Mahakumbh 2025: महाकुंभ में हर दिन करोड़ों श्रद्धालु संगम स्नान के लिए पहुंच रहे हैं, लेकिन भारी भीड़ के सामने प्रयागराज की परिवहन व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है. हालत यह है कि लोगों को मालवाहक गाड़ियों में लटककर सफर करना पड़ रहा है. सवारी गाड़ियों में इतनी भीड़ है कि एक सीट पर दो-दो लोग बैठे हैं, यहां तक कि सामान रखने की जगह पर भी महिलाएं बैठने को मजबूर हैं.

परिवहन व्यवस्था की खस्ता हालत के कारण श्रद्धालु किसी भी तरह प्रयागराज पहुंचने और यहां से बाहर जाने के लिए मजबूर हैं. सड़क पर मालवाहक गाड़ियों में लटकते लोग, ट्रकों के झुके हुए टायर और ठुंसी हुई सवारी इस अव्यवस्था को बयां कर रही हैं. श्रद्धालुओं का कहना है कि बसों और अन्य साधनों की भारी कमी के कारण उनके पास कोई और विकल्प नहीं बचता. पैदल चलना संभव नहीं, इसलिए मालवाहक वाहनों में भीड़ की तरह ठूंस-ठूंस कर बैठना उनकी मजबूरी बन गया है.

श्रद्धालुओं के मुताबिकक “कोई बस नहीं है, कोई गाड़ी नहीं है, जैसे-तैसे यहां पहुंचे हैं, अब आगे जाने का कोई साधन नहीं मिल रहा. मजबूरी में मिनी ट्रक में चढ़े हैं.” साथ ही जो वाहन चल रहे हैं, उनके चालक मनमाना किराया वसूल रहे हैं. सिर्फ 3 किलोमीटर के सफर के लिए 50 से 100 रुपये तक वसूले जा रहे हैं. एक मिनी ट्रक चालक ने बताया– “20 लोग बैठे हैं, आराम से जाएंगे,” लेकिन हकीकत यह है कि लोग गाड़ी के पीछे लटक रहे हैं और ठसाठस भरे ट्रक किसी भी वक्त हादसे का शिकार हो सकते हैं. इतनी खराब व्यवस्था के बावजूद प्रशासन चुप है. लाखों श्रद्धालु हर दिन इस परेशानी से गुजर रहे हैं, लेकिन न कोई रोकने वाला है, न कोई देखने वाला.

क ही सीट पर दो-दो महिलाएं बैठी हैं

महिलाओं को यात्रा के दौरान सबसे ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. एक ही सीट पर दो-दो महिलाएं बैठी हैं, पीछे तीन की सीट पर पांच महिलाएं किसी तरह सिमटी हुई हैं. डिग्गी (सामान रखने की जगह) में भी महिलाएं बैठकर सफर करने को मजबूर हैं. महिला श्रद्धालुओं ने बातचीत में बताया की “हम उत्तराखंड से संगम स्नान के लिए आए हैं, लेकिन यहां सफर करना बहुत मुश्किल हो गया है. कोई व्यवस्था नहीं है, किसी तरह ट्रक में बैठकर आना पड़ा.” 

बेहतर व्यवस्था क्यों नहीं की गई?

उत्तर प्रदेश सरकार और स्थानीय प्रशासन महाकुंभ को अपनी बड़ी सफलता बता रहे हैं, लेकिन परिवहन व्यवस्था की यह हालत उनकी तैयारियों पर सवाल खड़े कर रही है। अगर इतनी भीड़ थी, तो पहले से बेहतर व्यवस्था क्यों नहीं की गई? अब सवाल यह है कि क्या प्रशासन श्रद्धालुओं की इस परेशानी को गंभीरता से लेगा? या फिर लोग इसी तरह महाकुंभ के बचे हुए दिनों में जोखिम में डालकर सफर करने को मजबूर रहेंगे?

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