एबीपी। दक्षिण भारत के प्रसिद्ध संत केशवानंद भारती नहीं रहे. उन्होंने आज एडनीर स्थित शैव मठ में अंतिम सांस ली. केशवानंद भारती की पहचान एक संवैधानिक लड़ाई लड़ने वाले के तौर पर होती रही है. साल 1973 में उनके और केरल सरकार के बीच चले केस के फैसले ने उनकी पूरे भारत में अलग पहचान बना दी थी.


'केरल के शंकराचार्य'
केशवानंद को 'केरल का शंकराचार्य' भी कहा जाता है. दरअसल, केरल के सबसे उत्तरी जिले कासरगोड़ में एक पुराना शैव मठ है. यह एडनीर नामक जगह पर स्थित है. मठ का जुड़ाव आदिगुरु शंकराचार्य से जुड़ा है. शंकराचार्य के शिष्य तोतकाचार्य की परंपरा में यह मठ स्थापित हुआ था. यह मठ तांत्रिक पद्धति का अनुसरण करने वाली स्मार्त्त भागवत परंपरा को मानता है. करीब 1200 साल पुराने इतिहास के चलते इस मठ की काफी मान्यता है. शंकराचार्य से जुड़े होने के कारण इस मठ के प्रमुख को 'केरल का शंकराचार्य' कहा जाता है. स्वामी केशवनानंद भारती मठ के मौजूदा प्रमुख थे.


20 साल की उम्र में बने मठ प्रमुख
केशवानंद भारती ने 19 साल की उम्र में संन्यास लिया था. एक साल बाद ही उनके गुरु की मृ्त्यु हो गई. जिसके बाद वे एडनीर के शैव मठ के मुखिया बन गए. एडनीर मठ का केरल सहित दक्षिण भारत में आध्यात्म के अलावा भी कई क्षेत्रों में योगदान है. इसीलिए इसकी बहुत मान्यता है.


केशवानंद भारती मामला
मठ की सैंकड़ों एकड़ जमीन को जब सरकार ने अधिगृहित कर लिया तो केशवानंद भारती मामले को चुनौती देने कोर्ट पहुंचे. हालांकि, केरल हाईकोर्ट में मठ को सफलता नहीं मिली. इसके बाद वे मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले गए. यहां भी उन्हें सफलता तो नहीं मिली लेकिन मामले में आए फैसले के बाद उनका नाम कोर्ट कचहरी की दुनिया में अमर हो गया.


कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
केशवानंद भारती के मामले में कोर्ट ने 13 सदस्यीय संविधान पीठ बनाई. इस पीठ ने फैसला दिया कि संसद को संविधान में संशोधन करने की शक्तियां सीमित हैं, जिसके तहत संविधान की मूल संरचना में बदलाव नहीं किया जा सकता. बता दें कि केशवानंद के मामले में संविधान पीठ के सदस्यों में भी गंभीर मतभेद देखने को मिले. पीठ ने मात्र एक वोट से यह ऐतिहासिक फैसला दिया था. पीठ के 6 के मुकाबले 7 सदस्यों ने संविधान की संरचना का सिद्धांत माना था.


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