उत्तराखंड की विश्व प्रसिद्ध नैनीझील, जो कभी अपनी प्राकृतिक सुंदरता और निर्मल जल के लिए प्रसिद्ध थी, अब जल संकट की गंभीर स्थिति का सामना कर रही है. बीते पांच वर्षों में झील का जलस्तर सबसे कम स्तर पर पहुंच गया है. हालात इतने खराब हो गए हैं कि झील के चारों ओर डेल्टा उभरने लगे हैं, जिससे इसकी सुंदरता पर ग्रहण लग गया है. अगर यही स्थिति रही, तो आने वाले महीनों में स्थानीय लोगों को पेयजल संकट का सामना करना पड़ सकता है, जबकि गर्मी के दौरान पर्यटन सीजन में पर्यटकों को भी पानी की भारी किल्लत झेलनी पड़ेगी
सिंचाई विभाग के आंकड़ों के अनुसार, मार्च 2025 में झील का जलस्तर केवल 4 फीट 7 इंच रह गया है, जो बीते पांच वर्षों में सबसे कम है. इसके पहले वर्ष 2020 में झील का जलस्तर 6 फीट 10 इंच था. वर्ष 2023 में यह घटकर 4 फीट 8 इंच रह गया था. हालांकि, इस वर्ष यह उससे भी नीचे चला गया है.
पिछले वर्षों में नैनीझील का जलस्तर
2020: 6 फीट 10 इंच
2021: 5 फीट 4 इंच
2022: 7 फीट 9 इंच
2023: 4 फीट 8 इंच
2024: 4 फीट 9 इंच
2025: 4 फीट 7 इंच
इस आंकड़े से स्पष्ट है कि झील का जलस्तर लगातार गिर रहा है, जिससे जल संकट की स्थिति गंभीर हो रही है विशेषज्ञों का मानना है कि नैनीझील में जल संकट का मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन और बारिश की कमी है. पिछले अक्टूबर से अब तक नैनीताल और आसपास के क्षेत्रों में सामान्य से 90 प्रतिशत कम वर्षा हुई है, जिससे झील में पानी की आवक घट गई है.
नैनीताल समेत पूरे कुमाऊं क्षेत्र में इस बार सर्दियों में बर्फबारी और बारिश औसत से बेहद कम हुई. इससे झील को जल स्रोतों से भरने के लिए पर्याप्त पानी नहीं मिल सका.
नैनीताल में तेजी से बढ़ रही आबादी और पर्यटन ने जल संसाधनों पर भारी दबाव डाला है. पर्यटन सीजन में लाखों पर्यटक नैनीताल पहुंचते हैं, जिससे झील का जलस्तर तेजी से घटता है.
झील के किनारे अतिक्रमण और वेटलैंड क्षेत्र में अनियंत्रित निर्माण कार्य भी झील के जल स्तर में गिरावट का एक बड़ा कारण है. झील के चारों ओर वेटलैंड क्षेत्र में लगातार निर्माण कार्य हो रहे हैं, जिससे जल का प्राकृतिक प्रवाह बाधित हो रहा है.
झील के जलग्रहण क्षेत्र में वृक्षों की कटाई और भूमि के अतिक्रमण के कारण जल संचयन में कमी आई है. पहाड़ी इलाकों में वन कटाई से भूजल स्तर तेजी से घट रहा है, जिससे झील का जलस्तर भी प्रभावित हो रहा है
नैनीताल झील का जलस्तर घटने से स्थानीय लोगों को आने वाले समय में पेयजल संकट का सामना करना पड़ सकता है. जल स्तर में गिरावट से पेयजल स्रोत प्रभावित हो रहे हैं. गर्मियों में जब पर्यटन सीजन अपने चरम पर होगा, तब जल संकट और गहरा सकता है.
जल संकट का असर नैनीताल के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले किसानों पर भी पड़ रहा है. बारिश और बर्फबारी की कमी से खेतों में सूखे जैसे हालात बन गए हैं. सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी नहीं मिल पा रहा है, जिससे फसल उत्पादन प्रभावित हो रहा है
सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता बिजेंद्र सिंह का कहना है कि झील का जलस्तर लगातार गिर रहा है, जिससे भविष्य में जल संकट गहरा सकता है. उन्होंने कहा कि यदि बारिश नहीं हुई, तो आने वाले समय में हालात और भी खराब हो सकते हैं.
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बिजेंद्र सिंह, अधिशासी अभियंता, सिंचाई विभाग ने कहा कि नैनीताल झील का जलस्तर पिछले पांच साल में सबसे कम हो गया है. बारिश की कमी और जल संचयन में गिरावट इसका प्रमुख कारण है. अगर जल्द ही उपाय नहीं किए गए तो जल संकट और गंभीर हो सकता है.'
झील को बचाने के लिए जल संचयन और संरक्षण के उपायों को प्राथमिकता देनी होगी. नैनीताल में बारिश के पानी का अधिकतम संचयन करने के लिए जलाशयों और तालाबों का निर्माण किया जाना चाहिए, ताकि झील में जल आपूर्ति बनी रहे.झील के जलग्रहण क्षेत्र में बड़े स्तर पर वृक्षारोपण अभियान चलाया जाना चाहिए, ताकि जल संचयन में सुधार हो सके. झील के वेटलैंड क्षेत्र में अनियंत्रित निर्माण पर रोक लगाई जानी चाहिए. साथ ही, झील के किनारे अतिक्रमण हटाने के लिए सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है.स्थानीय प्रशासन को पर्यटन सीजन में जल आपूर्ति को नियंत्रित करने और जल संरक्षण के लिए जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है.झील में जल गुणवत्ता बनाए रखने के लिए झील में कचरा और गंदगी फेंकने पर सख्त पाबंदी लगाई जानी चाहिए.
नैनीताल झील का घटता जलस्तर केवल झील की सुंदरता ही नहीं, बल्कि स्थानीय लोगों की जीवनरेखा के लिए भी गंभीर खतरा बनता जा रहा है. यदि समय रहते जल संचयन और संरक्षण के उपाय नहीं किए गए, तो आने वाले दिनों में नैनीताल को पेयजल संकट का सामना करना पड़ सकता है. प्रशासन को चाहिए कि वह झील के संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाए, ताकि इस प्राकृतिक धरोहर को बचाया जा सके.