स्पोर्टस डेस्क, एबीपी गंगा। यशस्‍वी सिर्फ नाम से ही नहीं बल्कि काम से भी। यशस्‍वी के यश की चर्चा हर तरफ हो रही है। आने वाले वक्त में युवा क्रिकेटर यशस्‍वी जायसवाल का जलवा पूरी दुनिया देखेगी। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि इस होनहार बल्लेबाज ने विजय हजारे ट्रॉफी में झारखंड के खिलाफ दोहरा शतक जड़ दिया है। यशस्‍वी ने 154 गेंदों का सामना किया और 17 चौकों व 12 छक्‍कों की मदद से 203 रन की शानदार पारी खेली।

इस शानदार पारी कि बदौलत यशस्वी लिस्‍ट ए क्रिकेट (50 ओवर) में दोहरा शतक लगाने वाले सबसे कम उम्र के बल्‍लेबाज बन गए हैं। उन्‍होंने सिर्फ 17 साल की उम्र में ही यह कमाल कर दिखाया है। इससे पहले यह रिकॉर्ड दक्षिण अफ्रीका के एलन बारो के नाम था जिन्‍होंने 1975 में 20 साल 273 दिन की उम्र में दोहरा शतक लगाया था। यशस्‍वी ऐसा करने वाले सातवें भारतीय हैं, उनसे पहले सचिन तेंदुलकर, वीरेंद्र सहवाग, रोहित शर्मा (3 बार), शिखर धवन, केवी कौशल और संजू सैमसन ऐसा कर चुके हैं।

यशस्वी के लिए सब कुछ इतना आसान नहीं था। महज 10 साल की उम्र घर छोड़कर मुंबई आकर भारतीय क्रिकेट के दिग्गजों के बीच अपनी पहचान बनाने के लिए यशस्वी को कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। क्रिकेटर बनकर देश के लिए खेलने का सपना उनके सामने कई चुनौतियां लेकर आया। यशस्वी नहीं रुके और अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ने के साथ-साथ कड़ी मेहनत करते रहे।

यशस्‍वी जायसवाल मूलरूप से उत्‍तर प्रदेश के भदोही के रहने वाले हैं। उनका परिवार काफी गरीब था। पिता छोटी सी दुकान चलाते हैं. ऐसे में अपने सपनों को पूरा करने के लिए वे वह बड़े शहर मुंबई चले आए। मुंबई में यशस्वी के पास रहने की जगह नहीं थी। यहां उनके चाचा का घर तो था लेकिन इतना बड़ा नहीं कि यशस्वी यहां रह पाते। परेशानी में घिरे यशस्वी एक डेयरी काम मिल गया, लेकिन बाद में काम उनका सामान उठाकर फेंक दिया गया और उन्हें डेयरी से बाहर निकाल दिया गया।

यशस्वी ने इस बारे में खुद बताया है, उनका कहना है कि 'मैं कल्बादेवी डेयरी में काम करता था। पूरा दिन क्रिकेट खेलने के बाद मैं थक जाता था और सो जाता था। एक दिन उन्होंने मुझे ये कहकर वहां से निकाल दिया कि मैं सिर्फ सोता हूं और काम में उनकी कोई मदद नहीं करता।' यशस्वी ने अपनी तकलीफों के बारे में कभी किसी को कुछ नहीं बताया, वजह ये थी कि कहीं संघर्ष की कहानी भदोही तक न पहुंचे, जाए और उनका क्रिकेट करियर ही खत्म हो जाए।

तमाम जद्दोजेहद के बाद भटकते हुए यशस्वी को रहने का ठिकाना मिल गया, और ये ठिकाना था टेंट। कई साल तक यशस्वी टेंट में ही रहे। पिता कई बार पैसे भेजते लेकिन वो काफी नहीं होते। सितरे के संघर्ष का आलम ये था कि रामलीला के समय आजाद मैदान पर यशस्वी ने गोलगप्पे भी बेचे। कई रातें तो ऐसी भी गुजरीं जब यशस्वी को भूखा ही सोना पड़े।

अपने संघर्ष के बारे में बात करते हुए यशस्वी ने कहा था कि, 'रामलीला के समय मेरी अच्छी कमाई हो जाती थी। मैं यही दुआ करता था कि मेरी टीम के खिलाड़ी वहां न आएं, लेकिन कई खिलाड़ी वहां आ जाते थे। मुझे बहुत शर्म आती थी। मैं हमेशा अपनी उम्र के लड़कों को देखता था, वो घर से खाना लाते थे। मुझे तो खुद बनाना था और खुद ही खाना था। टेंट में मैं रोटियां बनाता था। कई बार रात में परिवार की बहुत याद आती थी, मैं सारी रात रोता था।'

यशस्वी के दिन भी बदले और उनकी मुलाकात यूपी के रहने वाले ज्‍वाला सिंह से हुई। ज्वाला सिंह ने यशस्वी को गाइड किया जिसके बाद फिर स्‍थानीय क्रिकेट में यशस्‍वी के बल्‍ले की धमक सुनाई पड़ने लगी। सफर आगे बढ़ा और अंडर-19 खेलते हुए ही यशस्वी अर्जुन तेंदुलकर के संपर्क में आए। अर्जुन ने यशस्‍वी के बारे में पिता सचिन तेंदुलकर को बताया। यशस्‍वी की मेहनत से सचिन काफी प्रभावित हुए और उन्‍होंने अपने ऑटोग्राफ वाला बैट उन्‍हें गिफ्ट में दिया।

मुंबई के कोच विनायक सामंत भी जायसवाल की बल्‍लेबाजी के फैन हैं। उनका कहना है कि यश के पास हर तरह के शॉट है लेकिन वह रन बनाने में जल्‍दबाजी नहीं करता। सामंत का कहना है कि उन्‍होंने लंबे समय बाद ऐसा बल्‍लेबाज देखा है, जिसके खेलने का अंदाज बेहद शानदार है। यशस्वी बल्लेबाजी के साथ-साथ स्पिन गेंदबाजी भी करते हैं।

ढाका में खेले गए अंडर-19 एशिया कप से यशस्वी चर्चा में आए थे। श्रीलंका के खिलाफ फाइनल में उन्‍होंने 113 गेंद में 85 रन की पारी खेली थी। इस पारी के बूते भारत ने श्रीलंका को 144 रन से हराकर टूर्नामेंट जीता था। इस टूर्नामेंट में उन्‍होंने 318 रन बनाए थे। पिछले 3 साल में जायसवाल 50 से ज्‍यादा शतक लगा चुके हैं और 200 के करीब विकेट ले चुके हैं। उनका नाम लिम्‍का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है। एक स्‍कूली मैच में उन्‍होंने नाबाद 319 रन बनाए थे और 99 रन देकर 13 विकेट लिए थे।