मालेगांव बम धमाके की मुख्य आरोपी साध्वी प्रज्ञा और सात आरोपियों को बाइज्जत बरी किए जाने के बाद अयोध्या में जश्न मनाया गया. हनुमानगढी पर हनुमानगढ़ी के मुख्य पुजारी राजू दास ने हनुमान भक्तों में लड्डू बांटा. इससे पहले प्रसाद बांटकर जश्न  मनाया गया और हनुमान जी का दर्शन और पूजन किया गया.

इसके बाद हनुमानगढी के महंत राजू दास ने कहा कि मालेगांव हमले में सात लोगों को आरोपी बनाया गया था. भगवा को आतंकवाद  कहा गया था. 100 करोड़ हिंदुओं पर भगवा आतंकवाद मढ़ा गया था. कोर्ट के निर्णय के बाद राजूदास ने पूछा कि क्या कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और उनकी पार्टी माफी मांगेगी? कांग्रेस के नेता लगातार सनातन पर टिप्पणी  कर रहे थे.क्या अब वह क्षमा मागेंगे? हम कोर्ट के निर्णय का स्वागत और सम्मान करते हैं.

मालेगांव मामले में फैसले पर सीएम योगी आदित्यनाथ की पहली प्रतिक्रिया, जानें- क्या कहा?

कोर्ट ने फैसले में क्या-क्या कहा?

मालेगांव विस्फोट में छह लोगों की मौत होने के करीब 17 साल बाद एक विशेष अदालत ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पूर्व सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित समेत सभी सातों आरोपियों को बृहस्पतिवार को बरी करते हुए कहा कि उनके खिलाफ कोई 'विश्वसनीय और ठोस सबूत नहीं हैं.' अदालत ने कहा कि कोई भी धर्म हिंसा नहीं सिखाता है. उसने कहा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, लेकिन अदालत सिर्फ धारणा के आधार पर दोषी नहीं ठहरा सकती. राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) के मामलों की सुनवाई के लिए यहां नियुक्त विशेष न्यायाधीश ए के लाहोटी ने अभियोजन पक्ष के मामले और जांच में कई खामियों को उजागर किया और कहा कि आरोपी व्यक्ति संदेह का लाभ पाने के हकदार हैं. 

मुंबई से लगभग 200 किलोमीटर दूर मालेगांव शहर में 29 सितंबर 2008 को एक मस्जिद के पास एक मोटरसाइकिल में लगाए गए विस्फोटक उपकरण में विस्फोट होने से छह लोगों की मौत हो गयी थी और 101 अन्य लोग घायल हो गए थे. इस मामले के आरोपियों में ठाकुर, पुरोहित, मेजर (सेवानिवृत्त) रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी शामिल थे. अदालत ने जैसे ही सातों आरोपियों को बरी करने का फैसला सुनाया तो उन सभी के चेहरों पर मुस्कान छा गयी और उन्होंने राहत की सांस ली. उन्होंने न्यायाधीश और अपने वकीलों का आभार जताया. न्यायाधीश ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि मामले को संदेह से परे साबित करने के लिए कोई 'विश्वसनीय और ठोस' सबूत नहीं है. अदालत ने कहा, 'मात्र संदेह वास्तविक सबूत की जगह नहीं ले सकता.' साथ ही, उसने यह भी कहा कि किसी भी सबूत के अभाव में आरोपियों को संदेह का लाभ मिलना चाहिए.