शनिदेव के नाम से अक्सर लोगों के मन में डर देखा जाता है। डर भी इतना कि हर कोई चाहता है कि उसके जीवन में कभी शनि का प्रकोप ना रहे। शास्त्रों में भी शनि को अशुभ ग्रह बताया गया है। हालांकि शनिदेव को कर्मफल और न्याय का देवता भी कहा जाता है। इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि आखिर शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या क्या होती है, साथ ही इन्हें कम करने के उपाय क्या हैं। ज्योतिष शास्त्र में कुंडली का अध्ययन करने के लिए कुंडली में शनि की स्थिति, दशा, महादशा, अंतर्दशा, शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या देखा जाता है। कुंडली में शनि की महादशा 19 वर्ष की होती है। किसी एक राशि में शनि ढाई वर्षों तक रहता है। इस लिहाज से सभी 12 राशियों के चक्कर काटने में शनि को 30 साल का समय लगता है। शनि का गोचर जब किसी की भी जन्म कुंडली में बैठता है तो चंद्रमा से 12वें भाव में साढ़ेसाती शुरू हो जाती है। 12वें भाव में यह ढाई वर्ष तक रहता है और यह साढ़े साती का पहला चरण होता है। साढ़े साती के दूसरे चरण में शनि लग्न भाव में ढाई साल तक बैठता है। फिर इसी क्रम में अपने तीसरे और आखिरी चरण में यह आपके दूसरे भाव में ढाई साल तक रहता है। क्या होती है शनि की ढैय्या? शनि का एक राशि से दूसरी राशि में गोचर को ढैय्या कहते हैं। जब व्यक्ति की साढ़े साती प्रारंभ होती है तो सबसे पहले उसकी ढैय्या चलती है। क्या है साढ़ेसाती और ढैय्या को कम करने के उपाय हर शनिवार को भगवान शनि की नियमित रूप से पूजा करनी चाहिए। पूजा के दौरान शनि स्तोत्र - नमस्ते कोण संस्थाय पिंगलाय नमोस्तुते। नमस्ते विष्णु रूपाय कृष्णाय च नमोस्तुते।। नमस्ते रौद्र देहाय नमस्ते कालकायजे। नमस्ते यम संज्ञाय शनैश्चर नमोस्तुते। प्रसादं कुरु देवेश दीनस्य प्रणतस्य च। का जप करना चाहिए। इसके अलावा रोजाना तीन बार हनुमान चालीसा का भी पाठ करना चाहिए। शनिवार सरसों का तेल या फिर तिल का तेल शनि देव पर चढ़ाना चाहिए।