Joshimath Land Subsidence Report: जोशीमठ में भूधंसाव मामले में अब तक वैज्ञानिकों के द्वारा किए गए अध्ययन की रिपोर्ट्स को उत्तराखंड सरकार ने नैनीताल हाई कोर्ट के आदेशों के बाद सार्वजनिक कर दिया है. जिसमें अलग-अलग संस्थानों के वैज्ञानिकों की रिपोर्ट में भूधंसाव के पीछे कई कारण बताए गए हैं.

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करीब 718 पन्नों की रिपोर्ट्स को आपदा प्रबंधन की ओर से वेबसाइट पर भी अपलोड कर दिया गया है. हालांकि जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति ने रिपोर्ट्स सार्वजिनक करने में की गई देरी पर सवाल खड़े किए हैं. आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने भी अपनी 139 पन्नों की रिपोर्ट तैयार की थी. इसे भी अब सार्वजनिक कर दिया है. 

जोशीमठ को लेकर रिपोर्ट में क्या कहा गया?

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आठ संस्थानों के वैज्ञानिकों की रिपोर्ट के अनुसार जमीन में पानी के रिसाव के कई कारण सामने आए हैं. जिससे चट्टानों के खिसकने में पानी का रिसाव, ड्रैनेज के पानी से कटाव, अलकनन्दा नदी में आने वाले पानी से मिट्टी का कटाव और निर्माण कार्य भी वजह बताया गया है. 

निर्माण कार्य पर रोक लगाई

जोशीमठ में हल्के निर्माण कार्य छोड़कर सभी तरह के निर्माण कार्य पर रोक लगा दी गई है. साथ ही वैज्ञानिकों की रिपोर्ट को PWD और अन्य विभागों को भी साझा कर दिया गया है. जिसे देखते हुए ही आगे की रणनीति बनाई जाएगी. सरकार ने वैज्ञानिक संस्थानों और एनडीएमए को जोशीमठ के निचले हिस्सों में निकल रहे पानी के कारणों को जानने की जिम्मेदारी सौंपी थी. 

कोर्ट की सख्ती के बाद सार्वजनिक की रिपोर्ट

तमाम वैज्ञानिक संस्थानों ने काफी समय पहले ही अपनी रिपोर्ट सरकार की सौंप दी थी, लेकिन सरकार ने इसे दबाए रखा. इस मामले में अल्मोड़ा के पीसी तिवारी ने याचिका दायर कर रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग की थी. कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि सरकार को ऐसे मामलों की रिपोर्ट जल्द सामने रख लोगों से साझा करनी चाहिए. 

जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति ने उठाए सवाल

इसके बाद उत्तराखंड राज्य आपदा की तरफ से रिपोर्ट को सार्वजनिक करते हुए वेबसाइट पर अपलोड किया गया है. जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति ने वैज्ञानिकों की ओर से सौंपी गई रिपोर्ट को सार्वजनिक करने पर ये कहते हुए सवाल खड़े किए कि समिति द्वारा पिछले 6 महीने से रिपोर्ट सार्वजिनक करने की मांग की जा रही थी. जिस पर सरकार ने आश्वासन भी दिया था, लेकिन हाई कोर्ट के आदेशों के बाद रिपोर्ट्स को सार्वजनिक किया है.

वहीं वाडिया इंस्टीट्यूट से रिटायर्ड साइंटिस्ट सुशील कुमार ने बताया कि जो रिपोर्ट्स अब वैज्ञानिकों की ओर से बनाई गई हैं इस पर कई सालों पहले ही काम किया जा चुका है और उसमें भी यही कारण सामने आए थे. 

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