Kanpur News: देश की आजादी का जब भी जिक्र किया जाता है तो उसमे कानपुर का नाम जरूर शामिल रहता है. देश की आजादी में कानपुर शहर की अहम भूमिका रही है. यही से देश के तमाम बड़े क्रांतिकारियों ने आंदोलन की चिंगारी जलाई और अंग्रेजों को लोहे के चने चबाने पर मजबूर किया था. देश की आजादी कानपुर की हिस्सेदारी की गवाही लड़ाई से जुड़ी महापुरुषों की मूर्तियां दे रही हैं. इन मूर्तियों को देखकर शरीर में जोश आता है और उनकी शौर्य  गाथा भी समझी जा सकती है.

देश में अंग्रेजी हुकूमत ने ऐसा सितम ढाया जिसके बाद हर किसी ने उनके सामने सर झुकाना ही ठीक समझा लेकिन बढ़ते जुल्म-ओ-सितम के बीच क्रांति की ऐसी चिंगारी उठी जिसने एक बड़ी आग का रूप ले लिया. कानपुर में रानी लक्ष्मी बाई, नानाराव पेशवा, अजीम उल्ला खान, चंद्रशेखर आजाद जैसे किरदारों का शहर में स्वतंत्रता की लड़ाई में ठिकाना था. अंग्रेजों से लड़ने के लिए एक जगह से दूसरे जगह पर ठहरना और छुपना क्रांतिकारियों की शैली में शामिल हो गया था.

शहर की प्रमुख क्षेत्रों स्थापित हैं क्रांतिकारियों की प्रतिमावहीं शहर में कुछ स्थानों पर क्रांतिकारियों और महापुरुषों के पुतले लगे हुए हैं जो उनकी याद, उनके कर्मों और उनके त्याग को समर्पित है. आजादी के बाद से लगी ये मूर्तियां समय समय पर टूटती और खराब होती रही हैं लेकिन प्रशासन के लोग इन मूर्तियों का मरम्मत कराते  रहे हैं. यहां तक की शहर के कई धार्मिक, स्कूल कॉलेज , पार्क या ऐतिहासिक स्थलों पर साथापित कराया जिससे लोग इनके बारे में जाना सके और उनके बलिदानों  को याद सकें.

 

चंद्र शेखर आजाद

कानपुर के बिठूर क्षेत्र को आज पर्यटक स्थल घोषित कर दिया गया है लेकिन यहां प्रवेश करते ही रानी लक्ष्मीबाई की मूर्ति घोड़े पर सवार लगी है जो हर आने जाने वाले को उनकी याद दिलाती है. इसी तरह डीएवी कॉलेज के मुख्य द्वार के पास क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद जी की मूर्ति स्थापित है जिन्हे कॉलेज आने वाले छात्रों के लिए प्रेरणा श्रोत के रूप में और उनके बलिदान को याद दिलाने के लिए लगाया गया है. ऐसी ही नाना राव पार्क में शहीद शालिग्राम शुक्ल, मंगल पांडे जैसे महापुरुषों की मूर्तियां स्थापित है. सैकड़ों लोग इस पार्क में सुबह, शाम घूमने आते हैं. यहां पर लगी इन मूर्तियों की कहानी बच्चे बड़े चाव से सुनते हैं और यहां सेल्फी लेते हैं. शहर के प्रमुख स्थलों पर स्थापित क्रांतिकारियों की प्रतिमा देश के लिए बलिदान में कानपुर की हिस्सेदारी को बताती हैं.

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