन से अमर गिरि और पवन महाराज की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये जाने की भी मांग की है.

वकील नीरज तिवारी और रोहित तिवारी का साफ़ तौर पर कहना है कि अगर इनकी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं किये गए तो वह इसे  लेकर हाईकोर्ट से गुहार लगाने को मजबूर होंगे. कहा जा सकता है कि महंत नरेंद्र गिरि की संदिग्ध मौत के मामले में एक बार फिर जिस तरह से लगातार चौकाने वाले खुलासे हो रहे हैं. 

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