Uttar Pradesh Assembly Election 2022: यूपी में विधानसभा के चुनाव जैसे-जैसे करीब आ रहे हैं सियासी दल जातीय समीकरणों को साधने में जुट गए हैं. खास तौर से राजनीति में अच्छा खासा दबदबा रखने वाले ब्राह्मण समुदाय को अपने साथ लाने की कवायद सभी दलों ने शुरू कर दी है. बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने तो प्रदेश में एक बार फिर 2007 के फॉर्मूले को अपनाने की बात करते हुए जगह-जगह ब्राह्मण जोड़ो अभियान की शुरुआत करने का ऐलान कर दिया है. जबकि समाजवादी पार्टी हो, बीजेपी हो या कांग्रेस सभी बीएसपी पर निशाना साध रहे हैं और खुद को सबसे बड़ा ब्राह्मणों का हितैषी बताने में जुट गए हैं. फिलहाल विधानसभा चुनाव से पहले इस तरह जातियों की जोड़-तोड़ की कवायद यूपी में और बढ़ेगी.


उत्तर प्रदेश में हमेशा से जातिगत सियासत देखने को मिलती रही है. 2022 के विधानसभा चुनाव में भी एक बार सियासत जातिगत समीकरणों पर ही केंद्रित होती नजर आ रही है. बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने जिस तरह से कल एक न्यूज़ एजेंसी से बातचीत के दौरान ब्राह्मणों को बीएसपी के साथ जोड़ने की बात कही उससे इतना तो तय हो गया है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में ब्राह्मणों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होगी. शायद मायावती को भी इस बात का एहसास है कि 2007 में जब वह पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई तो उसमें भी कहीं न कहीं ब्राह्मणों का ही सहयोग सबसे ज्यादा रहा. तब बीएसपी ने जो भाईचारा कमेटी बनाई और जो सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला अपनाया उसका असर यह हुआ कि तब ब्राह्मण समाज ने बीएसपी के लिए निगेटिव प्रचार नहीं किया, पार्टी के लिए कोई नकारात्मक बात नहीं बोली और तब बीएसपी ने सबसे ज्यादा लगभग 86 टिकट ब्राह्मणों को ही दिए थे. जिनमें से 41 जीतकर विधायक बने थे और बीएसपी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हुई थी. अब मायावती को 14 साल पुराना वही फॉर्मूला फिर से याद आ रहा है और इसीलिए ब्राह्मणों को रिझाने में पार्टी जुट गई है और 23 जुलाई से अयोध्या से ब्राह्मण जोड़ो अभियान की शुरुआत भी होने जा रही है.


प्रदेश में अब तक 6 ब्राह्मण मुख्यमंत्री हुए


यूपी की सियासत में ब्राह्मण हमेशा से अहम भूमिका निभाते चले आए हैं. प्रदेश में अब तक 6 ब्राह्मण मुख्यमंत्री हुए. हालांकि सभी कांग्रेस से ही हुए. 2017 में भी कांग्रेस ने शीला दीक्षित को यूपी में सीएम का चेहरा घोषित किया था. उत्तर प्रदेश की सियासत की बात करें तो बीते कुछ चुनाव में उसी पार्टी की सरकार बनी है जिसने ब्राह्मणों को सबसे ज्यादा टिकट दिया. 2007 में बीएसपी ने सबसे ज्यादा टिकट ब्राह्मणों को दिया तो सत्ता पर काबिज हो गए. 2012 में समाजवादी पार्टी ने टिकट दिया तो वह सत्ता पर काबिज हो गए और 2017 में जब बीजेपी ने सबसे ज्यादा ब्राह्मणों को टिकट दिया तो सत्ता पर काबिज हो गए.


शायद यही वजह है कि अब एक बार फिर उत्तर प्रदेश में सियासत ब्राम्हण वोट बैंक के इर्द-गिर्द घूम रही है. आंकड़ों पर नजर डालें तो 2007 में बीएसपी के 41 ब्राह्मण विधायक थे, बीजेपी के तीन ब्राह्मण विधायक, समाजवादी पार्टी के 11 ब्राह्मण विधायक और कांग्रेस के दो ब्राह्मण विधायक थे. वहीं 2012 की अगर बात करें तो बसपा के 10 ब्राह्मण विधायक, सपा के 21 ब्राह्मण विधायक, बीजेपी के छह ब्राह्मण विधायक, कांग्रेस के तीन ब्राह्मण विधायक थे. वहीं 2017 के अगर बात करें तो बसपा के तीन ब्राह्मण विधायक, बीजेपी के 46 ब्राह्मण विधायक, सपा के तीन ब्राह्मण विधायक, कांग्रेस का एक ब्राह्मण विधायक बना.


यूपी में तकरीबन 12 से 13 फ़ीसदी के आसपास ब्राह्मण वोट बैंक


हालांकि मायावती के इस ब्राह्मण प्रेम पर कभी उनके खास सिपहसलार रहे और अब सरकार में कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने निशाना साधा है. उनका साफ तौर पर कहना है कि मायावती के पास तो उनका अपना वोट बैंक नहीं बचा है. उनका कहना है कि ब्राह्मण समाज सबसे ज्यादा बुद्धजीवी है, वो किसी के बहकाने और फुसलाने से कहीं नहीं जाता. बहन मायावती का अपना जनाधार खो चुका है. उनका अपना वोट बैंक उनसे त्रस्त है. बुरे दिनों में ब्राह्मण याद आ रहे हैं. ब्राह्मण वर्ग भाजपा के साथ है, ब्राह्मणों को लॉलीपॉप देकर नहीं बुलाया जा सकता है.


वहीं राजनीतिक विश्लेषक भी ये मानते हैं कि ये बदले हुए वक़्त की बदली हुई सियासत है जहां एक बार फिर ब्राह्मण प्रेम उमड़ रहा है. उत्तर प्रदेश की अगर बात करें तो यहां तकरीबन 12 से 13 फ़ीसदी के आसपास ब्राह्मण वोट बैंक है. जाहिर है उत्तर प्रदेश में जैसे-जैसे चुनाव करीब आएंगे इसी तरह के जातिगत समीकरण साधती हुई पार्टियां नजर आएंगी और आरोप-प्रत्यारोप का ये सिलसिला और बढ़ेगा.


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