प्रयागराज, मोहम्मद मोईन/खुर्रम नोमानी। उत्तर प्रदेश के प्राइमरी स्कूलों में 69 हजार असिस्टेंट टीचर्स की भर्ती में नये-नये विवाद लगातार सामने आते जा रहे हैं. विवादों की वजह से ही इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने भर्ती पर रोक लगा रखी है. इस भर्ती में कभी गलत सवाल पूछने के आरोप लगते हैं तो कभी शिक्षा मित्रों का विवाद सामने आता है. कभी फॉर्म भरने में गलतियों का मुकदमा कोर्ट पहुंचता है तो कभी गरीबों को दस फीसदी आरक्षण नहीं मिलने का मामला तूल पकड़ने लगता है.


ये विवाद अभी ठंडे भी नहीं हुए कि अब अपने नाम के साथ जनरल कैटेगरी के ब्राह्मण वर्ग की टाइटल लगाने वाली अभ्यर्थी को उसकी मार्कशीट में ओबीसी दिखाए जाने का नया विवाद सामने आया है. आजमगढ़ की अभ्यर्थी अर्चना तिवारी की मार्कशीट सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रही है. वायरल मार्कशीट के साथ यह दावा किया जा रहा है कि शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियों और लापरवाही की यह एक बानगी भर है. इम्तहान कराने वाली संस्था परीक्षा नियामक प्राधिकारी और बेसिक शिक्षा परिषद ने इसी तरह तमाम गड़बड़ियां कर बड़े पैमाने पर अभ्यर्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया है.


ABP गंगा ने सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे इस मैसेज की पड़ताल की. मामला चूंकि 69 हजार शिक्षक भर्ती की परीक्षा कराने वाली संस्था परीक्षा नियामक प्राधिकारी से जुड़ा हुआ था, आरोप उसी पर लगे थे इसलिए सबसे पहले प्रयागराज में इस संस्था के दफ्तर में पड़ताल ज़रूरी थी. ABP गंगा के संवाददाता मोहम्मद मोईन जब इस दफ्तर में पहुंचे तो उनकी मुलाकात प्राधिकारी के सचिव अनिल भूषण चतुर्वेदी से हुई. उन्होंने जानकारी दी कि इस बार सभी आवेदन ऑनलाइन मंगाया गया था. इस तरह का सॉफ्टवेयर तैयार कराया गया था, जिससे आवेदकों के ऑनलाइन फॉर्म हूबहू संस्था के सर्वर के रिकॉर्ड में आ जाएं. उन्होंने यह दावा किया कि अभ्यर्थी के फॉर्म में जो विवरण दर्ज किया गया है, वही उनके रिकॉर्ड में है. किसी तरह की गलती की कोई गुंजाइश नहीं है.



ABP गंगा की टीम के अनुरोध पर उन्होंने अर्चना तिवारी की मार्कशीट के साथ ही उसके द्वारा भरे गए आवेदन फॉर्म को भी दिखाया. फॉर्म से यह साफ हो गया कि आजमगढ़ जिले की रहने वाली अर्चना ने अपने आवेदन में खुद को ओबीसी वर्ग का ही बताया है. प्राधिकारी के सचिव अनिल भूषण चतुर्वेदी के मुताबिक अगर अर्चना को अब काउंसलिंग के वक्त ओबीसी का सर्टिफिकेट पेश करना होगा. अगर वह ऐसा नहीं कर पाती हैं तो उनका आवेदन निरस्त हो सकता है.


प्रयागराज में जब यह साफ हो गया कि गलती परीक्षा नियामक प्राधिकारी की नहीं है, बल्कि अभ्यर्थी अर्चना तिवारी ने खुद ही अपने फॉर्म में ओबीसी कैटेगरी का विकल्प चुना है तो मामला और उलझ गया. हमारे दूसरे संवाददाता खुर्रम नोमानी आगे की पड़ताल के लिए आजमगढ़ में अर्चना तिवारी के घर पहुंचे. अर्चना के घर उनके परिवार वालों ने बताया कि वह लोग वास्तव में अन्य पिछड़ा वर्ग से हैं और गुसाईं जाति से ताल्लुक रखते हैं. मंदिरों में चढ़ावे की रकम को खर्च करने वाले गुसाईं जाति के लोग ओबीसी कैटेगरी में ही आते हैं. अर्चना के परिवार वालों ने यह भी बताया कि वह लोग सिर्फ दिखावे के लिए ही तिवारी टाइटल का इस्तेमाल करते हैं. पूरा विवाद सिर्फ इसलिए पैदा हुआ क्योंकि ओबीसी कैटेगरी की अर्चना ने अपने नाम के साथ तिवारी टाइटल का इस्तेमाल किया था.



हमारी पड़ताल में यह साफ हुआ है कि अर्चना तिवारी नाम की आजमगढ़ की अभ्यर्थी की मार्कशीट में उनकी जाति के साथ ओबीसी लिखा होने का वायरल हो रहा मैसेज सही है, लेकिन इसमें इम्तहान कराने वाली संस्था परीक्षा नियामक प्राधिकारी या बेसिक शिक्षा परिषद की कोई लापरवाही या गलती नहीं है. अर्चना ने अपने फॉर्म में खुद ही ओबीसी वर्ग के होने का जिक्र किया था. वह वास्तव में पिछड़े वर्ग की हैं, लेकिन सिर्फ दिखावे के लिए नाम के साथ तिवारी टाइटल का इस्तेमाल करती हैं.



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