UP Lok Sabha Chunav 2024: देश में हो रहे लोकसभा चुनावों में सियासी पार्टियां और उम्मीदवार वोटरों को रिझाने में कोई कोर - कसर नहीं छोड़ रहे हैं. तमाम ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर वोट मांगे जा रहे हैं, लेकिन प्रतियोगी छात्रों की समस्याएं और उनका संघर्ष इस चुनाव में भी मुद्दा नहीं बन सका है. ये हाल तब है, जब बेरोजगारी की समस्या हर दिन बढ़ती जा रही है.

पिछले कुछ दिनों में तमाम भर्ती परीक्षाओं के पेपर लीक हुए हैं. भर्तियों में धांधली और भाई - भतीजावाद के आरोप लगे हैं. इन सबके बावजूद प्रतियोगी छात्रों की बेरोज़गारी - पेपर लीक, अग्निवीर के नाम पर सेना में सीमित समय के लिए भर्ती, सरकारी नौकरियों में कमी और भर्तियों के कई - कई साल तक लटके रहने के मुद्दों पर न तो विपक्ष शोर मचा रहा है और न ही सत्ता पक्ष अपनी चुप्पी तोड़ने को तैयार है.

'चुनावी माहौल में गुम हो जाते हैं छात्रों के मुद्दे'वैसे इस मामले में कमी सिर्फ नेताओं और पार्टियों में ही नहीं, बल्कि खुद प्रतियोगी छात्रों में भी है. ज़्यादातर प्रतियोगी चुनावी मौसम में अपनी समस्याओं और ज़रूरी मुद्दों को कुछ समय के लिए भूलकर जाति - धर्म, क्षेत्र और नेताओं की बयानबाजी और भड़काऊ भाषण में ही मगन हैं. सवाल यह है कि जिन मुश्किलों और चुनौतियों से देश के तकरीबन नब्बे फीसदी युवाओं को जूझना पड़ रहा है, आखिरकार वह हर बार की तरह इस बार के चुनाव में भी मुद्दा क्यों नहीं है.

संगम नगरी प्रयागराज देश में प्रतियोगी छात्रों के सबसे बड़े केंद्र के तौर पर जाना जाता है. यहां तकरीबन दस लाख युवा प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं. इन युवाओं से बात करने पर जानकारी सामने आई कि प्रतियोगी छात्रों की सबसे बड़ी समस्या सरकारी नौकरियों की कम होती संख्या है. जो भर्तियां होती भी हैं, उनमे कभी पेपर लीक हो जाता है तो कभी कोर्ट - कचहरी के चक्कर में  कई कई साल बाद भी यह पूरी नहीं हो पातीं. तमाम भर्ती परीक्षाओं के पेपर में भी गड़बड़ी की शिकायतें अब आम हैं. सबसे ज़्यादा परेशान अग्निवीर की भर्ती ने किया है. आशंका जताई जा रही है कि सेना की तरह दूसरे महकमों में भी आने वाले दिनों में सीमित समय के लिए ही नौकरी दी जा सकती है.   

रोजगार के मुद्दे पर नहीं बात करती पार्टियांयूपी की बात करें तो यहां पिछले दिनों सिपाही भर्ती से लेकर आरओ - एआरओ भर्ती परीक्षाओं को पेपर लीक के चलते रद्द करना पड़ा है. अखिलेश यादव राज में यूपी पब्लिक सर्विस कमीशन से हुई सभी प्रमुख भर्तियों की जांच सीबीआई कर रही है. यहां पीसीएस जैसी सबसे अहम परीक्षाओं के पेपर भी लीक हुए हैं. बाहर से आकर यहां प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले तमाम युवा ओवरएज होकर खाली हाथ घर वापस जाने को मजबूर होते हैं.

चुनाव से पहले सत्ताधारी और विपक्ष प्रतियोगी छात्रों के मुद्दों को लेकर मुखर नज़र आते हैं, लेकिन हरेक चुनाव में प्रतियोगियों के मुद्दे काफी पीछे छूट जाते हैं. इस बार भी ऐसा ही है. यही वजह ही कि ज़्यादातर प्रतियोगी छात्र अब सिस्टम के आगे बेबस नज़र आते हैं. उनका मानना है कि सरकार कोई भी हो, पर उनकी बात सुनने को कोई भी राजी नहीं होता. उनके मुद्दों में किसी को भी दिलचस्पी नहीं होती.

"छात्र खुद उठाए अपने हक की आवाज"प्रयागराज में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कराने वाले सागर एकेडमी के डायरेक्टर ओम प्रकाश शुक्ल के मुताबिक़ चुनाव में भावनात्मक तौर पर असर करने वाले शॉर्टकट मुद्दे तेजी से असर दिखाते हैं, इसी वजह से पार्टियां और उम्मीदवार उन पर ही फोकस करते हैं. उनके मुताबिक़ अगर प्रतियोगी छात्र और दूसरे युवा अपने मुद्दों को खुद मजबूती से उठाएं तो पार्टियों को भी उनसे जुड़े मसलों पर चर्चा करना मजबूरी हो जाएगी, लेकिन चुनाव के वक़्त खुद प्रतियोगी भी दूसरे मुद्दों के आगे अपनी समस्याएं भूल बैठते हैं.

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