पीलीभीत: पीलीभीत टाईगर रिजर्व को अंतर्राष्ट्रीय टीएक्स-2 अवॉर्ड के खिताब से नवाजा गया है. यह पुरस्कार बाघों की वंशवृद्धि मामले में तेजी से बढ़े आंकड़ों के आधार पर दिया गया है. महज चार साल के भीतर पीलीभीत टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या 25 से बढ़कर 65 हो गई है. दिल्ली से वीडियो कांफ्रेंसिग पर हुए समारोह में प्रदेश के प्रमुख वन संरक्षण को फोरम की ओर से प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया है. जिससे पूरे देश का मान बढ़ा है. टाईगर रिजर्व से जुड़े अधिकारी, कर्मचारी, व वन्यजीव प्रेमियों में उत्साह है. वहीं, पीलीभीत टाईगर रिजर्व को केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर ने भी बधाई दी है.


25 से 65 हुई बाघों की संख्या


तराई के इस छोटे से जिले पीलीभीत के जंगल में बाघ तो काफी पहले से ही रह रहे हैं. यहां के जंगल में वास करने वाले बाघों की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए विगत चार जून 2014 में पीलीभीत टाइगर रिजर्व घोषित किया गया था. उस दौरान पूरे जंगल में बाघों की कुल संख्या 25 थी. टाइगर रिजर्व बनने के बाद जंगल में बाघों की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की गाइड लाइन पर कार्य किया गया. उसी का परिणाम रहा कि जब वर्ष 2018 में प्राधिकरण ने जब यहां बाघों की गणना कराई तो पता चला कि चार साल में ही यहां बाघों की संख्या बढ़कर 65 हो गई है.


वर्चुअल समारोह का आयोजन


दिल्ली से संस्था की ओर से वर्चुअल समारोह का आयोजन किया गया. यूनाइटेड नेशनल डवलपमेंट प्रोग्राम यानि यूएनडीपी और इंटरनेशनल यूनीयन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर यानि आईयूसीएन की तरफ से आयोजित एक वर्चुअल समोराह में पीलीभीत के टाइगर रिजर्व को नंबर वन बताया गया है. बता दें कि यह संस्था बाघों पर किए जाने वाले काम और उनकी देखरेख के सिलसिले में किए जा रहे प्रयासों को देखती है. इसी क्रम में तेरह देश नेपाल, भूटान, भारत, रूस, इंडोनेशिया, थाईलैंड, बांग्लादेश, पाकिस्तान आदि में मॉनीटरिंग के बाद यह तय हुआ है कि भारत में सबसे तेजी से बाघों की संख्या अगर कहीं बढ़ी है तो वह पीलीभीत जिला है. ऐसे में पीलीभीत टाइगर रिजर्व को अंतरराष्ट्रीय ग्लोबल अवॉर्ड देने का फैसला किया गया.


जिसमें विभाग के प्रमुख वन संरक्षक (वन्यजीव) को फोरम की ओर से प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया. यह विभाग के लिए बड़ी उपलब्धि है. पीटीआर के डिप्टी डायरेक्टर नवीन खंडेलवाल का कहना है कि यहां बाघों का संरक्षण और वृद्धि संबंधित अन्य संस्थाओं के सहयोग से ही संभव हो सकी है. यह सभी के प्रयासों का नतीजा है.


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