गोरखपुर, एबीपी गंगा: यूपी में एक सीट ऐसी भी है जहां राम मंदर आंदोलन की लहर पर सवारी करने के बाद भी बीजेपी को किनारा नहीं मिला था। ये सीट समाजवादी पार्टी का गढ़ रही है। देवरिया का सलेमपुर संसदीय क्षेत्र तीस वर्ष तक समाजवादियों के कब्जे में रहा है। इस सीट पर भाजपा को सिर्फ एक बार 2014 में विजय मिली थी। रोचक बात ये है कि राम मंदिर आंदोलन की लहर में भी बीजेपी समाजवादियों का ये किला नहीं भेद पाई थी।

बीजेपी को करना पड़ा लंबा इतजार

सलेमपुर लोकसभा सीट 1952 में अस्तित्व में आई। अस्तित्व में आने के बाद से ही ये सामान्य श्रेणी की सीट रही है। यह संसदीय क्षेत्र उन क्षेत्रों में शुमार है जहां जीत हासिल करने के लिए बीजेपी को लंबा इंतजार करना पड़ा। 1952 में हुए पहले आम चुनावों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विश्वनाथ राय ने जीत हासिल की और यहां के पहले सांसद बने। 1971 तक कांग्रेस ने लगातार पांच बार सलेमपुर की सीट पर कब्जा किया।

टूल गया कांग्रेस का तिलिस्म

1977 में भारतीय लोकदल के राम नरेश कुशवाहा ने कांग्रेस का तिलिस्म तोड़ा और यहां से पहले गैर-कांग्रेसी सांसद बने। राम नगीना मिश्र 1980 में कांग्रेस (आइ) और 1984 में कांग्रेस के टिकट पर निर्वाचित हुए। 1989 और 1991 में जनता दल के हरिकेवल ने जीत हासिल की। 1991 में भाजपा ने रामविलास राव को पहली बार प्रत्याशी उतारा। राम लहर के बावजूद रामविलास राव कमल खिलाने में कामयाब नहीं हुए। उन्हें जनता दल के हरिकेवल प्रसाद के हाथों शिकस्त ङोलनी पड़ी।

2019 में बड़ी है चुनौती

1996 में सपा के हरिवंश सहाय ने जनता दल की लगातार तीसरी जीत के सपनों पर पानी फेर दिया। 1998 में हुए चुनावों में हरिकेवल प्रसाद ने समता पार्टी के टिकट पर सपा से अपनी पिछली हार का बदला ले लिया। 1999 में बब्बन राजभर ने सलेमपुर में बसपा को पहली जीत दिलाई। 2004 में सपा के हरिकेवल प्रसाद और 2009 में बसपा के रमाशंकर राजभर ने सीट पर कब्जा जमाया। 2014 में भाजपा ने रविंद्र कुशवाहा पर दांव लगाया और पहली बार जीत का स्वाद चखा। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के सामने एक बार फिर इस सीट पर कब्जा बरकरार रखने की चुनौती है।

आंकड़ों की जुबानी

कुल मतदाता : 1970664

पुरुष :1075480

महिला : 895113

परिवार : 91896

मतदान केंद्र : 1333

साक्षरता दर : 73.43 फीसद