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हर-हर गंगे के नारे के साथ संगम स्नान करने वाली प्रियंका यूपी में चली हिंदुत्व की राह पर

संगम में स्नान के बाद प्रियंका मनकामेश्वर मंदिर गईं. माथे पर तिलक लगाए और सर पर दुपट्टा लिए हुए. शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के आशीर्वाद लिए. उनके पैर छुए. शंकराचार्य ने भी उन्हें साड़ी और धार्मिक किताब दी. ये सब कर प्रियंका एक छवि गढ़ना चाहती हैं. वो भी एक साथ तीन-तीन पीढ़ियों में. बड़े बुजुर्ग उन्हें अपनी बेटी और बहू मानें.

प्रयागराजः कलाई में रुद्राक्ष, हाथ में नारियल और पुष्प, लाल रंग का सलवार कुर्ता और हर-हर गंगे के उद्घोष के बीच प्रियंका गांधी ने संगम में डुबकी लगाई. मौनी अमावस्या पर गंगा, यमुना और सरस्वती के त्रिवेणी में स्नान को बहुत पवित्र माना जाता है. प्रयागराज तो वैसे भी तीर्थराज कहा जाता है. प्रियंका ने अपने बेटे रेहान और बेटी मिराया के संग संगम पर पूजा पाठ भी किया. सूर्य देवता को अर्घ्य दिया. संगम स्नान की प्रियंका की तस्वीर देखते ही देखते सोशल मीडिया में वायरल हो गई. प्रियंका यही तो चाहती हैं. यही चाहत कांग्रेस पार्टी की भी है. संगम में डुबकी के बहाने चुनाव की लहरें पार कर प्रियंका पार्टी को सत्ता के किनारे लाना चाहती है.

प्रियंका खुद नाव चलाते हुए त्रिवेणी पर पहुंची. यूपी में पार्टी की क़िस्मत की खेवनहार भी वही हैं. क्या पता पूजा पाठ और स्नान-ध्यान से ही चुनावी नैया पार लग जाए. राजनीति में इस फ़ार्मूले को सॉफ़्ट हिंदुत्व कहा जाता है. बीजेपी के उग्र हिंदुत्व के मुक़ाबले कांग्रेस का अपना हिंदुत्व.

आख़िर कोशिश करने में क्या जाता है? यूपी में कांग्रेस के पास गंवाने के लिए कुछ नहीं बचा है. ना नुकुर करते करते प्रियंका राजनीति में आ ही गईं. क्या पता कल को चुनाव भी लड़ना पड़े. पार्टी के कई नेता कह रहे हैं कि यूपी के लिए उन्हें सीएम उम्मीदवार बना दिया जाए. जिस राज्य में कांग्रेस पिछले 31 सालों से सत्ता से बाहर है. प्रियंका, उनकी पार्टी और परिवार सब अभी संकट में हैं.

एक्शन में यूपी कांग्रेस

पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी बड़ी मुश्किल से यूपी में अपना खाता खोल पाई. राहुल तो अमेठी की सीट भी नहीं बचा पाए. अब प्रियंका उसी यूपी की प्रभारी हैं. बंद मुट्ठी लाख की, खुल गई तो ख़ाक की. प्रियंका इस मुहावरे के मर्म को भी बखूबी जानती हैं. राहुल फेल हो गए. ये बात तो अब कांग्रेस के ही बड़े बड़े नेता कहते हैं. अगर प्रियंका गांधी की आंधी नहीं चली तो फिर यही आरोप उन पर भी लगेगा. राजनीति बड़ी निर्मम होती है.

वैसे तो चुनाव बंगाल में है. लेकिन वहां कांग्रेस के झंडे बैनर तक नज़र नहीं आते हैं. सारा एक्शन तो यूपी में है. प्रियंका ने तो जैसे चुनाव प्रचार शुरू कर दिया है. रामपुर जाकर नवरीत के परिवार से मिली. जिनकी मौत दिल्ली में ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई थी. फिर सहारनपुर का दौरा. पहले शाकुंभरी माता का दर्शन किया. कहते हैं कि देवी माता किसी को ख़ाली हाथ नहीं लौटातीं हैं.

क्या कांग्रेस के लिए भी शुभ होगा?

पिछले लोकसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ ने प्रचार का श्रीगणेश यहीं से किया. बीजेपी के लिए ये शुभ रहा. क्या पता प्रियंका के लिए भी ये मंगल हो. उन्होंने भूरा देवी मंदिर में पूजा पाठ किया. फिर पुजारी ने उन्हें राजनीति में सफलता का संकल्प दिलाया. पहली बार प्रियंका ने इस तरह का संकल्प लिया. उनकी नज़र उस हिंदू वोट पर है जिसका बीजेपी से मोह भंग होने लगा है.

उनकी कोशिश हिंदू परिवारों से कनेक्ट करने की है. वो रिश्ता मज़बूत करना है जो चुनाव में उनके लिए वोट बने. फिर अपने उम्र के लोगों के लिए वे सुख दुख का साथी बनना चाहती हैं. नौजवानों के लिए वे दीदी का इमेज बना रही हैं. पर यक़ीन मानिए आज के संगम स्नान की प्रियंका की फ़ोटो चुनाव में पोस्टर बनेगी. ये फ़ोटो तो एक बहाना है. हिंदू वोटरों के दिल तक पहुंचने. वो कहावत है न कि दिल का रास्ता पेट से होकर जाता है. प्रियंका अब दिल के इस रिश्ते को वोट से जोड़ना चाहती हैं.

क्या राजनीति के फॉर्मूले को समझती है प्रियंका

याद करिए 2014 के आम चुनाव के बाद कांग्रेस ने हार के कारणों का पता करने के लिए एक कमेटी बनाई थी. कमेटी के अध्यक्ष थे एके एंटोनी. कमेटी ने कहा हिंदुओं की नाराज़गी के कारण पार्टी हार गई. रिपोर्ट के बाद भी कांग्रेस के नेता हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे. लेकिन गुजरात चुनाव में राहुल गांधी ने ये फ़ार्मूला आज़माया. मंदिर मंदिर घूम कर जनेऊ पहन कर राहुल ने तो मोदी के गुजरात में बीजेपी की नाक में दम कर दिया था. चुनाव फ़ोटो फ़िनिश तक गया. लेकिन आख़िरकार पीएम नरेन्द्र मोदी ने अपने गढ़ को बचा लिया.

प्रियंका के बारे में कहा जाता है कि वे अपनी दादी इंदिरा गांधी की तरह दिखती है. वे लोगों से बखूबी कनेक्ट भी कर लेता हैं. कभी किसी बच्चे को कंधे पर उठा लेना. तो कभी स्नेह से किसी कार्यकर्ता का हाल चाल पूछ लेना. प्रियंका राजनीति के पुराने से लेकर नए फ़ार्मूले जानती और समझती हैं. लेकिन सबसे बड़ी समस्या तो वोट बैंक की है. यूपी में हर पार्टी का अपना एक सामाजिक आधार है. बीएसपी के पास दलितों का समर्थन है. समाजवादी पार्टी के पास एमवाई का फ़ार्मूला है. मतलब मुस्लिम और यादव. बीजेपी ने अगड़ो, ग़ैर यादव पिछड़ों के साथ साथ ग़ैर जाटव दलितों को भी अपना बना लिया है. लेकिन कांग्रेस के पास अपना कुछ नहीं है. उसका परंपरागत ब्राह्मण दलित और मुस्लिम वोट बैंक बिखर गया है. संगम स्नान और रुद्राक्ष वाली प्रियंका का प्रयास कम से कम ब्राह्मणों तक पहुंचने की है.

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